परसों की अपनी सवेरे की ट्रेन-मॉनीटरिंग पोजीशन की बात करता हूं आपसे। इस पोजीशन के 32 A4 साइज पन्नों के साथ नरसों की रेल दुर्घटना का समय-विवरण (event-log) और चम्बल एक्स्प्रेस (जिसके इंजन ने टक्कर मारी थी) के ड्राइवर-असिस्टेण्ट ड्राइवर का बायो डाटा भी फैक्स किया था मेरे नियंत्रण कक्ष ने। अगर ये कर्मचारी जांच में जिम्मेदार पाये गये तो इनकी नौकरी खतरे में है।
इस बॉयो डाटा में था कि सैंतालीस साल के लोकोमोटिव ड्राइवर के परिवार में पत्नी, सत्रह साल का लड़का और 14,11 साल की दो लड़कियाँ हैं। निश्चय ही बच्चों का भविष्य अभी बना नहीं है। क्या होगा उनका?
यह ड्राइवर दर्जा नौ पास है। बतौर स्टीम इंजन क्लीनर भर्ती हुआ था बीस वर्ष की उम्र में। पता नहीं कैसे संस्कार हैं। सामान्यत चालकगण पैसा ठीक-ठाक पा जाते हैं। काम के चलते घर से बहुत समय दूर रहते हैं। पत्नी अगर कुशल न हुई तो पैसे का प्रबन्धन ठीक नहीं होता। संतति भी बहेतू और आवारा बन जाती है। पढ़े लिखे कम होने के कारण अगर नौकरी गयी तो वैकल्पिक व्यवसाय भी नहीं मिलता। मलाई खाते खाते छाछ के लाले पड़ जाते हैं।
विचित्र बात है – एक हल्की सी चूक और उसके गम्भीर परिणाम होते हैं। दुर्घटना जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जांच कर्मचारी को तोड़ डालती है। नौकरी से निकाले जाने पर सालों वह अपील और रिव्यू-रिवीजन की अपीलें करता रहता है। इस प्रक्रिया में पैसे खत्म हो जाते हैं, प्रारम्भिक सहानुभूति रखने वाले भी किनारा कर लेते हैं। अंत में कर्मचारी अकेला जद्दोजहद करता रहता है। कभी-कभी सेण्ट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के चक्कर भी लगाता है। एक पतली सी डोर से आस बन्धी रहती है।
जब लोग अपना काम करते हैं तो क्या इस कोण को ध्यान में रखते हैं कि अगर उनके कदाचार या लापरवाही के कारण उनकी जीविका चली जाये तो उनके परिवार का क्या होगा? मैने कई परिवारों को सक्षम अधिकारी के पैर पकड़ते, गिड़गिड़ाते देखा है। कई परिवार तो यह शॉक सह नहीं पाते। उन्हें घिसटते-बिखरते देखा है।
उम्र के साथ ज्यादा संवेदना महसूस करने लगते हैं हम। खुद मैने कई गलती करते कर्मचारी नौकरी से निकाले हैं। पर अब कर्मचारियों के परिवार की तकलीफें ज्यादा महसूस होती हैं।
यहां की पालिसी " hire & fire " बड़ी हृदयहीन है – :-((आपकी संवेदना बनी रहे – – लावण्या
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समझ नही पा रहा हूँ क्या टिप्पन्नी करूं.
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जरूरी नहीं की हमेशा किसी न किसी की गलती हो ही. लेकिन अगर तमाम मासूम यात्रियों की जान गई है किसी घटना से, गाज टू गिरानी ही है किसी न किसी पर. सचामुचा बड़ा कठिन होता होगा एक प्रशासक के तौर पर निर्णय लेना.
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आपने सही कहा है.. बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो काम के समय ये ध्यान रखते होंगे की अगर उनकी नौकड़ी खतरे में पर जाये तो उनके परिवार का क्या होगा?मुझे अभी भी बचपन की एक घटना याद है जब मेरे पापाजी किसी प्रमंडल में जांच के लिये गये हुये थे और मैं भी उनके सथ था.. वहां के ब्लौक डेवेलपमेंट आफिसर थोड़ी देर तक पापाजी को अपनी सफाई देते रहे और अचानक उनके पैरों में गिर कर माफी मांगने लगे, उसी समय मेरे पापाजी ने मुझे बाहर जाकर बैठने को कहा.. मुझे उस समय तो कुछ भी समझ में नहीं आया था पर शायद अब आ रहा है…
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