दीपक पटेल जी कौन हैं – पता नहीं। मेरी राजभाषा बैठक के दौरान इधर उधर की वाली पोस्ट में बापू के लिखे के अनुवाद पर उनकी रोमनागरी में हिन्दी टिप्पणियां हैं। कोई लिंक नहीं है जिससे उनका प्रोफाइल जाना जा सकता। पर उन्होनें जो टिप्पणियों में लिखा है; उसके मुताबिक वे बहुत प्रिय पात्र लगते हैं। उनकी हिन्दी का स्तर भी बहुत अच्छा है (बस, देवनागरी लेखन के टूल नहीं हैं शायद)। ऐसे लोग हिन्दी में नेट पर कण्ट्रीब्यूटर होने चाहियें।
मैं तो उनकी टिप्पणी पर फुटकर विचार रखना चाहूंगा:
- बापू हमारे राष्ट्रपिता ही नहीं, हमारी नैतिकता के उच्चतम आदर्श हैं। भारत में जन्मने के जो भी कष्ट हों; हममें अन्तत: वह गर्व-भाव तो रहेगा ही कि यह हमारा वह देश है, जहां बापू जन्मे, रहे और कर्म किये। उनके आश्रम में उनकी वस्तुयें देखी परखी हैं और एक रोमांच मन में सदैव होता है कि इतना सरल आदमी इतना ऊंचा उठ गया। हमें उन लोगों से मिलने का भी गर्व है जो कभी न कभी बापू के सम्पर्क में आये थे।
- बापू की भाषा – मैं उनकी अंग्रेजी की बात कर रहा हूं, इतनी सरल है कि समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। शुरू में, स्कूली दिनों में, जब हमें अंग्रेजी कम आती थी तो गांधीजी की आत्मकथा और अन्य पतली-पतली बुकलेट्स जो उन्होंने लिखी थीं, मन लगा कर पढ़ते थे जिससे कि अंग्रेजी सीख सकें। बापू के कहे का आशय समझ में न आ सके – यह अटपटा लगता है। यह तो तभी हो सकता है जब किसी बन्दे का एण्टीना बापू के सिगनल पर शून्य एम्प्लीफिकेशन और राखी सावन्त के सिगनल पर 10K का एम्प्लीफिकेशन फैक्टर रखता हो। पर ऐसा व्यक्ति वास्तव में बिना सींग-पूंछ का अजूबा ही होगा।
- इस ब्लॉगजगत में कई विद्वान ऐसे होंगे जो मरकहे बैल की तरह बापू को गरिया/धकिया सकते हैं। बापू को आउट डेटेड बता सकते हैं। बापू तो हिन्दी की तरह हैं – मीक और लल्लू! पर क्राइस्ट की माने तो भविष्य मीक और लल्लू का ही है। और एक प्रकार से सदा रहा है। बस – मीक और लल्लू के बदले कायर न पढ़ा जाये। मुझे बापू जैसा साहसी वर्तमान युग में देखने को नहीं मिला। जो आदमी अपनी न कही जा सकने वाली गलतियां भी स्वीकारने में झेंप न महसूस करे, उससे बड़ा साहसी कौन होगा? और मित्रों, हम साहस हीनता (दुस्साहस नहीं) से ही तो जूझ रहे हैं?
दीपक पटेल जी की सोच को मेरी फुटकर पोस्ट ने टिकल किया; यह जान कर मुझे प्रसन्नता है। बापू की वर्तमान युग में प्रासंगिकता पर चर्चा होनी चाहिये और कस कर होनी चाहिये।
ब्लॉगजगत में महाफटीचर विषयों पर अन्तहीन चर्चा होती है। बापू जैसे सार्थक चरित्र पर क्यों नहीं हो सकती?!
चर्चा को चर्चा का रूप देने के लिए प्रमेन्द्र जी को बधाई. अन्यथा तो बहस केवल गांधी के स्तुति-गान तक सीमित रह जाती है. हालांकि उनकी (प्रमेन्द्र जी की) बातों से पूरी तरह साम्य रखना कठिन प्रतीत होता है.
LikeLike
कतिपय राजनीतिक दलो ने बापू को अपनी बपौती बना रखा है जिसके कारण वोट के चक्कर मे बाकी दल चाहकर भी उनकी तारीफ नही कर पाते है। मैने तो पूरी दुनिया मे ऐसे महापुरुष के बारे मे नही सुना है। काश मै उस समय पैदा हुआ होता। रही बात आलोचना की तो लोगो ने तो भगवान तक को नही छोडा है। उनकी भी गलती नही क्योकि जो गलत सूचना उत्तेजक रुप से दिमाग मे डाली जाती है- उसका ही यही परिणाम है। जो लोगो गाँधी जी के समकालीन है वे उनके खिलाफ उतना नही बोले जितना हमारी आज की पीढी विशेषकर युवा बोल रहे है। यदि वे एक महिने भी बापू की तरह जी कर देखे तो उन्हे अपनी गल्ती का अहसास हो जायेगा। आज अलग-अलग क्रांतिकारियो को अपने हित के लिये धडो मे बाँट लिया गया है और रोटी सेकी जा रही है। एक क्रांतिकारी की तुलना दूसरे से करने वाले यदि आज समाज के लिये कुछ करके दिखाये फिर बोले तो उनकी सुनी भी जाये पर खाली बेसिर पैर की बात का भारतीय जन-मानस पर शायद ही कोई प्रभाव पडे।
LikeLike
ह्म्म, इन दीपक पटेल जी का कमेंट मेरे कबीरपंथ वाले लेखों पर रेगुलर आय। हमनें इनका पता ठिकाना पूछा तो जनाब ने कमेंट में ही अपना मूल पता और वर्तमान पता पोस्टल एड्रेस समेत दे डाला।फ़िर एक दिन इन्होनें ऑर्कुट पर मेरी प्रोफाईल ढूंढ कर एड किया तब हमें मालूम चला कि ये सज्जन हैं छत्तीसगढ़ में राजिम के पास एक छोटे से गांव के, वर्तमान में कुवैत में कहीं नौकरी बजा रहे हैं। बड़े अच्छे बंदे लगे बातचीत से!!
