हर एक ब्लॉगर अपना घर का स्टडी टेबल और कम्प्यूटर सिस्टम जमाता होगा। मेरा अध्ययन तो सामान्यत: बिस्तर पर होता है। पर कम्प्यूटर और संचार (कम्यूनिकेशन) का सिस्टम मेज कुर्सी पर काफ़ी सीमा तक मेरी व्यक्तिगत और सरकारी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर बना है।
रेलवे की कार्यप्रणाली चाहती है कि हम रेल की पटरी और दफ़्तर के समीप रहें पर इलाहाबाद में पैत्रिक मकान के होते यह सम्भव नहीं है। मेरा पिताजी का मकान रेलवे दफ़्तर से १४ किलोमीटर दूर है। दफ़्तर इतनी अधिक लिखित पोजीशन दिन में बार-बार जेनरेट करता है कि अगर कागज ले कर मेरे घर कोई वाहन आता रहे तो सामान्य दिन में सुबह शाम और छुटटी के दिन पूरे समय एक वाहन इसी काम भर को हो। लिहाजा मुझे फ़ैक्स पर निर्भर रहना पड़ता है – जो सस्ता उपाय है लिखित सूचना को प्राप्त करने का। और फैक्स भी मैं सीधे कम्प्यूटर में लेता हूं जिससे व्यर्थ कागज बरबाद न करना पड़े। केवल बहुत जरूरी पन्नों की हार्ड कॉपी लेता हूं।
"मेरे दफ्तर की पुरानी जीप अफसरों के घर लिखित पोजीशन लेजाने का काम करती है। खटारा होने के कारण उसपर प्रति किलोमीटर फ़्यूल खर्च एक बड़े ट्रक के फ़्यूल खर्च से तुलनीय होगा। मेरे उक्त कम्प्यूटर और संचार तन्त्र से मेरे ऊपर वह खर्च बचता है। रेल विभाग की उस बचत का आंकड़ा जोड़ूं तो बड़ा अच्छा लगेगा! " |
मेरे पास रेलवे और बीएसएनएल के कमसे कम दो सरकारी फ़ोन चालू दशा में होने चाहियें। बीएसएनएल का फ़ोन तो विभाग ने दे रखा है पर रेलवे फ़ोन की १४ किलोमीटर की लाइन बिछाना न भौतिक रूप से सम्भव है और न सस्ता। लिहाजा मुझे दफ़्तर में रेलवे फ़ोन पर बात करने के लिये वहां बीएसएनएल-रेलवे नेटवर्क की इण्टरफ़ेस सेवा का प्रयोग करना पड़ता है। बचा काम मैं मोबाइल फोन से या घर पर उपलब्ध व्यक्तिगत (पिताजी के नाम) बीएसएनएल फोन से पूरा करता हूं।
मैं जब अपने कम्प्यूटर और संचार नेटवर्क को देखता हूं तो पाता हूं कि इसे स्थापित करने में बहुत कुछ मेरा खुद का योगदान है। और शायद यह बीएसएनएल के सामान्य कॉनफीग्यूरेशन के अनुकूल न भी हो। पर वह काम कर रहा है!
मेरा घर का कम्प्यूटर और संचार नेटवर्क इस प्रकार का है:
यह ऊपर वाला तन्त्र तो फिर भी सीधा सीधा दिख रहा है, पर जब यह भौतिक तारों, कनेक्टर्स, कम्प्यूटर और पावर सप्लाई के उपकरणों, स्विचों आदि से सन्नध हो जाता है तो काफी हाइटेक और उलझाऊ लगता है। मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स इन्जीनियरिंग छोड़े २५ वर्ष हो गये – पर यह सिस्टम देख जब बीएसएनएल वाला कर्मी सिर खुजाता है, तब लगता है कि हम पढ़ाई में इतने लद्धड़ ("Five point someone" छाप) भी नहीं थे। इसमें मेरा लैपटॉप दो ब्रॉडबैण्ड सूत्रों से और डेस्कटॉप एक से जुड़ा है। डेस्कटॉप से फैक्स-प्रिण्टर-स्कैनर युक्त है और फोन दोनो ’केन्द्रों’ पर है। बस मुझे यह नहीं आता कि नेटगीयर से दोनो कम्प्यूटरों के डाटा कैसे शेयर किये जायें। अभी तो मैं पेन ड्राइव से डाटा-ट्रान्सफर करता हूं।
मेरे दफ्तर की पुरानी जीप अफसरों के घर लिखित पोजीशन लेजाने का काम करती है। खटारा होने के कारण उसपर प्रति किलोमीटर फ़्यूल खर्च एक बड़े ट्रक के फ़्यूल खर्च से तुलनीय होगा। मेरे उक्त कम्प्यूटर और संचार तन्त्र से मेरे ऊपर वह खर्च बचता है। रेल विभाग की उस बचत का आंकड़ा जोड़ूं तो बड़ा अच्छा लगेगा! उसके अलावा फैक्स हार्ड कॉपी की बचत अलग। मैं अपनी तनख्वाह बराबर तो विभाग को बचवा ही देता होऊंगा।
अनूप शुक्ल ने रविवार शाम को अपने दफ्तर से फोन किया। मैं इन सज्जन की मेहनत करने की प्रवृत्ति से उत्तरोत्तर प्रभावित हो रहा हूं। वर्ष का अन्त है। सब लोग छुट्टी के मूड में हैं। न भी हों तो लोग रविवार को गुजरात के मोदीफिकेशन का टीवी-इण्टरनेट पर अवलोकन कर रहे थे। ऐसे में ये सरकारी जीव दफ्तर में काम कर रहे हों – यह जान कर विचित्र भी लगा और सुखद भी।
(वैसे इस पुच्छल्ले पर लगाने के लिये "अनूप शुक्ल" का गूगल इमेज सर्च करने पर दाईं ओर का चित्र भी मिला। अब आप स्वयम अपना मन्तव्य बनायें। हां, सुकुल जी नाराज न हों – यह मात्र जबरी मौज है!)
