यह कई बार होता है कि आप वहां नहीं पहुंचते जहां आपके ब्लॉग को लिंक कर कुछ कहा जा रहा हो. आपको ट्रिगर ही नहीं मिलता. उदाहरण के लिये मैने यूनुस पर एक पोस्ट लिखी – नाई की दुकान पर हिन्दी ब्लॉगर मीट. उनके ब्लॉग को लिंक किया. प्रतीक्षा की कि यूनुस देखने आयेंगे और ज्ञान-बीड़ी का सुट्टा लगायेंगे. उस पोस्ट पर टिपेरे आये और (मेरे स्टेण्डर्ड से) थोक में आये. पर नही आये तो यूनुस – जिनपर पोस्ट लिखी थी!
जब यूनुस ने मेरी किसी और पोस्ट पर टिप्पणी की तो मैने उन्हे ई-मेल कर चेताया कि सही पोस्ट पर टिप्पणी करो जनाब. और फिर जो टिप्पणी यूनुस ने की वह बहुत ही अच्छी है. अंश नीचे प्रस्तुत है:
यूनुस जी की टिप्पणी:
अरे अरे ज्ञान जी, पता नहीं कैसे आपकी इस ज्ञान बिड़ी का सुट्टा मारना भूल ही गया था । इसमें तो वो धूम्रपान निषेध का प्रतिबंध भी नहीं है । मुझसे भूल हो गयी जो इस पोस्ट को नज़र अंदाज़ कर दिया । तो आखिरकार आपने नाई की दुकान पर हमसे मुलाक़ात कर ही ली । ………
पर आपका लिखा बहुत अच्छा लगा । इसी तरह हमें ज्ञान बिड़ी पिलाते रहिये । जबलपुरिया हैं ज्ञान बिड़ी पीने के पुरानी आदत है । ये वो लत है जो हमसे छूटती नहीं ।……..
यूनुस की बात तो बतौर दृष्टांत है. असली सवाल है कि आप हाई-टेक ब्लॉगर गण सवेरे कुल्ला-मुखारी कर जब अपना कम्प्यूटर खोल कर ब्लॉग खंगालते हैं तो कैसे मालूम करते हैं कि आप पर किस-किस ने लिंक बना कर तीर चलाये हैं? इसके निश्चय ही कई तरीके होंगे. मैं आमंत्रण देता हूं कि आप टिपेरकर लोगों को अपना तरीका बतायें. अगर आपका तरीका ज्यादा मस्त हुआ तो मैं भी वह अपना लूंगा. अन्यथा मैं अपना तरीका बताने की हिम्मत जुटाऊंगा.
हमारे जैसे तो पुरनिया ब्राण्ड के ब्लॉगर हैं. न हमारा घेट्टो है न जवान ब्लॉगरों की जमात हमारे साथ है. पत्रकार या तकनीकी विशेषज्ञ भी नहीं है. रेलवे के तो लोग भी हिन्दी ब्लॉगरी में नही हैं जो हमें पट्टीदारी के लिहाज से लिंक करें. अत: हमें तो ज्यादा फायदा नहीं है अपने लिंक जानने की तकनीक का. पर मैं निश्चित ही चाहूंगा कि अगली बार यूनुस ज्ञान बीड़ी का सुट्टा लगाना भूल न जायें कि उन्हें ई-मेल करनी पड़े! इसी तरह आप लोगों पर भी कभी कंटिया फंसाऊं तो आप भी ओवरलुक न कर पायें!
पर्चा आउट. आप ई-पण्डित पर जा कर समस्या का समाधान देख सकते हैं. चिठ्ठाजगत वालों का समाधान भी काबिलेगौर है.
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ये भी पूछिये कि कौन आपको अब लिंक नहीं कर रहा है .. तो हम बता सकते हैं.. और फिर उस से पूछ सकते हैं कि बड़े भाई क्या खता हुई क्यों नाराज़ हैं.. क्षमा करें मुझसे अनजाने में हुई भूलों को..
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ज्ञान भैया हम तो वाक़ई इसी चक्कर में चूक गए इस पोस्ट को देखने में । कोई ऐसा औज़ार हो तो मज़ा आ जाए । वैसे सबसे अच्छा रहता है चौकन्ने रहकर देखना । दरअसल कभी समय कम कभी ज्यादा । बस इसी चक्कर में गफलत हो जाती है ।
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वैसे आपकी एक अपनी पहचान है आपको किसी के साथ की आवश्यकता नहीं है । आप सकारात्मक लिखते हैं और आपका लिखा मन को पसन्द आता है इसीलिये टिपियाने आ जाते हैं, कोई कर्जा उतारने नहीं आते, :)अब और क्या कहे.हा किसी दिन आपसे पंगा जरुर लेना है अभी उधार ही चल रह है ना,वो इलाहाबाद आकर लेगे:)
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आपका तरीका भी आजमाया जायेगा, लेकिन मैं नारद के लगभग सभी गद्य ब्लाग्स और कुछ पद्य ब्लाग्स को पढता हूँ । आपका तरीका भी आजमाया जायेगा ।वैसे आपकी एक अपनी पहचान है आपको किसी के साथ की आवश्यकता नहीं है । आप सकारात्मक लिखते हैं और आपका लिखा मन को पसन्द आता है इसीलिये टिपियाने आ जाते हैं, कोई कर्जा उतारने नहीं आते, :-)साभार,नीरज
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यदि आप किसी पोस्ट को लिंक करों तो लिंक मिल जाता है ..वो पोस्ट पर कॉमेंट के रूप में आ जाता है .. हमें तो यहीं से पता चलता है.. लेकिन आप लिंक ही नहीं करते ..केवल नाम लिख देते हैं ..हमारा नाम भी लिखा पर लिंक नहीं किया ..:-) आप लिंक लगाइये ..फिर देखिये कैसे दौड़े चले आते हैं…
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लिंकिंग का शास्त्र हमें भी समझाया जाये। ये कैसे होता है, इसके गुण-दोषों पर प्रकाश डाला जाये। और ज्ञानजी जरा इस विषय पर ज्ञान प्रसार करें, कि इत्ते विज्ञापन कहां से और कैसे ले आये हैं, अपने चिट्ठे पर।
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अभी तो २५-५० चिट्ठे सरसरिया के देख लेते हैं मगर दिल घबराता है कि जब १५००-२००० लिखे जाने लगेंगे तब क्या होगा..अच्छा मुद्दा उठा लिये हो. हम भी यहीं मुहाने पर बैठकर चिट्ठापीरों के जवाब का इन्तजार करते हैं..थोड़ा खिसक कर बैठो भाई..बैठने की जगह तो दो, तब तो बिड़ी जलायें. 🙂
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