कुल्हाड़ी में धार देने की उपेक्षा कर सकते हैं हम?

अगर मुझे आठ घण्टे लगाने हैं लकड़ियां चीरने में, तो मैं छ घण्टे लगाऊंगा कुल्हाड़ी की धार देने में – अब्राहम लिंकन

इस फटा-फ़ट के जमाने में अब्राहम लिंकन का उक्त कथन अटपटा सा लगता है. कुल्हाड़ी में धार देने की बजाय लोग चिरी चिराई लकड़ी खरीदने में (उत्तरोत्तर) ज्यादा यकीन करने लगे हैं. मैगी टू मिनिट्स नूडल्स की सारी अवधारणा अब्राहम लिंकन को नकारती है. स्टीफन कोवी की 7 हैबिट्स वाली पुस्तक में कुल्हाड़ी तेज करने का नियम है जो सभी नियमों के बाद में लिखा है. कितने लोग उसे ध्यान से देखते हैं?

पर क्या सफलता कुल्हाड़ी को धार दिये बगैर मिलती है? जो नियम शाश्वत हैं और यह धार देने का नियम शाश्वत है; उनकी सत्यता पर सन्देह करना गलत होगा. लिंकन जैसे सत्पुरुष की छोड़ दें; एक कुशल जेबकतरा या चोर भी अपनी कला को परिमार्जित करने में पर्याप्त समय लगाता होगा. अन्यथा नुक्कड़ का ऊंघता सिपाही भी उसे पकड़ कर नाम कमा लेगा.

तकनीकी विकास ने उत्क़ृष्टता के नये आयाम खोल दिये हैं. एक उत्कृष्ट काम करने के लिये पहले जितना समय और श्रम लगता था, आज उसका दशमांश ही लगता है. हम यह सोच कर प्रसन्न हो सकते हैं हि उत्कृष्टता आसान हो गयी है. पर बेहतर तकनीक और अपनी क्रियेटिविटी का प्रयोग कर अगला व्यक्ति पहले से सौ गुनी अच्छी चीज सामने लेकर चला आता है और हमारी उत्कृष्टता आसान होने की अवधारणा ध्वस्त हो जाती है. तकनीकी विकास ने शारीरिक श्रम को बहुत सीमा तक हल्का किया है. पर बौद्धिक कार्य के आयाम को तो अनंत तक खींचता चला जा रहा है यह विकास.

नये जमाने में कार्य और कार्य करने की तकनीक बदल सकती है. पर आपको कुछ कर दिखाना है तो मेहनत तो वैसे ही करनी पड़ेगी जैसे पहले करनी थी. यही नहीं, नयी-नयी तकनीक को जानना होगा, अपडेट रहना होगा और उससे अपनी क्रियेटिव फेकेल्टी को सतत ऊर्जा देते रहना होगा. यह काम पहले से ज्यादा कठिन हो गया है.

मेहनत का कोई विकल्प दिखाई नहीं देता.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

3 thoughts on “कुल्हाड़ी में धार देने की उपेक्षा कर सकते हैं हम?

  1. मेहनत का कोई विकल्प दिखाई नहीं देता को यूँ कहें कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता.-यकीन जानिये कि तकनिकी के विकास के साथ साथ अपेक्षायें भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं और अगर हम मेहनत करके साथ साथ न चलें तो कब और कितना पिछड़ जायेंगे, जान पाना भी मुश्किल होगा.

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  2. मेहनत सफलता की कुंजी है पर आज के समय मे इसके पर्याय बदल गए है।

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  3. सच कहा मेहनत का कोई विकल्प नहीं है . पर हमारी नई पीढी मेहनत के अलावा नए आसान रास्तों को खोजने के यत्न में लगी रहती है .मेहनत उसके लिए मूल्य नहीं है वह प्रेक्टिकल होने में विश्वास रखती है .

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