पाकिस्तान में श्री खालिद मसूद, चेयरमैन, काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडिय़ॉलाजी ने कहा है कि हड़पी जमीन पर बनाये गये मदरसे और मस्जिदें शरीया के खिलाफ़ हैं. वहां की गयी प्रार्थना स्वीकार नहीं की जायेगी. कितने नेक विचार हैं. भारत में हर नुक्कड़-गली में हनुमान जी के मन्दिर, शिवजी की पिण्डी, पीर बाबा की मज़ार सार्वजनिक स्थल के अतिक्रमण के टाइम टेस्टेड फार्मूला हैं. अगर यहां भी देवबन्द वाले और वीएचपी वाले कह दें कि सार्वजनिक स्थल का अतिक्रमण कर बनाया धर्म स्थल खुदा/भगवान जी को स्वीकार्य नहीं होगा और वहां की गयी इबादत/पूजा केवल कुफ/आसुरिक होगी तो यातायात और रिहायश की धर्मनिरपेक्ष और बड़ी समस्यायें हल हो जाये!
The news item in Expressindia quoted in above Hyper Link:
‘Mosques on encroached land un-Islamic’
Islamabad, June 15: A top Islamic organisation in Pakistan has said mosques and madrassas, including Jamia Hafsa that has been involved in a stand-off with the government over its attempt to forcefully implement Sharia, built on encroached land were considered illegal in Islam and ‘prayers offered there would not be accepted’.
Khalid Masud, Chairman of the Council of Islamic Ideology (CII), said all mosques and madrassas (seminaries), including Jamia Hafsa, built on encroached land were un-Islamic, and ‘prayers offered there are not accepted’.
हनुमान जी शरीफ से देवता हैं. किसी कोने में टिका दो – बेचारे स्थापित हो कर वरदान बांटने लगते हैं. शिव लिंग और उसके ऊपर मटकी से गिरता पानी जुंये भरे बालों वाले गंजेडियों की पनाह/अड्डा बन जाता है. पीर बाबा की मजार पर चादर चढ़ने लगती है. लोबान जलने लगता है. अजीबो-गरीब पोशाक में एक बन्दा मुरछल घुमाते हुये लोगों को अभुआ कर (हिस्टिरिकल बना कर) जिन्न उतारने लगता है. इस प्रक्रिया में जमीन का बेशकीमती टुकड़ा दब जाता है धार्मिक उन्माद की भेंट!
यहां भारत में भी एक नेक खालिद मसूद की दरकार है – और उनके हिन्दू क्लोन की भी!
मैं आपको अपना अनुभव सुनाता हूं.
स्टेशन के सामने व्यापक मॉडीफिकेशन हो रहा था. तोड़-फोड़ करने में एक मजार निकल आई और एक हनुमान जी का मन्दिर. मजार कोने पर थी. पड़ी भी रहती तो हम अपना प्लान बदल कर काम चला सकते थे. पर हनुमान जी तो बीच सड़क में आ रहे थे. लिहाजा मेरे जिम्मे काम आया कि मैं दोनो समुदायों से समझौता वार्ता कर समाधान निकालूं. मैं जब मौके पर पंहुचा तो मेरे आने का समाचार सुन हनुमान चालिसा का पाठ माइक पर तेज हो गया. पहले मैं मजार के पास गया तो एक बन्दा वज्रासन जैसी मुद्रा में झूम-झूम कर कपड़े में लिपटी किसी किताब को खोल कर उसमें से पढ़ने लगा. मैं जितना नजदीक पंहुचा, उसका धड़ और ज्यादा स्विंग करने लगा. अनेक मुसलमान मजार पर आते-जाते नजर आ रहे थे. एक आदमी मेरे पास आ कर पीर बाबा का विवरण देने लगा तो मेरे साथ का स्टेशन मैनेजर बुदबुदाया – “पिछले दस साल से यहां हूं मै. अबतक तो मेरे घर की चार दीवारी में यह कब्र थी. पहले बताते थे कि अंग्रेज स्टेशन मास्टर की रखैल की है, और अब तोड़ने की बारी आयी तो पीर बाबा की हो गयी! आजतक किसी ने दिया तक नहीं जलाया और अब भीड़ चली आ रही है!”
