इस्लामिक एपॉस्टसी की अवधारणायें


कुछ दिन पहले तेजी बच्चन जी के निधन का समाचार मिला। इसको याद कर मुझे इण्टरनेट पर किसी जवाहरा सैदुल्ला के इलाहाबाद के संस्मरणों वाला एक लेख स्मरण हो आया; जिसमें तेजी बच्चन, फिराक गोरखपुरी, अमिताभ के जन्मदिन पर दी गयी पार्टी आदि का जिक्र था। उसे मैने कई महीने पहले पढ़ा था। इण्टरनेट पर सर्च कर उस लेख को मैने पुन: देखा। यह चौक.कॉम नामक साइट पर मिला।

ध्यान से देखने और उसके बाद आगे खोज से पता चला कि जवाहरा सैदुल्ल्ला एक नारी हैं और स्विट्जरलैण्ड में रहती हैं। लेखिका हैं। उनका एक ब्लॉग है ब्लॉगस्पॉट पर – Writing LifeJavahara

मुझे अपने इस्लामी नामों की अल्पज्ञता पर झेंप हुयीEmbarrassed। मैं जवाहरा सैदुल्ल्ला से अनुमान लगा रहा था कि यह कोई अधेड़ सज्जन होंगे और पार्टीशन के बाद या कालांतर में पाकिस्तान चले गये होंगे। यह नाम किसी महिला का होता है – मुझे कल ही पता चला।

जवाहरा सैदुल्ल्ला प्रैक्टिसिंग मुस्लिम नहीँ हैं। मैने उनका इस्लाम और एपॉस्टसी (apostasy – स्वधर्म त्याग) विषयक लेख – Muslim Dissent पढ़ा। धर्म में व्यापकता होनी चाहिये – जरूर। वह व्यक्ति को सोचने और अपनी अवधारणायें बनाने की पर्याप्त आजादी देने वाला होना चाहिये। पर जवाहरा सैदुल्ल्ला इस लेख में कहती हैं कि इस्लाम में यह आजादी नहीं है। एपॉस्टसी की सजा – जैसा जवाहरा लिखती हैं – मौत है। एपॉस्टसी में अल्लाह और पैगम्बर पर विश्वास न करने के अलावा लेख में उन्होने १० और कृत्य भी बताये हैं। इनमें जगत के शाश्वत होने और पुनर्जन्म में विश्वास करना भी शामिल है।

मैने पहले के एक पोस्ट में अपने हिन्दू होने के पक्ष में यह पूरी आजादी वाला तर्क ही दिया है। उस सन्दर्भ में जवाहरा सैदुल्ल्ला जी की यह ब्लॉग पोस्ट मुझे बहुत पठनीय लगी। पर एक धर्म (इस्लाम) जो विश्व में इतना फैला और जिसने वृहत भू भाग पर अपना वर्चस्व कायम किया, क्या केवल अपनी एपॉस्टसी वाली अवधारणाओं के चलते मौत के भय से यह कर पाया? यह पहेली मैं सुलझा नहीं पाया हूं अब तक।

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस्लाम के प्रति मेरे मन में अनादर नहीं है – कौतूहल है। और उसके लिये मैं समझने को खुले मन से पढ़ने – समझने को आतुर हूं। मैं कई लोगों से कोई ऐसी पुस्तक सुझाने का अनुरोध कर चुका हूँ, जो इस्लाम को सरलता से समझाने में सहायक हो और दूसरे मतावलम्बियों से सहज संवाद करती हो। सामान्यत: इस्लाम पर लिखा ऐसा होता है जो क्लिष्ट अरबीनिष्ट शब्दों के समावेश से पठन बहुत आगे बढ़ने नहीं देता।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

9 thoughts on “इस्लामिक एपॉस्टसी की अवधारणायें

  1. सही लिखा आपने। मन में चाह मेरी भी है ठीक यही पर कहां से मिले जानकारी।किताब मिले तो सार के साथ ही किताब के बारे मे भी बताइएगा।वैसे इतवार को दुकान बंद होने की संभावना के बाद भी मैं सिर्फ़ झांकने आया था देखा तो शटर खुला है, ग्राहकी भी तेज। गुड है जी।

