मैने पहला काम चिठ्ठों को पसन्द करने का किया है। अब तक मेरे द्वारा चिठ्ठाजगत पर पसन्द किये चिठ्ठे शून्य थे। मैं सारा पठन गूगल रीडर के माध्यम से करता था। पर मेरा पसन्दीदा चिठ्ठाजगत का पन्ना मुझे प्रॉमिजिंग लगता है, और बहुत सम्भव है कि हिन्दी चिठ्ठा पठन इसके माध्यम से करने लगूं।
मुझे पक्का पता नहीं कि यह फीचर चिठ्ठाजगत पर पहले था या नहीं और ब्लॉगवाणी में यह व्यक्तिगत पेज की सुविधा है या नहीं। पर 1300-1400 ब्लॉग्स के जंगल में अपने काम के 40-50 ब्लॉग्स को को एक पन्ने पर देखना ‘आहा!’ अनुभूति है। यह अनुभूति गूगल रीडर से लिया करता था; अब शायद हिन्दी एग्रेगेटर देने लग जाये।
यह लेख पढ़ने के चक्कर में आज की राइट-टाइम पोस्ट – एक वृद्धा का दुनियाँ से फेड-आउट न भूल जाइयेगा। उसको लिखने में ज्यादा मेहनत और सेण्टीमेण्ट्स लगे हैं। |
वैसे जो लेख पढ़ लिये हैं; उनका हिसाब-किताब मेण्टेन करने का काम मेरा पसन्दीदा चिठ्ठाजगत को करना चाहिये। वर्ना हम जैसा भुलक्कड़ एक ही पोस्ट पर 2-3 टिप्पणिंया ठोकने लग जायेगा और कहीं अगली टिप्पणी पहली वाली के विरोधी हो गयी तो बड़ी भद्द पिटेगी।
अभी अभी मैने मेरी पसन्द के 32 चिठ्ठे मेरा पसन्दीदा चिठ्ठाजगत में जोड़ लिये हैं!
और; हमारे ब्लॉग को समाज वाले वर्ग में ठेल दिया है – असामाजिक प्राणी का ब्लॉग सामाजिक में! जय हिन्द!!!
सामाजिक ब्लॉगर ज्यादा हैं पर पोस्टें कलाकार ज्यादा ठेल रहे हैं – यह भी मजेदार है!
‘आहा!’ अनुभूति से हम भी रूबरू होना चाहेंगे. कोशिश करते हैं की आप की बात सीधी सीधी भेजे में घुस जाए कई बार आप की बात समझते समझते भेजा fraaii जो हो जाता है.आप की वृधा अवस्था पर लिखी पोस्ट बहुत प्रभाव शाली है.वृधा अवस्था में जो होता देखते हैं तो मन काँप सा जाता है क्यों की अब बहुत दूर नहीं हैं उस अवस्था से हम आप.नीरज
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ज्ञान जी.. ये तो मुझे पता है की गूगल रीडर में तो सौभाग्यवश मैं था, पर इसमे आपने जोड़ा है या नहीं? बहुत दिनों से आपके कमेंट के इंतजार में मेरा चिट्ठा सूना परा है..:D
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जानकारी तो बढ़िया दी है. सूची का इंतजार रहेगा.
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“और; हमारे ब्लॉग को समाज वाले वर्ग में ठेल दिया है – असामाजिक प्राणी का ब्लॉग सामाजिक में! जय हिन्द!!!”वे कोशिश कर रहे हैं कि आप “सुधर” जायें !!! हां सारथी पूरी तरह अ-सामाजिक है एवं तकनीकी विभाग में अपनी पहचान बना रहा है !!
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ये ३२ लोग कौन हैं जानना दिलचस्प होगा ।घुघूती बासूती
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हम वर्गहीन समाज बनाने में लगे हैं और उधर देखिये वर्गीकरण करने के बाद भी नारा चस्पां किया है कि आदमी काम पर हैं.. 🙂
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अच्छी जानकारी दी आपने. धन्यवाद. इसे प्रयोग करने का प्रयास करूँगा. हो सकता है समझने के लिए फोन भी करना पड़े.
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चिट्ठाजगत् की आपकी अपनी पसंद सार्वजनिक कीजिए. जरा हम भी तो जानें कि आप जैसे असामाजिक प्राणी क्या क्या पढ़ते हैं. और, यदि ये सुविधा चिट्ठाजगत् में नहीं है तो इस हेतु चिट्ठाजगत् से निवेदन!
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मुन्ना भाई उवाच- ” घबराने का नईं मामू, समाज पे अच्छे से वई लिखता है जो खुद असामाजिक हो। 😉
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