मैने हैरी पॉटर नहीं पढ़ा। मुझे बताया गया कि वह चन्द्रकांता संतति या भूतनाथ जैसी तिलस्मी रचना है। चन्द्रकांता संतति को पढ़ने के लिये उस समय की बनारस की अंग्रेज मेमों ने हिन्दी सीखी थी। नो वण्डर कि हैरी पॉटर पर इतनी हांव-हांव होती है।
पर अब अगर हैरी पॉटर नुमा कुछ पढ़ना चाहूंगा तो ब्लॉग पर पढ़ना चाहूंगा। जेके रॉलिंस या देवकीनन्दन खत्री की प्रतिभा के दीवाने नहीं हैं क्या ब्लॉग जगत में?! वैसे तो चचा हैदर वाले पॉडकास्ट में अज़दक ने बारिश और टंगट्विस्टर भाषा के साथ जो प्रयोग किये हैं, उसे देख कर लगता है कि पटखनीआसन के बाद अगर वे “तिलस्म के अज़दकीय पॉडकास्ट” की शृंखला चलाये तो सबसे हिट ब्लॉगर साबित होंगे। खैर, मैं यह कदापि नहीं कहना चाहता कि वे अभी सबसे हिट नहीं हैं। पर बकरी की लेंड़ी की बजाय हैरीपॉटर का तिलस्म कहीं ज्यादा प्रिय लगेगा। और असली चीज है कि समझ में आयेगा।
हैरीपॉटरीय पोस्ट लिखने में अनूप सुकुल भी मुझे जबरदस्त काबिल लगते हैं। अगड़म-बगड़म पुराणिक कदापि नहीं लगते। वे तो भूत-राखी-सेहरावत-चुड़ैल के साथ शाश्वत प्रयोग धर्मी हैं, पर सब के साथ व्यंग की तिताई लपेट देते हैं; वहीं गड़बड़ हो जाता है। तिलस्म चले तो बिना व्यंग के चले! शिव कुमार मिश्र शायद लिख पाते, पर वे भी दुर्योधन की डायरी ले कर व्यंगकारों की *** टोली में जा घुसे हैं। कभी कभी ही जायका बदलने को दिनकर जी को ठेलते हैं ब्लॉग पर!
खैर, और भी बहुत हैं प्रतिभा सम्पन्न। आशा है कोई न कोई आगे आयेंगे। और नहीं आये तो साल छ महीने बाद हम ही ट्राई मारेंगे। अपना अवसाद मिटाने को ऐसा लेखन-पठन होना चाहिये।
और प्रियंकर जी कहां गये – हैरीपॉटर/चन्द्रकांता संतति उनके लिये साहित्य की छुद्र पायदान हो सकती है। पर वे टिप्पणी तो कर ही सकते हैं!
(चित्र जेके रॉलिंस की ऑफीशियल वेब साइट से।)
कल बापू पर एक्स्ट्रीम रियेक्शंस मिले। अच्छा रहा। आश्चर्य नहीं हुआ। मैं अगर योगेश्वर कृष्ण पर चर्चा के लिये आह्वान करता तो भी शायद एक्स्ट्रीम रियेक्शंस मिलते!
श्री अरविन्द के सामने एक विक्षिप्त से लगते कुल्लासामी (मैं शायद नाम के हिज्जे ठीक से नहीं लिख पा रहा) ने चाय के कप को उलटा-पलटा। श्री अरविन्द ने बताया कि उसका अर्थ है कि अगर कप को भरना हो तो पहले खाली करना चाहिये। हमारे दिमाग में भी अगर कुछ भरना है तो पहले खाली करना होगा!
हैरी पाटर के बारे में कभी लिखते और उसकी तुलना प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह के पात्र हामिद से करते हुये हमने एक लेख लिखा था हैरी का जादू और हामिद का चिमटा। इस लेख में मैंने लिखा था-मुझे न जाने क्यों‘ईदगाह’ कहानी के कुछ पन्ने हैरी पाटर के हजारों पन्नों पर भारी लगते हैं तथा हामिद का चिमटा हैरी के किसी भी जादू से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा लगता है। कारण शायद यह भी है कि हामिद का सच मुझे अपना सच लगता है जबकि हैरी पाटर का सच किसी का सच नहीं है सिवाय चंद लोगोंकी फंतासी के।इस पर ई-स्वामी की प्रतिक्रिया दिलचस्प थी। उन्होंने लिखा था-हामिद का चिमटा उन तमाम बच्चों को गिल्ट देता है जिन्होंने मध्यमवर्गिय परिवारों मे भी पैदा हो कर बाल हठ किये होंगे – सारे हामिद जैसे स्याने नही होते इस का ये मतलब नही की बाकी बच्चे अपने माता-पिता की आर्थिक सीमितता नही समझे होंगे, बाल-मन है खिलौना चाहेगा. और उन तमाम मा-बाप को ये शिक्षा देता है की तुम्हारा बच्चा हामिद है या नही इस की लिटमस टेस्ट लो और ना हो तो पडोसी की औलाद हामिद है वो नही है ये तुलना करने से मत चूको!क्या ये नही होता? क्या ये नही हुआ?? भाड मे गया हामिद और उसका चिमटा – मेरी चले तो ये कहानी कालिज के लेवल पर कोर्स मे होना चाहिए स्कूल के लेवल पर नही! गिल्ट-मांगरीग देसी मेन्टेलिटी को प्रमोट करती है ये कहानी!!इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये मैंने लिखा था- ईदगाह अपराध बोध की नहीं जीवन बोध की कहानी है। तो मुझे लगता है कि हम अपने आसपास के हामिद की कहानी कहते-सुनते-लिखते रहें। कल को शायद इनमें से ही कोई कथा सबकी कथा बन जायेगी। इस कथा को कहने में सब समर्थ हैं जो हामिद को अपना समझते हैं। है कि नहीं ?
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हैरी पोटर का देसी संस्करण वाकई दिलचस्प होगा , कोई तो पहल करे !
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तो कौन लिखेगा ‘हरिया पुत्तर’ का देसी आख्यान ?अज़दक या फ़ुरसतिया ?
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