टेराग्रीन (Terragreen) पत्रिका का नया अंक »
इस वर्ष इण्टरगवर्नमेण्टल पेनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) और अल-गोर को संयुक्त रूप से नोबल शांति पुरस्कार दिये जाने के कारण पर्यावरण का मुद्दा लाइमलाइट में आ गया है। कल मैने टेराग्रीन (Terragreen) नामक मैगजीन का एक अंक ४० रुपये खर्च कर खरीद लिया। यह पत्रिका श्री आर.के पचौरी सम्पादित करते है। श्री पचौरी आइ.पी.सी.सी.के चेयरपर्सन भी हैं- और उनके संस्थान को नोबल पुरस्कार मिलने पर भारत में निश्चय ही हर्ष का माहौल है। मेरे ख्याल से टेराग्रीन का यह अंक अखबार की दुकान पर इसी माहौल के चलते दिखा भी होगा – यद्यपि यह पत्रिका अपने पांचवे वर्ष के प्रकाशन में है। पत्रिका के दिसम्बर-जनवरी के इस अंक में श्री पचौरी का एक साक्षात्कार भी छपा है।
इस अंक में एक लेख भोजन में एडिटिव्स पर भी है। और वह मुझे काफ़ी क्षुब्ध/व्यथित करता है। जिन तत्वों की बात हो रही है, उनका मैं पर्याप्त प्रयोग करता हूं। यह टेबल उनका विवरण देगी:
खाद्य पदार्थ | रसायन | खतरे |
अप्राकृतिक स्वीटनर (ईक्वल, सुगर-फ्री) जिनका मैं बहुत प्रयोग करता हूं – कैलोरी कम रखने के चक्कर में। | एसपार्टेम | फीनाइल्केटोन्यूरिया और मानसिक क्षमता में कमी (Phenylketoneuria and mental retardation) |
चिकन बर्गर | मोनो सोडियम ग्लूटामेट या अजीनोमोटो | अस्थमा, ग्लाकोमा औए डायबिटीज |
सॉसेज और फास्ट फ़ूड (नूडल्स आदि) | मोनो सोडियम ग्लूटामेट या अजीनोमोटो | अस्थमा, ग्लाकोमा औए डायबिटीज |
केचप | सेलीसिलेट्स (salicylates) | जिंक की कमी वाले लोगों में श्रवण शक्ति का क्षरण |
जैम | सेलीसिलेट्स (salicylates) | जिंक की कमी वाले लोगों में श्रवण शक्ति का क्षरण |
मिण्ट फ्लेवर्ड च्यूइंग-गम और माउथ फ्रेशनर | सेलीसिलेट्स (salicylates) | जिंक की कमी वाले लोगों में श्रवण शक्ति का क्षरण |

शहर में नीलगाय
नील गाय की चर्चा पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा है।
अपनी ब्लॉगरी की शुरुआत में मैने मार्च’२००७ में एक पोस्ट लिखी थी – शहर में रहती है नीलगाय। मेरे घर के पास नारायण आश्रम की हरित पट्टी में आश्रम वालों ने गाये पाली हैं। उनके साथ एक नीलगाय दिखी थी इस वर्ष मार्च के महीने में। वह कुछ समय तक दिखती रही थी पर फिर दिखना बंद हो गया। अब अचानक फ़िर वह पालतू पशुओं से थोड़ी अलग चरती दिखी। मुझे सुकून आया कि वह यहीं है।
यह चित्र मोबाइल के कैमरे से उतना साफ नहीं आया है। वह कुछ दूरी पर थी और मौसम भी कुछ साफ कम था।
मैने मार्च में लिखा था कि नीलगायों की संख्या कम हो रही है। पर वह सही नहीं है। दशकों से बाढ़ नहीं आयी है गंगा नदी में और उसके कारण नीलगाय जैसे जंगली पशुओं की संख्या बढ़ रही है जो कछार की जमीन पर उगने वाली वनस्पति पर जिन्दा रहते हैं।
[फोटो देख कर भरतलाल उवाच: अरे मोरि माई, ई त लीलगाय हौ। बहुत चोख-चोख लम्मा लम्मा सींघ हो थ एनकर। पेट में डारि क खड़बड़ाइ देइ त सब मालपानी बहरे आइ जाइ। (अरे मां! यह तो लीलगाय है। बड़े नुकीले और लम्बे सींग होते हैं इनके। किसी के पेट में भोंक कर खड़बड़ा दे तो पेट का सारा माल पानी बाहर आ जाये!) मैने पाया कि ग्रामीण परिवेश का होने के कारण वह अधिक जानता है नीलगाय के बारे में। वह यह भी जानता है कि यदा कदा रेबिड होने – पगलाने पर, नीलगाय किसानों की जिंदगी के लिये भी खतरा बन जाती है। यद्यपि सामान्यत: यह डरपोक प्राणी है।]
अगर मैं कुछ दिनों में गूगल रीडर के स्क्रॉलिंग ब्लॉगरोल (हाइपर लिंक के पुच्छल्ले का अन्तिम आइटम) पर लिखूं तो मुख्य बात होगी कि आप गूगल रीडर का प्रयोग करते हैं या नहीं अपनी ब्लॉग व अन्य फ़ीड्स पढ़ने के लिये। अगर नहीं करते तो इस ट्यूटोरियल से वीडियो देख कर गूगल रीडर का परिचय प्राप्त करें। (बोलने वाली बड़ी तेज-फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है। जरा ध्यान से सुनियेगा।)
आप तो इनके नोबल पुरस्कार को ही प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं. आपकी मानसिक हलचल, उनके अप्राकृतिक स्वीटनर के प्रयोग से खतरे के दावे को सरे आम चुनौती दे रही है.
