कोलम्बस और कृष्ण


इन्द्रजी ने अपने ब्लॉग इन्द्राज दृष्टिकोण पर एक बहुत रोचक आख्यान कोलम्बस के सम्बन्ध में बताया है। सन १५०४ में चन्द्र ग्रहण ने कोलम्बस और उसके नाविकों की प्राण रक्षा की थी। वे जमैका के तट पर अटके थे। स्थानीय लोग बहुत विरोध कर रहे थे उनका। खाने की रसद समाप्त हो रही थी। और स्थानीय लोगों ने भोजन सामग्री देने से मना कर दिया था। कोलम्बस ने जर्मन गणितज्ञ द्वारा बनाया पंचांग देखा। उसने पाया कि २९ फरवरी १५०४ को पूर्ण चन्द्र ग्रहण लगेगा। फिर उसने स्थानीय लोगों के नेता को बुलाया और कहा कि वे भोजन सामग्री दे दें, अन्यथा वह उन्हें चन्द्रमा से वंचित कर देगा। वैसा ही हुआ। चंद्रग्रहण लगा। स्थानीय लोगों ने डर कर भोजन सामग्री देना मान लिया और बदले में कोलम्बस ने चन्द्रमा रिस्टोर कर दिया। वह वैसे भी रिस्टोर होना था!

इस रोचक घटना को पढ़ कर जब मैने अपनी पत्नी जी को सुनाया तो उन्होने पत्नी जी ने मुझे महाभारत और जयद्रथ वध प्रसंग की याद दिलाई। जयद्रथ ने शिवजी के दिये वरदान का दुरुपयोग शेष चार पाण्डवों को एक दिन तक युद्ध में रोकने के लिये किया था।1 उसका प्रयोग कर अभिमन्यु का वध चक्रव्युह से कर दिया गया – अनीति का सहारा ले कर। इस कारण अर्जुन का प्रण था कि वह सूर्यास्त के पहले जयद्रथ का वध कर देगा अन्यथा अपने प्राण तज देगा। युद्ध के १४हवें दिन प्रचण्ड शौर्य से अर्जुन ने आठ अक्षौहिणी कौरव सेना का संहार कर दिया, पर जयद्रथ छिप गया। सूर्यास्त का समय समीप था। कौरव सेना में आठ अक्षौहिणी संहार के बावजूद भी हर्ष था कि अब तो अर्जुन प्राण त्याग देगा।

ऐसे मौके पर कृष्ण चमत्कार करते हैं। सूर्यास्त के पहले वे सूर्य अस्त कर देते हैं। सिन्धुराज जयद्रथ बाहर आता है और कृष्ण के कहने पर (सूर्यास्त जानकर भी) अर्जुन एक तेज वाण से जयद्रथ का सिर काट डालता है। कटा सिर जाकर गिरता है उसके ध्यानमग्न पिता वृद्धक्षत्र की गोद में – चुपचाप।

पिता सांध्य पूजा कर उठता है और सिर जमीन पर गिर जाता है। पिता ने श्राप दिया है कि जयद्रथ का सिर जो भी जमीन पर गिरायेगा, उसके सिर के टुकड़े हो जायेंगे। … एक ही वाण से जयद्रथ और उसके पिता वृद्धक्षत्र का रामनाम सत्त!
(‍^^^ ऊपर बायें सचित्र महाभरत, गीता प्रेस में जयद्रथ और वृद्धक्षत्र का वध के चित्र)

इस घटना की दो वैज्ञानिक व्याख्यायें हैं:

  1. तेरहवें दिन अर्जुन के प्रण कर लेने के बाद वह तो निश्चिन्त हो कर सोया।2 उसने तो अपना जीवन कृष्ण के हवाले कर रखा था। आगे तो झेलना कृष्ण को था। वे कैसे अर्जुन की प्रतिज्ञा सच करायें! कृष्ण खगोलवेत्ताओं को रात में बुला कर सूर्य की चाल के बारे में पता करते हैं कि अगले दिन पूर्ण सूर्यग्रहण शाम को होने जा रहा है। इस आधार पर वे अपनी स्ट्रेटेजी बनाते हैं। कौरव अपनी स्ट्रेटेजी अथाह सेना आगे झोंक कर जयद्रथ को बचाने की बनाते हैं। – और कृष्ण की स्ट्रेटेजी कौन बीट कर सकता है?!
  2. दूसरी व्याख्या डा. पी. वी. वर्तक ने यहां की है। यह निम्न है –

