(कल से आगे—) यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो, तो छात्रो के रूप मे हम गम्भीर अध्ययन के कालयापन के स्थान पर अपने पाठ्यक्रम से अलग की गतिविधियो मे ही अधिक रुचि लेंगे और हम ऐसे विचारो तथा कार्यों मे व्यस्त रहेंगे, जो हमारे जीवन कालिका को गलत आकार देंगे और इसके फ़लस्वरूप हम खिलने के पहले ही मुरझा जायेंगे। बादमें जब हमें अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करना पड़ेगा, तो पता चलेगा कि हम कहीं के नहीं रहे। और तब हम निर्लज्जतापूर्वक दूसरों द्वारा उपार्जित रोटियों पर पलते हुये, आनेवाली क्रान्तियों के स्वप्न देखेंगे।
कल की टिप्पणियों में चरित्र और स्वामी/सन्यासी के प्रति एक उपहास भाव दीखता है। चरित्र के गिरते स्तर; चरित्रहीनता से तथाकथित रूप से मिल रही सफ़लता तथा ढोंगी सन्यासियों के व्यापक प्रपंच से यह भाव उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है। पर यह शाश्वत नहीं रहेगा।
ट्र्यू-नॉर्थ या ध्रुव सत्य बदल नहीं सकता। यह मेरा प्रबल विश्वास है।
यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो, तो हमारा ज्ञान बड़ी जटिलता के साथ मनुष्य की बरबादी के काम में लगेगा; छोटी-छोटी चीजों के लिये हम अत्यन्त बुद्धिमत्ता का प्रयोग करेंगे और हमारा अथक उद्यम भी निष्फ़ल सिद्ध होगा।
यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र का अभाव हो, तो उचित विचार हमारे लिये असम्भव होगा, और गलत विचारों से भला आकांक्षित फल कैसे प्राप्त हो सकेगा? यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो, तो हम या तो अतीत में रहेंगे या भविष्य में, न कि जाग्रत वर्तमान में। हमारी शक्तियां आत्मसुधार या सामाजिक हित के साहसपूर्ण सन्घर्ष मे लगने के स्थान पर, निरन्तर जगत के दोषो की शिकायत करते हुये अतीव नकारात्मक ढ़ंग से खर्च होंगी।
यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र का अभाव हो, तो हमारे वैवाहिक सम्बन्ध बालू के घरौन्दों जैसे, घर के सांपों के विवर के समान, सन्तान लोमड़ियों जैसे और मानवीय सम्बन्ध स्वार्थ तथा चालबाजी से भरे होंगे। इसके परिणाम स्वरूप, गृहविहीन अनाथों, अपराधियों, धूर्तों, ठगों, पागलों तथा असामाजिक तत्वों में वद्धि होगी।
यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो, तो लोकतन्त्र में ऐसे लोग सत्ता पर अधिकार जमा लेंगे कि जनता पुकार उठेगी, ’हाय, कब हमें एक तानाशाह मिलेगा!’ यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र का अभाव हो, तो योजना के अनुसार अन्न का उत्पादन होने पर भी सबके लिये पर्याप्त भोजन का अभाव होगा। मानव के चरित्र के समान ही अन्न भी लुप्त हो जायेगा।
यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र का अभाव हो, तो हमारी आपात प्रगति भी वस्तुत: अधोगति होगी, हमारी समॄद्धि ही हमारे विनाश का कारण होगी और हमारी अत्यन्त जटिल पीड़ायें समाप्त होने का नाम ही न लेंगी। यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र का अभाव हो, तो सर्वत्र भौड़ेपन का साम्राज्य होगा, हमारे चेहरों की चमक खो जायेगी, हमारे नेत्रों का तेज, हॄदय की आशा, मन के विश्वास की शक्ति, आत्मा का आनन्द – सब चले जायेंगे।
स्वामी बुधानन्द की पुस्तिका – “चरित्र-निर्माण कैसे करें”, अध्याय – 4 के अंश।
अद्वैत आश्रम, कोलकाता से प्रकाशित। मूल्य रुपये 8 मात्र।
इस पुस्तक के आगे के अध्यायों में चरित्र साधन, सुनियोजित जीवन और पूर्णता के विषय पर बहुमूल्य विचार हैं। मैने उनका बहुधा पारायण किया है; यद्यपि चरित्र निर्माण तो सतत प्रक्रिया है जो शायद जन्मान्तरों में जारी रहती है।
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहनाऔर अपना काम है लगे रहनाइस विषय पर शायद ही कोई ब्लाग हो। यदि सम्भव हो तो महिने का एक दिन निश्चित कर ले इस प्रकार के लेखन के लिये ताकि हम जैसे भटक रहे लोग मूल बातो को एक बार फिर याद कर ले। इसीलिये मै आपके ब्लाग को राजस्थानी थाली कहता हूँ। जहाँ विविधता की किसी तरह की कमी नही है। 🙂
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आपने काफी उपयोगी किताब ढूढ कर काफी सशक्त भाग अपने चिट्ठे पर दिया है. अब किताब के लिये आदेश भेजते हैं.चरित्र के बिन सब कूछ अराजकत्व क्यों है इसका विश्लेषण और प्रस्तुत कर दें तो सोने पर सुहागा हो जायगा — शास्त्री
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काफ़ी पहले इस पुस्तिका को अंग्रेज़ी में पढ़ा था। शायद मूल रूप से अंग्रेज़ी में ही लिखी गई है। उम्दा अंश पुनः याद दिलाने के लिए धन्यवाद।
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