LikeLike
आज के समय में यदि ऐसे पढ़ पढ़कर खाएं तो फिर तो खा लिए!!और फिर इस “रसना” का क्या कीजिए,इस रसना के चलते ही तो एक डायबीटिज़ का रोगी जानते हुए भी रसगुल्ले खा जाता है।वैसे सूची देख हल्की तसल्ली हुई कि इनमें से कोई चीज नही खाता मैं। अब और लंबी सूची देखूंगा तो मै भी अवसाद में आने लगूंगा शायद ;)भरतलाल की डॉयलॉगबाजी एक बार फिर पसंद आई।
LikeLike
देखियेजी ज्ञान के संकट घणे होते हैं। बंदे को ज्यादा पढना नहीं चाहिए कि किसे खाने से क्या हो जाता है। मरना सभी को है, दो चार साल पहले या बाद। अभी एक सर्वे करके लौट रहा हूं -दिल्ली में निगम बोध घाट पर अत्येंष्टि के आने वालों से चौदह प्रतिशत सिगरेट पीते थे। 86 परसेंट नहीं पीते थे। निष्कर्ष-नहीं पीने वाले ज्यादा मरते हैं। आगे आप समझदार हैं। बशीर बद्र का शेर सुनिये कागज में दबकर मर गये कीड़े किताब केदीवाना बेपढ़े लिखे मशहूर हो गयामजे से रहिये। खूब खाईये, सुबह पांच किलोमीटर टहल लीजिये। हो लिया।
LikeLike
एसपार्टेम के सेवन से यदि मानसिक क्षमता मे कमी होगी तो मानसिक हलचल का क्या होगा? अब तो अपन टेराग्रीन का अगला या पिछला कोई अंक नहीं खरीदेंगे.खैर मजाक एक तरफ़, पर्यावरण पर आपके विचार काफ़ी प्रभावित करतें है.गुगल रीडर का प्रयोग दो चार बार करने का प्रयत्न किया पर बहुत ज्यादा सफलता नही मिली.ट्यूटोरियल पर जाने की हिम्मत नही हुई क्योंकि एक तो अंग्रेजी और वो भी तेज-फर्राटेदार यानी कि अपन के लिए तो नीम चढा करेला.
LikeLike
क्या कहा स्वीटनर लेते है?? मै तो बडा ही प्रभावित था कि आप चने जोर गरम और मूंगफली ही खाते है और प्रकृति क़ॆ पास है। :)रसायनिक स्वीटनर के कई देशी विकल्प है। मै इस पर जरूर लिखूंगा। वैसे अभय जी की बात सही है कि हर व्यक्ति के लिये अलग-अलग तरह का भोजन होना चाहिये। यदि आप मुझे सप्ताह भर का दैनिक भोजन शिड्यूल भेजेंगे तो मै उसमे बहुत सी स्वास्थ्यवर्धक सामग्री जोड दूंगा। इससे आपको निश्चित ही लाभ होगा।
LikeLike
अगला अंक क्यों नहीं खरीदेंगे? खाली कहते हैं। आपकी पर्यावरण चिंता और प्रेम देखकर तो यही लगता है कि यह मसला आपके दिल के करीब है। वैसे नीलगाय जिस तरह गांवों में फसलों को बरबाद कर जाती हैं, उससे तो मेरी पहले यही इच्छा होती थी कि ये मिट जातीं तभी अच्छा होता। हालांकि अब ऐसा नहीं सोचता हूं।
LikeLike
तो क्या खायें ? बहुत मुश्किल है…
LikeLike
पर्यावरण पर आप चिंतित है, अच्छी बात है.. बात ही चिंता की है.. शरीर का भी एक पर्यावरण है.. उसे कैसे बचाए कि चिंता है कि क्या खाएं- जो आप पूछ ही रहे हैं.. कोई सार्वजनिक नियम नहीं तय किए जा सकते.. जैसा कि आज कल चलन हो गया है.. हर व्यक्ति की अच्छी सेहत का भोजन अलग होगा.. इसका आधार क्या होगा.. ये डा० अवधिया से पूछा जाना चाहिये.. वे विस्तार से बता सकेंगे.. गूगल रीडर को प्रचारित कर के आप बढ़िया काम कर रहे हैं..
LikeLike
यहा आ जाईये हम आपको नील गाय और उनकी कुलाचे सीधे सीधे दिखाने ले चलेगे..बस हमारे घर से ५/७ मील दूर इस प्रार्थना के साथ कि हे भगवान वो मेरी गादी के उपर से छलांग ना लगायेइस तरह की चीजे मत पढिये वरना भूखा ही रहना पडेगा आज कुछ भी ऐसा नही है देश मे खाने के लिये जो हमे कही ना कही कुछ ना कुछ नुकसान ना पहुचाता हो,चाहे तो बताये मै मेल पर ही भेज दूगा ४० रुपये भी नही खर्चने पडेगे….:)
LikeLike
खाने के बारे में आप ज्यादा परेशान होंगे तो और जल्दी हालत खराब होंगे। सब खायें जरा आहिस्ते से। नीलगाय की भरत कमेंट्री शानदार है। गूगल रीडर की फ़र्राटेदार अंग्रेजी हम न सुनब। 🙂
LikeLike