    On the 14th day of the Mahabharat War, i.e., on 30th October a similar phenomenon took place. Due to the October heat enhanced with the heat of the fire-weapons liberally used in the War, the ground became so hot that the layers of air near it were rarefied while the layers at the top were denser. Therefore the sun above the horizon was reflected producing its image beneath. The Sun’s disc which was flattened into an ellipse by a general refraction was also joined to the brilliant streak of reflected image. The last tip of the Sun disappeared not below the true horizon, but some distance above it at the false horizon. Looking at it, Jayadratha came out and was killed. By that time, the Sun appeared on the true horizon. Naturally there was no refraction because the light rays came parallel to the ground. This re visualized the Sun at the true horizon. Then the sun actually set, but the refraction projected the image above the horizon. The sun was thus visible for a short time which then set again.

मैं इस व्याख्या का हिन्दी अनुवाद कर सकता था, पर वह मुझे वैज्ञानिक शब्दों के सही अनुवाद करने की जहमत के चलते कठिन लगा। फण्डा पृथ्वी के पास अक्तूबर महीने की उष्ण-विरल और वातावरण में कुछ ऊपर सघन हवा से सूर्य की किरणों का आवर्तन का है। सूर्य जब कुछ ऊपर होते हैं तो टेढ़ी होती किरणों के कारण उनका आभासी बिम्ब क्षितिज के नीचे बनता है। जब सूर्य और नीचे आते हैं तो किरणें केवल विरल हवा से गुजर कर आती हैं और सूर्य सामने दिखाई देते हैं। महाभारत के १४हवें दिन अर्थात ३० अक्तूबर को वही हुआ। कृष्ण जी ने उसका लाभ उठाया। आप कृपया अंग्रेजी से ही काम चला लें। धन्यवाद।


1. शिवजी से जयद्रथ ने सभी पाण्डवों को हराने का वर मांगा था। शिवजी ने कहा कि यह तो नहीं हो सकता। वे अर्जुन के अलावा शेष पाण्डवों को एक दिन तक युद्ध में रोक पाने का वरदान दे सकते हैं। वही जयद्रथ को मिला। और उसी वरदान के मिस-यूज ने अन्तत: जयद्रथ का सिर कलम कराया!

2. बाई द वे, निश्चिन्त हो कर सोने का यही सर्वोत्तम तरीका है। जो हम नहीं जानते! स्वप्न में ही कृष्ण ने अर्जुन को शिवजी के पास भेज कर पशुपत-अस्त्र का कैप्स्यूल रिफ्रेशर कोर्स करा दिया। उसी से अगले दिन जयद्रथ मारा गया।
‘सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकम् शरणम् व्रज:!’ यह बहुत पढ़ते हैं पर आत्मसात नहीं कर पाते। हममें और अर्जुन में यही अन्तर है। वह सब कृष्ण पर छोड़ कर टेन्शन लेस (tension less) है। हमें नींद की गोली लेनी होती है। हम टेन्शन से लैस हैं!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

17 thoughts on “कोलम्बस और कृष्ण

  1. महाभारत युद्ध के समय निसंदेह सूर्य ग्रहण हुआ होगा, मगर दोनो पक्ष के विद्वान लोग इससे अनजान रहे होंगे मानने में आता.

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  2. क्या कहें भैय्या न तो महाभारत की कहानियो की कोई विशेष जानकारी है और ना ही भौतिक विज्ञान में पंडिताई की है फ़िर भी आप की पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी. आप की आखरी बात सबसे बढ़िया लगी..सब कुछ उस पर छोड़ दो और मजे से नींद लो. वो जो करेगा सही ही करेगा…वो याने वोही…अपना इश्वर. उसे चाहे जो नाम दें. नीरज

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  3. अच्छी शिक्षाप्रद कथाएँ है.बाकी तो जैसा रोहिल्ला जी ने लिखा ही है बहुत कुछ तकनीक-वक्निक का मामला है. सो अपने हाथ तो ऊँचे.लेकिन अजित जी की बात पर जरा गौर किया जाय.

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