टाटा की लखटकिया कार कैसे सम्भव है? दुनियाँ के किसी और हिस्से से ऐसी सस्ती कार की बात नहीं आयी। टाटा की बात को भी काफी समय तक अविश्वास से लिया गया। यह तो अब है कि समझा जा रहा है कि भले एक लाख में न हो, सवा लाख में तो कार मिलने लगेगी। अगले साल के शुरू में यह कार नुमाइश के लिये रखी जायेगी और सन 2008 के मध्य में मार्केट में आ जायेगी।
इसके देखा-देखी बजाज आटो, रेनाल्ट (फ्रेंच कम्पनी) और निसान मोटर के साथ मिल कर $3000 में अपनी कार दुनियाँ भर में लाने की योजना रखते हैं। हुन्दै मोटर इण्डिया कम्पनी $5000 में ऐसी कार लाने की बात कर रही है। कुल मिला कर 2008-09 में छोटी और सस्ती कारों की लाइन लगने जा रही है। और सबके पीछे टाटा की लखटकिया कार का साकार होने जा रहा स्वप्न ही है।
एक लाख की कार का बनना मुझे लगता है कि भारत में ही सम्भव है। भारत ही ऐसा देश है जहां इतनी सस्ती डिजाइन की जा सकती है। जबसे मैने अपनी आंख से जुगाड़ ट्रेक्टर देखा है मैं इस देश के लोगों की प्रतिभा का कायल हो गया हूं। मेरा कहना यह नहीं है कि टाटा की कार का डिजाइन जुगाड़ जैसा है – वह तो निश्चय ही बेहतरीन होगा। मैं तो मात्र भारत में सस्ता और उत्कृष्ट डिजाइन हो पाने की सम्भावना की बात कर रहा हूं जो अन्यत्र सम्भव नहीं लगता। यह डिजाइन नयी सोच के हिसाब से हो सकता है – रिवर्स इंजीनियरिंग के हिसाब से नहीं।
रतन टाटा उवाच 24 जनवरी’05 को बिजनेस वर्ल्ड में : Let’s take the example of an Indian refrigerator manufacturer who is trying to go from A to B. It will go and buy some benchmark refrigerator, will take it apart, and reverse engineer – we’re still in that phase – then make a product which may not be as good. Or, by luck, better. Some of our companies are in that position. Each time they have to develop a product, they have to find a product they want to emulate, take it apart, reverse engineer. I think we will have really arrived when we don’t need to do that. |

लगभग वैसा ही बजाज आटो के साथ होगा। उनके पास दुपहिया वाहनों के पार्ट्स के बहुत से सप्लायर्स हैं जो कार के पार्ट्स वेण्डर्स में अपग्रेड होंगे और पार्ट डिजाइन भी करेंगे। हुन्दै मोटर इण्डिया कम्पनी के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। वैसे भी वह दुगने दाम की कार की बात कह रही है।
मैं यह कार खरीदने की सोच से नहीं लिख रहा हूं। पर उपलब्ध सूचना के आधार पर कल्पना करना मुझे आता है। और मैं इस बात से आश्वस्त हूं कि सस्ती कार (अन्य स्तरीय चीजें भी) भारत में बन सकने के लिये सही वातावरण है। उद्यमिता और प्रतिभा – दोनो की कमी नहीं है। जबरदस्त सिनर्जी है!
(1. ऊपर चित्र 24 जनवरी 2005 के बिजनेस वर्ल्ड के पेज से है। बहुत सम्भव है इसका टाटा की आने वाली कार से कोई समरूपता न हो।
2. सागरचन्द नाहर जी का ये जुगाड़ बहुत मस्त है! ऊपर मैने इस्तेमाल कर रखा है।)
कार, कार और कार. सस्ती कार और महंगी कार सब तरह कि कारें उपलब्ध है भी और हो भी जायेगी पर इनको चलाने के लिए पेट्रोल या डीज़ल और रास्ते कंहा से आयेंगे.
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भाई साहब, कार तो आएगी ही। अभी खबर आई थी कि कई अन्य मामलों में भी टाटा की लखटकिया नम्बर वन होगी। तकनीकी हिसाब से। साथ ही वह २५-२८ का एवरेज भी देगी। अब देखना यह है कि कहीं मरम्मत कराने में कम कीमत की वसूली ना हो जाए। साथ ही पेट्रोल की कीमत का क्या होगा जो १०० डॉलर प्रति बैरल पहुंच चुका है।
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रोचक जानकारी.. अगर ऐसी कार बाज़ार में आएगी तो निश्चित रूप से होनहार लोग पर्यावरण का ध्यान रखने के लिए पानी,खाने के तेल और कूड़े करकट से इंजन स्टार्ट करेंगे… देखिए — http://es.youtube.com/watch?v=Gi7-Ly42t5Q
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मैं भी उस भयावह दिन की कल्पना कर रहा हूँ जिस दिन सस्ती कारें बिकने लगेंगी और उसके बाद १८-२० साल के बच्चे कारें भगाया करेंगे और दुर्घटनाएं आम हो जायेगी। ट्रेफिक का क्या होगा यह तो सोच कर ही डर लगता है।हमारे यहाँ हैदराबाद में ट्रेफिक जाम होना आम है, जब यह कारें चलने लगेंगी, बाप रे.. क्या ओगा तब।लिंक देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
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ज्ञान भाई!टाटा की लाख्ताकिया कार के बारे में ठीक-ठीक जानकारी देने के लिए बधाई. बहरहाल इसके इंजीनियरी पक्ष की बाट तो आप ही कर सकते हैं. उस पर मेरा कुछ कहना नहीं है, लेकिन एक सवाल मेरा जरूर है और वह है पर्यावरण को लेकर. भारत में ईएमआई व्यवस्था आ जाने के कारण पहले से ही कारों की जो लाइन लग गई है, उसे संभालने में ट्रैफिक व्यवस्था बेकार हो गई है. अब जब यह भी आ जाएगी तो सोचिए ट्रैफिक और पर्यावरण का क्या होगा? यही नहीं, जब मोटरसाइकिल आसानी से नहीं मिलती थी तो लड़कियों के बाप साइकिल देकर छूटी पा जाते थे. पर अब जिनके चिरंजीवों की आमदनी पेट्रोल के खर्च संभालने लायक भी नहीं होती है वे भी दहेज़ में मोटरसाइकिल चाहते हैं. मुझे तो लगता है अब यह मांग सीधे कार की और बढ़ जाएगी और कोई भरोसा नहीं की साथ में तीन-चार साल तक पेट्रोल का खर्च भी सौभाग्याकान्क्षिनियों के पिताओं के ही सिर आए.
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