पिछले तीन हफ्ते से हेयर कटिंग पोस्टपोन हो रही थी. भरतलाल (मेरा भृत्य) तीन हफ्ते से गच्चा दे रहा था कि फलाने नाई से तय हो गया है – वह घर आ कर सिर की खेती छांट देगा. वह नाई जब रविवार की दोपहर तक नहीं आया तो बोरियत से बचने को मैने एक ताजा पुस्तक पकड़ी और जा पंहुचा नाई की दुकान पर. रविवार की दोपहर तक सभी केण्डीडेट जा चुके थे. नाई अकेला बैठा मुझ जैसे आलसी की प्रतीक्षा कर रहा था. मैंने सीधे लांचपैड (नाई की ऊंची वाली कुर्सी) पर कदम रखा.
उसके बाद रुटीन हिदायतें – बाल छोटे कर दो. इतने छोटे कि और छोटे करने पर वह छोटे करने की परिभाषा में न आ सकें. ये हिदायत मुझे हमेशा देनी होती है – जिससे अगले 2-3 महीने तक हेयर कटिंग की जहमत न उठानी पड़े.
जब केवल नाई के निर्देशानुसार सिर इधर-उधर घुमाने के अलावा कोई काम न बचा तो मैने उसकी दुकान में बज रहे रेडियो पर ध्यान देना प्रारम्भ किया. कोई उद्घघोषक बिनाका गीतमाला के अमीन सायानी जैसी आवाज में लोगों के पत्र बांच रहे थे. पत्र क्या थे – लोगों ने अटरम-सटरम जनरल नॉलेज की चीजें भेज रखी थीं. … भारत और पाकिस्तान के बीच फलानी लाइन है; पाक-अफगानिस्तान के बीच ढिमाकी. एवरेस्ट पर ये है और सागर में वो … एक सांस में श्रोताओं की भेजी ढ़ेरों जानकारियां उद्घघोषक महोदय दे रहे थे. मुझे सिर्फ यह याद है कि उनकी आवाज दमदार थी और कर्णप्रिय. एक बन्दे की चिठ्ठी उन्होने पढ़ी – “मैं एक गरीब श्रोता हूं. ईमेल नहीं कर सकता ” (जैसे की सभी ईमेल करने वालों के पास धीरूभाई की वसीयत हो!). फिर उद्घोषक जी ने जोड़ा कि ईमेल क्या, इतने प्यार से लिखे पत्र को वे सीने से लगाते हैं … इत्यादि.
उसके बाद माइक उषा उत्थप को. जिन्होने मेरे ब्लॉग की तरह हिन्दी में अंग्रेजी को और अंग्रेजी में हिन्दी को औंटाया. कुछ देर वह चला जो मेरी समझ में ज्यादा नहीं आया. बीच-बीच में गानों की कतरनें – जो जब समझ में आने लगें तब तक उषाजी कुछ और बोलने लगतीं.
खैर मेरी हेयर कटिंग हो चुकी थी. तबतक उद्घोषक महोदय ने भी कार्यक्रम – पिटारा समाप्त करने की घोषणा की. और कहा – आपको यूनुस खान का नमस्कार.
यूनुसखान अर्थात अपने ज्ञान बीड़ी वाले ब्लॉगर! जो मेरे ब्लॉग पर अपनी आवाज जैसी मीठी टिप्पणी करते हैं और जिनके ब्लॉग पर मैं फिल्मों के गीत पढ़ने जाता हूं. वहां गीत तो नही सुने पर अब वे अपनी आवाज में कुछ कहेंगे तो सुनूंगा. हां, अब लगता है कि वे अपने ब्लॉग पर अपने कार्यक्रमों के समय जरूर दें जिससे कि घर पर रेडियो पर सुना जा सके.
मैने नाई को हेयरकटिंग के दस रुपये दिये और लौटते हुये सोचा – दस रुपये में हेयर कटिंग भी हो गयी और ब्लॉगर मीट भी!