LikeLike
Mrs. Asha Joglekar जी के प्रति, रही बात दुनिया मनती है तो दुनिया अपनी बहूँ-बेटियों को नंगा घूमा रही है तो हम भी धूमने चल दें, तो मुर्ख वो हुये कि हम ? arvind mishra जी के प्रतिगांधी जी एक अच्छे व्यक्तित्व हो सकते है, व्यक्ति नही। दिनेशराय द्विवेदी जी के प्रतिगाधी जी की चलती तो भारत को कईयों पाकिस्तान देखने पड़ते, यही तो आप शिक्षा पद्यति की भूल है कि सरदार पटेल जिन्होने सम्पूर्ण भारत को एक किया उनहे कोई याद नही करता है। गाधी माहत्म के आगे भी दुनिया जहाँ देश के सच्चे सपूतों ने देश के जिये काम किया है। दिनेश भाई की हार्दिक स्वागत है।
LikeLike
आज फिर जख़्म हरे कर देने वाला वाक्या अाखिर उठा ही गया। आज के ही दिन अर्थात 23 मार्च 1931 को गांधी जी की ऐतिहासिक भूल के परिणाम स्वरूप भगत सिंह ,सुखदेव व राजगुरू को फाँसी हुई थी। गांधी की के कारण आज इतिहास इन वीरों को खो बैठा। गांधी की बात सिर्फ किताबों तक ही ठीक लगती है अगर वास्तविकता में देखा जाये गांधी जी ने कभी भी राष्ट्र के समक्ष्ा अपने अहं को सर्वोपरी रखने की कोई कसर नही छोड़ी थी। मुझे कहने में कतई संकोच नही कि गांधी का भारत और भारतीय प्रेम के मध्य बहुत बड़ी राजनैतिक सोच रही थी। जिसमें काग्रेसी सत्ता के परिणाम स्वरूप उनके अलोचनात्मक कार्यो पर पर्दे डाले गये।
LikeLike
सही बात कही आपने।
LikeLike
ज्ञान जी, बापू को समझने की जरुरत है, आज के परिप्रेक्ष्य में। उन की उस ताकत को जानने की जरुरत है, जिसने टुकड़े-टुकड़े भारत को एक कर दिया। भारत को भारत बनाया। आलोचना तो सभी की की जा सकती है। लेकिन सब से कुछ न कुछ सीखा भी जा सकता है। भूतकाल का कोई भी नेतृत्व आज की परिस्थितियों पर खरा नहीं उतर सकता। नए नेतृत्व को नया होना होगा। वह भूतकालीन-वर्तमान आदर्शों से ही निर्मित होगा। दीपक पटेल भी मिल ही जाएंगे।
LikeLike
विचारोत्तेजक ,एक लेखक के तौर पर भी बापू का मूल्यांकन शुरू हो चुका हुआ है -मेरे पिता जी बापू की अंग्रेजी पढ़ने को उकसाते रहते थे ….उसकी सहजता ,सरलता के वे कायल थे -मैंने पाया है कि किसी विषय का धुरंधर विद्वान् ही संदर्भगत बात को सरल शब्दों मे कह सकता है -बापू के लेखन से यही बात चरितार्थ होती है -यह भी तय है कि वे एक गंभीर अध्येता थे -क्या पश्चिम ,क्या पूर्व ,क्या प्राचीन ,क्या अर्वाचीन ,सभी वांग्मय उन्होंने पढ़ बांच डाला था -उनके लेखन मे यह पल पल इंगित होता है -आपने ठीक कहा बापू जैसा साहसी व्यक्ति शायद ही कोई रहा हो जो अपनी कमजोरियों को सहज ही व्यक्त कर देते थे -कोई दुराव छुपाव ,पाखंड तो उनके व्यक्तित्व मे लगता ही नही -उनका जीवन एक खुली किताब है .ऐसी महान शख्सियत पर चर्चा शुरू करने के लिए धन्यवाद …….
LikeLike
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । जिसे दुनिया ने माना उसे हम न मानें तो बेवकूफ कौन हुआ ?
LikeLike
ज्ञान जी, आप की बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ. जिस देश में “गांधी” और “गंगा” हों, उस देश में जन्मने का अर्थ ही अलग है …… जहाँ तक बापू पर चर्चा की बात है, तो किसी सार्थक चर्चा के लिए इस से उपयुक्त विषय और क्या हो ?
LikeLike