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  2. ये सच है की इस्लाम के प्रति आम लोगों की जानकारी बहुत कम है. जो इस धर्म को मानते हैं वो भी शायद इसके मर्म को नहीं समझ पाएं हैं.सिर्फ़ कहानियाँ ही हैं जो आम इंसान को मालूम है. ये धर्म पूरी दुनिया में फैला तो इसके कुछ ख़ास ही कारण रहे होंगे. मुझे धर्म और इतिहास में अधिक दिलचस्पी नहीं इसलिए अधिकार पूर्वक कहना मेरे लिए सम्भव नहीं लेकिन इतना जानता हूँ की अगर किसी को महिमामंडित करना है तो उसकी जानकारी जितनी कम हो सके उतनी आम जन हो होनी चाहिए. जिसकी हमें जानकारी नहीं होती उसके प्रति उत्सुकता हमेशा बनी रहती है.नीरज

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  3. अच्छा लिखा है। हर धर्म मे कुछ न कुछ अच्छा और बुरा तो होता ही है।खुदा के लिए (पाकिस्तानी फिल्म) मे जैसा की यूनुस जी न कहा है वैसा ही कुछ दिखाया गया है।

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  4. धर्म को लेकर अपना मामला फ्लैक्सिबल है। खाने-पीने में वेजिटेरियन हूं, सो इस लिहाज से हिंदू होने के करीब पड़ता हूं।पर ऐसी दुनिया में खुद को बेहद असहज और व्यर्थ पाता हूं, जो तोगड़ियों, जोगड़ियों, फ्राड़ड़ियों की एक रस पूर्ण दुनिया है। रोज गालिब और हनुमान चालीसा का पारायण करता हूं। जब पितृपक्ष में श्राद्ध करता हूं, तो गालिब और मीर का नाम भी अपने बुजुर्गों में लेकर उनके नाम का तर्पण करता हूं। स्वर्ग और जन्नत में जाकर कंपेरीजन करुंगाया नर्क या दोजख में जाकर कंपेरीजन करुंगाजहां मजे की छन रही होगी, वहां चला जाऊंगा।जहां गालिब मीर गुलजार जावेद अख्तर बहराम कांट्रेक्टर होंगे,परसाईजी, शरद जोशीजी होंगे, उनके ठिकाने पे चला जाऊंगा।धर्म वर्म छोड़िये कविता पढ़िये संगीत सुनिये और मस्त रहिये। वैसे भोलेजी की पुस्तक का सार हमकू भी बताइयेगा। धर्म पर कबीर से ज्यादा बेहतर किसी ने नहीं कहा है,ऐसा अपना पक्का मानना हैढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। बाकी सब बकवास है।

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  5. किताब की जगह आडियो कैसेट भी मिल जाये तो काम करते-करते व्याख्या सुनी जा सकती है। यदि आपको ऐसी जानकारी मिले तो बताये। मैने कालीदास की वनस्पतियाँ पढी फिर रामायण और महाभारत की वनस्पतियाँ पर शोध पत्र लिखे। बाइबिल की वनस्पतियो पर बहुतो ने काम किया है पर फिर भी मै एक बार काम करना चाहता हूँ। इसी तरह दुनिया के सभी धर्म ग्रंथो को इस नजरिये से पढने की इच्छा है।

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  6. ज्ञान जी इस्‍लाम का इंटरप्रिटेशन बहुत गलत किया जाता है । और ये वही लोग करते हैं जिन पर इस्‍लाम को समझने समझाने की जिम्‍मेदारी है । इसीलिए किताबों का भी टोटा है । मेरी नजर में ऐसी कोई किताब नहीं है । धर्म एक बंधन या एक फतवा ना हो तो अच्‍छा रहता है । शायद इसी बंधन से ऊबकर जवाहरा ने एपॉस्‍टसी की बात कही होगी ।

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  7. मैंने कुरान का अंग्रेज़ी तर्जुमा पढ़ा है. उसमें पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी के अतिरिक्त उनके प्रवचनों व सलाहों का संग्रह है.पर ये सब उस समय की जीवन शैली के अनुसार थे. वे अगर आज के वैज्ञानिक समय में होते तो उनकी धारणा और विचार निश्चित ही जुदा होते. यही बात हिन्दू संतों की विचारधाराओं में भी होती -जो समुद्र की यात्रा करने वालों को म्लेच्छ घोषित करते थे. (और यीशु मसीह के प्रवचनों में भी होता…)

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  8. बढ़िया पोस्ट । ये सच है कि इस्लाम के बारे में बहुत कुछ लोगों में ग़लतफहमियां भी हैं मगर इसकी वजह बहुत कुछ इसके जन्म के समय से आज तक चली आ रही है। कृपया अरुण भोले की -धर्मों की कतार में इस्लाम पढ़ें। सम्पूर्ण तो नहीं , मगर इस्लाम को समझने की पृष्ठभूमि ज़रूर बनाती है ये पुस्तक ।

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