जबसे अज़दक जी ने बूढ़े ब्लॉगर पर करुणा भरी पोस्ट लिखी है, तब से मन व्यथित है. शीशे में कोई आपका हॉरर भरा भविष्य दिखाये तो और क्या होगा! इस तरह सरे आम स्किट्सोफ्रेनिया को बढ़ावा देने का काम अज़दक जैसे जिम्मेदार ब्लॉगर करेंगे तो हमारे जैसे इम्पल्सिव ब्लॉगर तो बंटाढ़ार कर सकते हैं. उनके खिलाफ कुछ कहना उचित नहीं लगता (करुणामय पोस्ट के जले पर नमक लगाना ब्लॉगरी के एथिक्स के खिलाफ है). लिहाजा, यह पोस्ट लिख कर ही अपनी मानसिक हलचल शांत कर लेते हैं.
पहली बात – अगर आपने अज़दक जी की पोस्ट नहीं पढ़ी है तो पढ़ लें. उसका हाइपर लिंक उन्ही की पोस्ट से उड़ाई बाजू की फोटो में है. फोटो क्लिक करें. पोस्ट ज्यादा लम्बी नहीं है और समझने के लिये, मैं आश्वस्त करता हूं, कि आपको केवल तीन बार ही पढ़ना होगा – प्रिंटाआउट ले कर नहीं पढ़ना पड़ेगा.
उसमें जो बूढ़ा ब्लॉगर है, उसमें मुझे अपना काल्पनिक भविष्य दीखता है. वैसे उसमें अज़दक जी का भी भविष्य होगा. वे तो दशक भर से पटखनी खाये पड़े हैं – अत: हमारी बजाय उनके भविष्य का वह ज्यादा रियलिस्टिक चित्रण है. पता नहीं अज़दक जी का भरा-पूरा परिवार है या नहीं और उन्हें नहलाने को कोई डॉटर-इन-लॉ है या नहीं; अपने पास तो कोई कानूनी डॉटर नहीं है. अत: इस पक्ष को डिस्काउण्ट किये देते हैं. वैसे भी, प्रोस्ट्रेट ग्रंथि की मॉलफंक्शनिंग/बुड़बुड़ाने की आदत/हीनता/गठिया तो आम चीजें हैं जो जवानों में भी आती जा रही हैं. उनका क्या रोना रोयें.
फिर भी, बुढापे का अकेलापन और उसमें जवान ब्लॉगरों के ब्लॉग पर जा-जा कर टिपेरने की जो मजबूरी है – वह मैं पूरी शिद्दत से महसूस करता हूं. आप जैसे-जैसे बुढ़ाते जायेंगे, आपकी ब्लॉग पोस्ट और टिप्पणिया उत्तरोत्तर आउट-ऑफ-सिंक होती जायेंगी. आपकी टिप्पणी भी वैलकम नहीं करेगा चिठेरा. कहेगा – बुढ़ऊ को और कोई काम नहीं है; चले आते हैं सड़ल्ली सी बहादुरशाह ज़फर के जमाने की टिप्पणी करने!
यह तो अजदक जी की हाँ में हाँ वाली बात हो गयी। जो प्वाइंट आफ डिस्प्यूट हैं वह यह कि ये बातें कह कर क्यों वे अपने सीक्रेट लीक कर रहे हैं और क्यों हम जैसे को बैठे ठाले नर्वस कर रहे हैं? क्या चाहते हैं की हम ब्लॉगरी बंद कर दें? बड़ी मुश्किल से जिंदगी के उत्तरार्ध में लिखने लगें हैं। और अजदक जी के पास तो लिखने को अखबार का पन्ना भी हैं। हमें कौन छपेगा अगर ब्लॉगरी बंद कर दें तो!
है कोई उपाय अज़दक जी? नहीं तो और कोई सज्जन बतायें!
अच्छा चलें. चलने के दो कारण हैं :
- एक – आज दिल्ली बन्द है गुज्जर महासभा की ओर से. अभी तक तो दिल्ली पंहुचने वाली गाड़िया नहीं रोकी है उन्होने, पर क्या भरोसा कब रोक दें गाजियाबाद और फरीदाबाद में. फिर मेरे सिस्टम पर तीन दर्जन प्रेस्टीजियस गाड़ियो की लाइन लग जाये।
- दूसरे, अज़दक जी वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनके पक्ष में उनकी बिरादरी लामबन्द हो गयी तो मुझे कवर (कब्र नही!) की तलाश कर रखनी होगी!
Pramod ji ne khud hi likha ki unhein akhbaar ka sampaadkeey likhna hai….Abhay ji bol rahe hain ki Pramod ji ka kisi akhbaar se ya kisi TV channel se lena dena nahin hai..Badi duvidha waali sthiti hai…Kaun sach bol raha hai…?
LikeLike