हनुमान जी के पास तो और बड़ा नाटक था. ज्यादा से ज्यादा जमीन घेरने को बड़ी कनात लगा कर श्रद्धालु जै – श्रीराम की अनवरत नारे बाजी कर रहे थे. कुछ लोग तो रिपीटेड हनुमान चालिसा पढ़ रहे थे. दृष्य ऐसा था कि हनुमान जी तो क्या, उनकी पूंछ भी नहीं सरकाई जा सकती थी.
हिन्दू और मुसलमान – दोनो में गजब का उन्माद और गजब की श्रद्धा थी. यह श्रद्धा एक दूसरे समाज पर प्वाइण्ट स्कोर करने, मौके की जमीन दबाने और आने वाले चुनाव के लिये मुद्दा क्रियेट करने के लिये थी.
आगे का नेगोशियेशन कैसे चला वह मैं ही जानता हूं. दस साल बाद, अगर रिटायर होने पर ब्लॉगरी करता रहा तो बताऊंगा.
कैसे निपटाया ये दस साल बाद पता चलेगा? ये अच्छी बात नहीं है!
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धूर्त लोगो से कैसी रियायत. बुलडोजर चल देने चाहिये. हमारे शहर में भी कई मन्दीरों को हटा दिया गया. यही सही रास्ता है.
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अब आपके रिटायर होने में तो बहुत समय है किसी बेनाम ब्लॉगर को ही बता दो वो बाकी सब को बता देगा….आपकी नौकरी रहेगी और ब्लॉगरी की मर्यादा भी
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बिना रिजर्वेशन यात्रा करो और टीटीई से रिजर्वेशन के लिए कहो, वह भी यही कहता है कि बाद में बताऊंगा। एक झटके में नहीं बताता। लटकाता है। लटकाने के आनंद हैं। यह लटकाने वाले जानते हैं। पर लटकने वाले पर क्या बीतती है, यह वे नहीं जानते। बस इन्ही शब्दो को दोहराता हू
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बिलकुल सही मुद्दे पर बात की आपने।हमारे शहर से नेशनल हाईवे क्रमांक 6 गुजरती है, ठीक इसी पर मंत्रालय के सामने सड़क पर ही दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर बचपन से ही देखते आए थे और बाजू में बजरंग भोजनालय। इस मंदिर के कारण सड़क यहां पर एकदम संकरी हो चुकी थी, अब जाकर लेदेकर उस मंदिर को थोड़ा पीछे सरका कर पुर्नप्रतिष्ठित किया गया है!यही हाल हमारे यहां के रेल्वे स्टेशन के सामने भी है, अहाते में ही मंदिर!
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जब तक कि किसी जगह पर कोई विशेष ऐतिहासिक मंदिर/मजार न हो उसे हटा कर दूसरी जगह ले जाने में कोई दिक्कत नहीं। बाकी ये अवश्य है कि इस तरह के मामलों में जमीन हथियाने के लिए ही नौटंकी की जाती है।आपका लेख इस बात पर एकदम सही तरीके से रोशनी डालता है।
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भाई साहब बहुत सही मुद्दा उठाया है । हर शहर का यही किस्सा है । आजकल मुंबई महानगर पालिका तो काफी निर्मम हो गयी है ऐसे हालात से निपटने में । आपको शायद पता नहीं होगा, पिछले साल ऐसे कई ‘चबूतरों’ पर बुलडोज़र चलाया गया है । लोग कयामत और प्रलय की दुहाई देते रहे । पर कोई रियायत नहीं मिली । यही सब जगह होना चाहिये ।
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-आगे का नेगोशियेशन कैसे चला वह मैं ही जानता हूं. दस साल बाद, अगर रिटायर होने पर ब्लॉगरी करता रहा तो बताऊंगा-ये रेलवई की आदत गयी नहीं आपकी ब्लागिंग में कि बाद में बताऊंगा। बिना रिजर्वेशन यात्रा करो और टीटीई से रिजर्वेशन के लिए कहो, वह भी यही कहता है कि बाद में बताऊंगा। एक झटके में नहीं बताता। लटकाता है। लटकाने के आनंद हैं। यह लटकाने वाले जानते हैं। पर लटकने वाले पर क्या बीतती है, यह वे नहीं जानते। आलोक पुराणिक
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