यह श्री पंकज अवधिया की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। श्री अवधिया वनस्पति जगत के औषधीय गुणों से सम्बंधित एक पोस्ट मेरे ब्लॉग के लिये लिख कर मेरे ब्लॉग को एक महत्वपूर्ण आयाम दे रहे हैं। आप यह एलो वेरा (ग्वार-पाठा) के गुणों से सम्बंधित पोस्ट पढ़ें:
प्रश्न: आप तो जानते ही है कि रक्त की अशुद्धि को ज्यादातर रोगो की जड़ माना जाता है। इसके लिये रोग होने पर विशेष दवा लेने की बजाय यदि ऐसा कुछ उपाय मिल जाये जिसे अपनाने से साल-दर-साल शुद्धता बनी रहे और रोगों से बचाव होता रहे।
उत्तर: यह तो आप सही कह रहे हैं कि रक्त की अशुद्धता ज्यादातर रोगो के लिये उत्तरदायी है। आज का हमारा रहन-सहन और खान-पान कई तरह के दोषों को उत्पन्न कर रहा है और हम चाह कर भी इससे नहीं बच पा रहे हैं। मै एक सरल पर प्रभावी उपाय बता रहा हूँ। यदि बन पडे़ तो इसे अपनायें और लाभांवित हों।
आप लोकप्रिय वनस्पति ग्वार पाठा को तो जानते ही होंगे। इसे घीक्वाँर भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम एलो वेरा है। वही एलो वेरा जिसका नाम प्रसाधन सामग्रियों के विज्ञापन मे आप रोज सुनते हैं। सम्भव हो तो अपने बगीचे मे आठ-दस पौधे लगा लें। प्रयोग के लिये पत्तियों के ताजे गूदे की आवश्यकता है।
ताजा गूदा लेकर उसे जमीन पर रख दें फिर उसे नंगे पाँव कुचलें। कुचलना तब तक जारी रखें जब तक कि आपका मुँह कड़वाहट से न भर जाये। पैरो से कुचलने पर भला मुँह कड़वाहट से कैसे भरेगा? प्रश्न जायज है पर जब यह करेंगे तो आपको यकीन हो जायेगा। शुरू के दिनो में 15-20 मिनट लगेंगे फिर 2-3 मिनट मे ही कड़वाहट का अहसास होने लगेगा। जैसे ही यह अहसास हो आप एक ग्लास कुनकुना पानी पी लीजिये। पाँच मिनट बाद एक चम्मच हल्दी कुनकुने पानी के साथ फाँक लीजिये। ऐसा आपको सप्ताह मे एक बार करना है। ऐसा आप लम्बे समय तक कर सकते हैं। आप नयी स्फूर्ति का अनुभव तो उसी समय से करेंगे पर दो-तीन बार इसे करने से आपको गहरा असर दिखने लगेगा।
एलो का इस तरह प्रयोग अलग-अलग तरीकों से भी होता है। श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा) से प्रभावित रोगियों को तो दवाओ के आँतरिक सेवन के साथ इसे दिन मे दो से तीन बार करने को कहा जाता है।
एलो की तरह ही 600 से अधिक वनौषधीयों का प्रयोग इस अनोखे ढंग से होता है। एलो के पौधे आसानी से मिल जाते है। वैसे देश के बहुत से भागों में यह माना जाता है कि इसे घर मे लगाने से पारिवारिक क्लेश बढ़ जाता है। यदि इस विश्वास का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो कंटीले होने के कारण सम्भवत: बच्चों को हानि पहुँचने के भय से इसे न लगाने की सलाह दी गयी होगी। यह भी देखा गया है कि गर्मी के दिनो मे ठंडक की तलाश मे साँप जैसे जीव इनके पास आ जाते हैं। इसलिये भी शायद इसे घर मे न लगाने की बात कही गयी होगी। मैं तो यही सलाह देता हूँ कि इसे पड़ोसी की दीवार के पास लगाये ताकि झगड़ा हो भी तो उधर ही हो।
