कभी-कभी धुरविरोधी की याद आती है


मैं बेनामी ब्लॉगरी के कभी पक्ष में नहीं रहा. पर मैने धुरविरोधी को; यह जानते हुये भी कि उस सज्जन ने अपनी पहचान स्पष्ट नहीं की है; कभी बेनाम (बिना व्यक्तित्व के) नहीं पाया. मेरी प्रारम्भ की पोस्टों पर धुरविरोधी की टिप्पणियां हैं और अत्यंत स्तरीय टिप्पणियां हैं. धुरविरोधी के अन्य सज्जनों से विवाद हुये होंगे, पर मैने उन सज्जन को अत्यंत संयत और संवेदनशील व्यक्ति पाया. उनकी एक कविता जो राजा-की-मण्डी में अभावग्रस्त मां के विषय में थी; ने मुझे अंतर्मन में दूर तक छुआ. पढते हुये मेरी आंखें नम हो गयी थीं. और ऐसा मैने टिप्पणी में भी स्पष्ट किया था.

मुझे लगता था कि मैं उन सज्जन को भले न जानता होऊं, पर ब्लॉगरी में अन्य लोग जानते होंगे या उनका ई-मेल एड्रेस होगा. जब मैने ब्रेन इंजरी की वेब साइट के लिये जिन लोगों ने सहायता की हामी भरी थी, उनकी शॉर्ट लिस्टिंग की, तो उनमें धुरविरोधी भी थे. पर उनका ई-मेल एड्रेस मिला ही नहीं! शॉर्ट लिस्टिंग और उसके बाद की गतिविधियां तो नॉन-स्टार्टर सी रहीं; पर मुझे पता चला कि शायद किसी के पास इन सज्जन का पता-ठिकाना नहीं है.

धुरविरोधी के मेरे ब्लॉग पर पहले 2 कमेण्ट:
मार्च 1, 2007: ज्ञानदत्त साहब; विरोध किसी को पचता नहीं तो “अहो रूपम अहो ध्वनि” का गान ही ठीक है ना?
वैसे आपके लिये भी मेरे मन में अहो ध्वनि का भाव है.
मार्च 5, 2007: ज्ञानदत्त साहब, मेरे मन मैं आज फिर अहो ध्वनि के भाव आ रहे हैं. लिखते रहिये, धुरविरोधी पढता रह्वेगा. (अब नहीं पढता!)
यह वह सामय था जब मेरा ब्लॉग फीड एग्रेगेटर पर पंजीकृत भी नहीं था. मुझे मालुम भी नहीं था एग्रेगेटर के विषय में! धुरविरोधी कैसे ब्लॉग पर आये, यह वही जाने!

ऐसा नहीं कि मेरी धुरविरोधी से पूर्ण वैचारिक साम्य रहा हो. उदाहरण के लिये मैं नन्दीग्राम के मामले में किसानों पर जुल्म के खिलाफ था, पर मुझे लगता था कि बंगाल का औद्योगीकरण भी जरूरी है. शायद धुरविरोधी ने मेरी संवेदना को समझा था और मैने उनकी. कभी कोई मतभेदात्मक स्थिति नहीं पैदा हुई; जबकि मैने एक ब्लॉग पोस्ट भी लिखी थी नन्दीग्राम पर कितने ब्लॉग बनायेंगे.

यह सब मैं इसलिये लिख रहा हूं कि मुझे धुरविरोधी का ब्लॉग अचानक शांत होना जमा नहीं. उस ब्लॉग पर मेरी भी कुछ टिप्पणियां थीं मेरा भी कुछ अंश था. इसके अतिरिक्त उसकी भाषा मुझे हिन्दी ब्लॉगरी के सर्वथा उपयुक्त लगती थी साहित्यिक आडम्बर से रहित, सरल और भद्र.

मेरा मत है कि ये सज्जन कहीं दूर नहीं गये होंगे. अभी भी पूरे तौर से वर्तमान परिदृष्य के भागीदार नहीं तो दर्शक अवश्य होंगे. कितना अच्छा हो कि प्रॉसेस ऑफ नॉर्मलाइजेशन के तहद अपना ब्लॉग पुन: प्रारम्भ करें. या और भी बेहतर हो अपने ई-मेल पते के साथ ब्लॉग प्रारम्भ करें.

पर मेरा सोचना, मेरा सोचना है. पता नहीं और लोग इसे किस प्रकार से लें.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

12 thoughts on “कभी-कभी धुरविरोधी की याद आती है

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