मैं अपने एक इंस्पेक्टर को कहा रहा था कि कहीं से दिनकर की उर्वशी खरीद लायें। मेरी प्रति खो गयी है।
मेरे एक गाडी नियंत्रक पास में खडे थे। बोले – साहब आपने पिछली बार दिल्ली भेजा था तो कुछ लोग वहां बात कर रहे थे कि आपकी हिंदी के बारे में अगर कोई प्राबलम हो तो एक साईट इण्टरनेट पर खुली है। नारद के नाम से। कोई कनाडे और दुबई वाले ने मिल कर खोली है। आप तो इन्टरनेट देखते रहते हैं, उनसे नारद पर सहायता ले सकते हैं।
मैं देखता रह गया । नारद की ख्याति फैल रही है। पर किसा रुप में!
अच्छा लगा आप मान गये और गये नहीं!!-यह दुबई वाले का तो हमने भी सुना है और कनाडे वाले कौन हैं?? इनका नहीं सुनें हैं, सॉरी. 🙂 वो गाड़ी नियंत्रक साहब जो पास खड़े थे अगर ज्यादा दूर न गये हों तो पूछ कर बताईये न!! शायद नाम जानते हों.. 🙂
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“कनाडे और दुबई वाले..”वाह जी..क्या बात है 🙂
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अच्छी बात है।अरे आपने तो सन्यास ले लिया था। फिर से बैटिंग करने आ गये, चहिये टीम मे सेलेक्ट कर लिया गया है अच्छा प्रदर्शन करियेगा। शुभकामना
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सुन कर अच्छा लगा.
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चर्चा में बना रहना जरूरी है । चर्चा अच्छी हो या बुरी, व्यापक तो हो रही है। पाण्डेयजी आपका लेखन भी बना रहे। एक अंग्रेजी अखबार ने कहा है कि आप पानी पर केन्द्रित चिट्ठा चलाते हैं ।
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