एलो की बहुत अधिक देखभाल न करें। पानी तो कम ही डालें। जंगल मे वनस्पतियाँ बिना देखभाल के उगती हैं, और फिर भी दिव्य गुणों से युक्त होती है। जब मनुष्य खूब देखभाल कर इसे खेतों या बागीचो मे लगाता है तो वैसे गुण नही मिल पाते हैं। आधुनिक अनुसन्धानो से भी यह पता चल चुका है कि ‘स्ट्रेस’ दिव्य औषधीय गुणो के लिये जरूरी है। यही कारण है कि बहुत सी औषधीय फसलो की खेती मे कुछ समय तक सिंचाई रोक दी जाती है।
एलो वेरा पर मेरा ईकोपोर्ट पर लेख यहां देखें।
पंकज अवधिया
पंकज जी की अतिथि पोस्ट के चित्र के लिये पड़ोस से ग्वार पाठा का गमला १० मिनट के लिये मंगवाया गया। भरतलाल भूत की पोस्ट से जोश में हैं। लाते समय पूरी गली को एनाउंस करते आये कि इस गमले का फोटो कम्प्यूटर में लगेगा और दुनियां में दिखेगा।
मेरे पर-बाबा पं. आदित्यप्रसाद पाण्डेय आयुर्वेदाचार्य थे और अपनी औषधियां सामान्यत: स्वयम बनाते थे। वे घीक्वांर(ग्वारपाठा) से औषधि बनाया करते थे।
मेरे घर में भी यह पौधा लगाया हुआ है, पता नहीं था कलेश भी करवाता है यह पौधा 🙂 यह एक गुणकारी पौधा है. इसके रस को बेच कर कई कम्पनी वाले मालामाल हो रहे है. और हमारे लिए घर की मूर्गी दाल बराबर वाली बात हुई.
LikeLike
मेरी छत पर भी शायद एक गमले में लगा है चलिए अब उसका कुछ तो उपयोग हो सकेगा….
LikeLike
लो जी हमने बहुत सी औषधियों में एलोवेरा लिखा हुआ देखा था पर यह नही जानते थे कि वह यही ग्वार पाठा ही है।शुक्रिया।
LikeLike
पंकज जी स्वयं किसी चमत्कार से कम नहीं क्या क्या औषधियाँ ढूँढ ढूँढ के बताते हैं. वाह. वाह. हींग लगे न फिटकरी वाली बात ऐसे ही लोगों से मिल कर समझ में आती है. बाबा रामदेव की कुर्सी हिलती नज़र आ रही है मुझे. नीरज
LikeLike
आलोक जी की बात से पूरी तरह सहमत है। 🙂
LikeLike
एलोवीरा राजस्थान में बहुतायत में है । इतना गुणी व औषधीय पौधा है पता नहीं था।
LikeLike
pankaj ji bahut dhanyavaad ,alovera ka is tarah upyog to socha bhi nahi jaa sakta, aur aap yakeen maney jab se RAMDEV ji ka shivir hamarey shahar me laga hai ..yahan ghar ghar me alovera apney gunno ke vajah se tulsi ke paudhey ki tarah hi summan paa raha hai.
LikeLike
भई वाह वाह, वैरायटी तो आपके ब्लाग की है। कल भूत प्रेत चैनल था आज हैल्थ चैनल हो लिया। बहुत दिनों से पर्सनाल्टी डेवलपमेंट चैनल ना हुआ, पर वो भी हो लेगा। होर जी, उस दिन टेकनीकल चैनल था, जुगाड़ तकनीक वाले दिन। क्या कहने क्या कहने। चैनल चीफ बनाये जा सकते हैं आप किसी समझदार चैनल के।
LikeLike
अगर स्ट्रेस और दिव्यता के सम्बन्ध का यह नियम मनुष्यों पर भी लागू हो तो क्या निष्कर्ष निकालें जा सकते हैं? क्या लागू हो सकता है मनुष्यों पर? आप का क्या विचार है?
LikeLike
मैं ने पिता जी को ग्वार पाठा से औषधियां बनाते देखा है और सहयोग भी किया है। मैं इस से बनी होमियोपैथिक औषध एलो वेरा की ३० या २०० शक्ति का उपयोग करता हूँ। पेट के रोगों के लिए जबर्दस्त दवा है, खास कर कब्ज के लिए रामबाण।
LikeLike