आपके भीतर के तकनीक पुरूष को मेरा प्रणाम ! वैसे आलोक पुराणिक जी की टिप्पणी भी सही है कि-अंतत इस देश में जुगाड़ टेकनोलोजी ही काम आती है, जो बड़े बड़े इंजीनियर भी ना समझ पाते।जैसे-जैसे पढ़ता गया जिज्ञासा बढ़ती गयी , अच्छा लगा पढ़कर यह पोस्ट !
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पहली प्रविष्टि आपकी है, पर विषय थोड़ा सा अलग है, तो आप चाहें तो एक और भी लिख मारें 🙂
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यह तो अनुगूँज २३ की पहली प्रविष्टि हो गई। बस अनुगूँज की तस्वीर लगा दीजिए और शीर्षक में जोड़ दीजिए। :)मैं भी लिखता हूँ अपने घरेलू (नामौजूद) नेटवर्क के बारे में।
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अंतत इस देश में जुगाड़ टेकनोलोजी ही काम आती है, जो बड़े बड़े इंजीनियर भी ना समझ पाते। मेरे घऱ के कंप्यूटर का कनेक्शन इनवर्टर से है, पर इनवर्टर भी स्टार्ट होने में फ्रेक्शन आफ सेकंड लेता है, इस बीच कंप्यूटर ट्रिप ना कर जाये, मैंने यूपीएस भी लगा रहा है, अलग से। फिर भी ट्रिप हो जाया करता था कंप्यूटर, घणे कंप्यूटर इंजीनियरों से पूछ लिया, इलेक्ट्रिक इंजीनियरों से पूछ लिया, किसी ने बता के ना दिया। एक दिन एक सरदारजी आये, जो सातवीं पास है। समस्या सुनकर हंसने लगे और बोले, इसका इलाज किसी पढ़े लिखे कंप्यूटर इंजीनियर के पास नहीं है। मेरे पास है। उन्होने फिर पता नहीं किया, एक मोटी सी केबल इनवर्टर से कंप्यूटर में फिट की। वो दिन है और आज का दिन, कभी कंप्यूटर ट्रिप नहीं हुआ।जुगाड़ तकनीक की जय हो. आप इत्ते बड़े जुगाड़ी हैं, हमको अंदाज ना था।
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आपके अन्दर के इंजीनियर के दर्शन कराने के लिये आभार।
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“यह ऊपर वाला तन्त्र तो फिर भी सीधा सीधा दिख रहा है,”यह आपको सरल दिख रहा है तो आपकी नजर में कठिन क्या होगा. मेरी तो घिग्गी यहीं बंध गई!!अनूप शुक्ल मेहनती है. आप क्यों उनके “अतिरिक्त” मनोरंजन को सार्वजनिक कर रहे हैं!! लगता है अब गूगल से छुप कर रहना पडेगा.
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वाकई!!अभी कुछ दिन पहले ही मैने अपने भतीजे से कह रहा था कि एक कंप्यूटर और उससे जुड़े अन्य उपकरणों के तारों का जाल देखकर ही अजीब सा लगने लगता है मानो बड़ा कोई नेटवर्क हो। अपन तो इन सब में जीरो हैं। लेकिन फ़िर भी यह जानना सुखद लगता है कि अपना व्यवहारिक ज्ञान, कंप्यूटर साईंस में बी ई कर रहे दोनो भतीजों से ज्यादा है कभी कभी।सुकुल जी साधुवाद के पात्र हैं। सर्च से मिली इन दोनो तस्वीरों में एक ही रिश्ता हो सकता है। कहीं गूगल यह तो साबित नही करने पर तुला कि बाईं फोटो वाला आदमी रविवार को दफ़्तर में बैठकर दाईं फोटो जैसा कोई गुल खिला रहा हो ;)गुस्ताखी माफ़ सुकुल जी 🙂
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पाण्डेय जी, विन्डोज़ एक्स पी मे स्टार्ट मेनू से MY Network Places पर जाइये, वहाँ पर Network Tasks मे दिये गये,ऑप्शन्स से फटाफट स्माल नेट्वर्क स्थापित कर दीजिये।
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बाबा रे । इतना पेचीदा नेटवर्क । हम तो पिछले कई दिनों से ये सोच रहे हैं कि कम्यूनिकेशन पर होने वाले खर्च पर लगाम कैसे कसी जाये । पिछले दिनों कहीं पढ़ा था कि अब कई घरों में कम्यूनिकेशन पर होने वाला खर्च रसोई के खर्च से भी ज्यादा हो गया है ।
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हम तो आपके सर्किट में रेजिस्टेंस खोजते रह गये, मिल जाता तो इफेक्टिव रेजिस्टेंस निकलने की सोचते | इससे ज्यादा सोचने की अपनी क्षमता नहीं है :-)लगता है हमे भी लिखना पड़ेगा की अपने घर में तेल/गैस की खोज कैसे करें :-)या फिर अपने घर के लिए रसायनों को निर्माण अपने घर पर कैसे करें 🙂
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