अरे अरे ज्ञान जी, पता नहीं कैसे आपकी इस ज्ञान बिड़ी का सुट्टा मारना भूल ही गया था । इसमें तो वो धूम्रपान निषेध का प्रतिबंध भी नहीं है । मुझसे भूल हो गयी जो इस पोस्ट को नज़र अंदाज़ कर दिया । तो आखिरकार आपने नाई की दुकान पर हमसे मुलाक़ात कर ही ली । अकसर लोगों के साथ ऐसा हो जाता है सर । मेरे एक मित्र हैं भोपाल में, कहते हैं कि जब भी ‘हेयरकट’ कराने जाता हूं तो तुम्हारी और ममता की आवाज़ सुन लेता हूं ( ममता विविध भारती की उद्घोषिका और मेरी धर्मपत्नी हैं) गोया नाई की दुकान नहीं हुई कोई लिसनिंग ब्यूरो हो गया, कि वहां पहुंचो और सुन लो रेडियो, अमां आप भी एक छुटका रेडुआ खरीद ही डालो अब, यक़ीन मानिए विविध भारती सुनकर आपको अच्छा लगेगा । ब्लॉग पर ना सही वहां आपको बिना प्रयत्न अच्छे गीत सुनने को मिलेंगे और फिर ब्लॉगर-मीट भी हो जाया करेगी । वैसे असली मीटिंग भी दूर नहीं । लगता है आपसे मिलने हमें इलाहाबाद आना ही होगा । अभी फरवरी में ही तो आए थे । फिर आयेंगे । जरूर आयेंगे । हमारी पत्नी का शहर जो ठहरा । तब आपसे असली मीट होगी । पर आपका लिखा बहुत अच्छा लगा । इसी तरह हमें ज्ञान बिड़ी पिलाते रहिये । जबलपुरिया हैं ज्ञान बिड़ी पीने के पुरानी आदत है । ये वो लत है जो हमसे छूटती नहीं ।अरे हां ये तो बता दें कि आप युवाओं का कार्यक्रम यूथ एक्सप्रेस सुन रहे थे, वो रविवार का दिन था शाम चार से पांच बजे की बात है । वो हमारी फिक्स ज्ञान बिड़ी है । दूसरी फिक्स ज्ञान बिड़ी है ‘मंथन’ जिसका जिक्र संजीत भाई ने किया है, ये कार्यक्रम मंगलवार को रात पौने आठ बजे और दोबारा बुधवार को सुबह सवा नौ बजे होता है । एकदम्मय फिक्स हय । बाक़ी की सूचना हमें ज़रूरी लगा तो देते रहेंगे ।
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ब्लॉगर मीट की बधाई ।अब जब मीट शुरू कर ही दिया है तो आगे भी जारी रखियेगा ।
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वाह! इसे कहते हैं एक पंथ तीन काज – बाल कटा लिए, यूनुस भाई से मीटिया लिए और साथ ही उनके कार्यक्रम की खिंचाई भी कर ली। 🙂
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बासूती उवाच> … पाण्डेय जी ये बात क्या सही है …. जी हां. पर नाई उसपर अमल करने में बहुत आनाकानी करते हैं. अपने आप की छवि के प्रति यह निर्ममता क्यों है – मैं स्वयम समझ नहीं पाया. शायद नाई की दुकान पर जाना पसन्द नहीं!
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पाण्डेय जी ये बात क्या सही है ….”बाल छोटे कर दो. इतने छोटे कि और छोटे करने पर वह छोटे करने की परिभाषा में न आ सकें. ये हिदायत मुझे हमेशा देनी होती है – जिससे अगले 2-3 महीने तक हेयर कटिंग की जहमत न उठानी पड़े. ” देश भर के नाइयों को इसका विरोध करना चाहिये ।घुघूती बासूती
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