अभय ने ब्लॉग के फुल फीड की बात की परसों और मैने निर्णय लेने में समय नहीं लगाया। फीडबर्नर में खट से समरी फीड को डी-एक्टीवेट कर दिया। पर मैं अभय तिवारी से कहता हूं कि वह धन और उसकी दिव्यता के विषय में विचार बदलें। वह जवान सुनता ही नहीं।
पंकज अवधिया जी ने कहा कि जो चित्र ब्लॉग पर लगाऊं, उसका सोर्स बताऊं। मैने कोशिश की वैसा करने की। और फल यह हुआ कि मुझे अपने सस्ते मोबाइल कैमरे पर ज्यादा यकीन करना पड रहा है। ममता जी ने पूछ लिया कि अपना नाम क्यों चिपका रखा है चित्र पर? शिवकुमार मिश्र ने कहा कि (बकौल विक्रम सुन्दरराजन) मैं जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का वाटर मार्क चित्रों पर लगा कर अर्थ व्यवस्था पर विश्वास जता रहा हूं क्या? मजे की बात यह रही कि झांसी से मीठीजी ने यह पूछ लिया कि मैं चित्र चुपके से लेता हूं या अलानिया? उनका सवाल अंग्रेजी में था और उनको मेल से मैने जवाब भी दे दिया। पर पूरी प्रॉसेस में यह लगा ब्लॉग माने ‘बेलगाम’ नहीं है। आप अपना जो चरित्र पेश करते हैं – और अगर रोज एक पोस्ट तथा 20 टिप्पणियाँ सरका रहे हों तो छद्म चरित्र नहीं पेश कर सकते – उसकी रक्षार्थ आप उत्तरदायी बन जाते हैं। आपको अपनी और अपने में पढ़ने वालों की आस्था की रक्षा करनी होती है। ‘गैर जिम्मेदार और अपनी मर्जी का मालिक ब्लॉगर’ की छवि मिथक सी बनती दीखती है।
मित्रों, लगता है कि जिन्दगी पूर्ण चिर्कुटई में गुजारने की जो स्वतंत्रता थी, उसमें खलल आ रहा है। ब्लॉग पर जो भी लिखा जा रहा है – वह एक तरह से स्कैनर, जीरॉक्स या रेसोग्राफ पर है – पर्सनल डायरी पर नहीं! आप पतली गली से रिगल (wriggle) कर निकल नहीं सकते। ब्लॉग आपके व्यक्तित्व का विस्तार है। आपके फिजिकल, इण्टेलेक्चुअल, इमोशनल और स्पिरिचुअल अस्तित्व का एक नये आयाम में एक वैश्विक प्रमाण। क्या आप भी ब्लॉग को उस प्रकार से लेते हैं?
कल एक नये ब्लॉगर के कहे पर मैने उनकी पोस्ट देखी। दंग रह गया नयी पीढ़ी की काबलियत पर। आज मैं लिंक नहीं दे रहा, थोड़ा और परखता हूं उनको। पर यह जरूर लगता है कि हिन्दी ब्लॉगरी बहुत चमकेगी। बाईस-पच्चीस साल के जवान इतना गदर प्रतिभा प्रदर्शन कर रहे हैं तो थोड़ा सा अध्ययन और अनुभव से जाने कौन सी ऊंचाइयाँ छुयेंगे!
