कल रवि रतलामी ने अपने फीड का सैकड़ा पार करने की खबर दी. रवि वह सज्जन हैं जो अकस्मात मुझे नेट पर दिखे थे. मैं रतलामी सेव की रेसिपी गूगल सर्च में खंगाल रहा था और मिल गये रवि रतलामी! उसी के बाद मुझे हिन्दी में नेट पर लिखने की सनक सवार हुई. उनका दफ्तर मेरे दफ्तर और घर से कुछ कदम की दूरी पर था, पर वहां रतलाम में हम कभी नहीं मिले. मिले तो अभी भी नहीं; पर जान जरूर गये एक दूसरे के बारे में.रवि ने फीड का सैंकडा कल या परसों पार किया हो, ऐसा नहीं है.यह तो ब्लॉगर-फीडबर्नर की फीड इण्टीग्रेशन के कारण है. अत: फीड का सैकड़ा तो रवि पहले मारे हुये थे, पहचान में कल आया. इसलिये कल का खास महत्व नहीं है.
जो बात मैं जोर देना चाहता हूं, वह यह है कि हिन्दी ब्लॉगरी में, जहां बहुत सा क्लिक का यातायात फीड एग्रेगेटरों के माध्यम से होता है, बनिस्पत इण्डीवीजुअल पाठक द्वारा फीड सबस्क्राइब कर, वहां 110 की फीड बहुत इम्प्रेसिव है.
मैने उनके ब्लॉग का लेंस लेकर अध्ययन नहीं किया है. (वैसे भी सब अपने ब्लॉग को लेकर आत्ममुग्ध रहते हैं – दूसरे का ब्लॉग क्रिटिकली कौन देखता है!) पर यह शतक की सूचना वह करने के लिये मुझे उत्प्रेरित कर रही है – कि उनके ब्लॉग को विभिन्न कोणों से विश्लेषित किया जाये. ब्लॉगरी में फीड बढ़ाने के तरीके ढ़ूंढ़ने के लिये यह जरूरी लगता है.
यह – खुर्दबीन से विश्लेषण मुझे या हममें से किसी को करना है, पर बेहतर होगा कि रवि इस बारे में स्ट्रेट हिन्दी में; बम्बईया फिल्मों वाली में नहीं (वह स्टिकी हिन्दी तो समझने में समय लगता है), जिसमें उन्होने तरंग में आकर पोस्ट लिखी है; कुछ लिखें. बहुत सम्भव है ऐसा वे पहले लिख चुके हों. अगर वैसा है तो उसका लिंक प्रदान करें.
रवि वे शख्स है, जिन्हें मैं ब्लॉगरी में पसन्द करता हूं.
*- रवि, आर यू लिस्निंग? डू यू स्टिल हैव माई इनीशियल ई-मेल इन योर मेल बॉक्स?
रवि रतलामी ही वह अपराधी हैं जिन्होंने मुझे ब्लागिंग के जाल में फंसाया। हजारों घंटे ब्लागिंग में बरवाद कर दिये जो मैं दूसरी और किसी तरह से बरबाद करता। किताब का आइडिया उत्तम है। :)उन्मुक्तजी रविजी के साथ हमको भी पसंद करते हैं इसके लिये शुक्रिया।:)
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अरे भाई पांडे जी, ई कहॉ आप सैकडे-पचासे के फेर में पडे हैं. लोग लिख रहे हैं और पढे जा रहे हैं, जेई का कम है? और भाई काकेश जी आपके बाल अगर वास्तव में सफ़ेद हो रहे हैं तो नई पीढ़ी कहे जाने पर तो आपको गदगद हो जाना चाहिए. पर आप हैं की झुट्ठे तुनके जा रहे हैं.
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रवि जी तो हमारे भी पसंदीदा चिट्ठाकार हैं, कभी बताऊंगा क्यों? 🙂
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ओह, आह, ओह, मैंने सुन लिया आपको भी और सृहृदय टिप्पणीकारों को भी ! आप सभी का हार्दिक धन्यवाद.आप सभी के विचारों ने, निश्चित रूप से मेरी जिम्मेदारियाँ बढ़ा दी हैं.शीघ्र ही लिखता हूँ इस पर – इसी बारे में लिखने के लिए शास्त्री जी ने भी किसी अन्य चिट्ठे पर कहा है.
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