मैं सिनिसिज्म नहीं दर्शाऊंगा। मैं हाई मॉरल प्लेटफॉर्म जैसा कुछ नहीं ले रहा हूं कि तुलनात्मक रूप से औरों में या समाज में दोष दिखें और अपने में गुण ही गुण। और इसके उलट मैं अपने को खिन्न/हीन भी नहीं समझूंगा।
मैं बस यही कहना चाहूंगा कि हम सब में आस्था बनी रहे, परस्पर।
एक बात: कई ब्लॉगर अपने पोस्ट की पब्लिश के समय और दिनांक के प्रति सजग नहीं रहते। एक उदाहरण तो मुझे नीरज जी की पोस्ट ‘गीत भंवरे का सुनो’ में मिला है। यह उन्होने टेम्पररी तरीके से 3 नवम्बर को पब्लिश की। फीड एग्रेगेटर उसी दिन दिखाता रहा। तब क्लिक करने पर पेज मिला ही नहीं। बाद में यह उन्होने 5-6 नवम्बर को छापी और हम भी देखने से चूक गये – देर से देखी! गजल बड़ी भाव युक्त है पर छापने उतारने की लुका-छिपी में बहुतों ने नहीं देखी होगी। मैं नीरज जी से अनुरोध करूंगा कि वे सजग रहें पोस्ट पब्लिश करने के बारे में और आपसे अनुरोध करूंगा कि यह गजल अवश्य पढ़ें।
मेरे ब्लॉग पर आज का गाँधी जी का वचन है: Honest disagreement is often a good sign of progress. और असहमतियाँ मुझे भी आप से कई हैं और शिकायत भी..मिसाल के तौर पर अब देखिये आज फिर आप ने हमें एक लिंक से वंचित कर दिया.. और रही बात धन की दिव्यता वाली.. वो इतनी आसानी से सुलझने वाला बात थोड़ी है.. जब क्रांति के दिन हम और आप आमने सामने होंगे.. उस दिन कर लेंगे फ़ैसला..:)
LikeLike
मैं आप की इस बात से सहमत हूँ की युवा पीढ़ी में ग़ज़ब की प्रतिभा है. मैंने भी चंद युवाओं के ब्लॉग देखें हैं और मानता हूँ की अगर वे लिखते रहे तो हिन्दी को जो मान हमारी पीढी नहीं दिला सकी वे उसे प्राप्त करवा देंगे. न उनकी सोच बल्कि लेखन की कला ने भी मुझे चकित किया है. ब्लॉग वास्तव में ब्लॉगर के बारे में अप्रतक्ष्य रूप से बहुत कुछ बता देता है. ब्लॉग पोस्ट को लेकर हुई गलती के लिए मेरी नासमझी जिम्मेदार है आपने अपने ब्लॉग पर सब को मेरी ग़ज़ल पढने का निमंत्रण देकर मुझे गद गद कर दिया है. नीरज
LikeLike
ई-मेल पर समरी की जगह फ़ुल फ़ीड ही फ़ायदेमंद है, क्योंकि लोग ब्लॉग पर आएं उससे ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि हमारा लिखा ज्यादा से ज्यादा प्रसारित हो!! यह मेरा मानना है इसलिए मैने शुरु से ही अपने ब्लॉग की फ़ुल फ़ीड एक्टीवेट रखी है।अब बात होती है पाठकों की तो पाठकों से सतत संपर्क में रहा जाना जरुरी है, चाहे टिप्पणियों के माध्यम से चाहे ई मेल के माध्यम से, ताकि समीक्षा होती रहे!! मैं समय समय पर अपने ब्लॉग के सबस्क्राईबर्स को ई मेल करता रहता हूं, क्योंकि मेरे अधिकांश सबस्क्राईबर्स नॉन-ब्लॉगर है!ब्लॉगर अपनी मर्जी का मालिक तो हो सकता है पर गैर ज़िम्मेदार तो कतई नही हो सकता!!नए ब्लॉगर का लिंक उपलब्ध करवाईएगा , वैसे आपने परिभाषा नही दी है कि “नयी पीढ़ी” में आप किन्हें शामिल मानते हैं!!आस्था का बना रहना बहुत ज़रुरी है, आस्थाएं टूटती है तो वे सिर्फ़ आस्थाएं नही रह जाती बल्कि उनके साथ मन या खुद इंसान भी टूटने लगता है!!कुल मिलाकर बढ़िया पोस्ट!!
LikeLike
जब मै नया-नया ब्लागर बना तो मैने पाया कि लोग दूसरे की सामग्री अपने ब्लाग मे डालकर वाह-वाही लूट रहे है। ऐसे ही चित्रो के साथ हो रहा है। पहले मामले मे अब सुधार आया है। ज्यादातर लोग अपनी मूल रचना प्रकाशित कर रहे है। उन्हे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। चित्रो के मामले मे आपने जो पहल की है वह अनुकरणीय है। आशा है अब सभी इसे अपनायेंगे। यही छायाकार का सही सम्मान है। आपने देखा होगा कि ब्लाग सामग्री की चोरी पर समय-समय पर बडा बवाल मचता है पर अपने समय इसे भुलाकर कही से भी चित्र उठाकर डाल दिया जाता है। आप अपने है इसलिये आपको सलाह देते है। आप भी हमे अपना ही समझते है इसलिये तो उसे बिना देर अपनाते है।
LikeLike