एक अजूबा है ल्हासा की रेल लाइन


कल तिब्बत पर लिखी पोस्ट पर टिप्पणियों से लगा कि लोग तिब्बत के राजनैतिक मसले से परिचित तो हैं, पर उदासीन हैं। लोग दलाई लामा की फोटो देखते देखते ऊब गये हैं। मुझे भी न बुद्धिज्म से जुड़ाव है न तिब्बत के सांस्कृतिक आइसोलेशन से। मुझे सिर्फ चीन की दादागिरी और एक देश-प्रांत के क्रूर दमन से कष्ट है। रही बात तिब्बत पर जानकारी की, यदि आप तिब्बत पर इण्टरनेट सर्च करें और अंग्रेजी पढ़ने को सन्नध रहें तो बहुत कुछ मिलता है।

तिब्बत के बारे में मुझे ल्हासा तक बनी रेल लाइन ने काफी फैसीनेट किया है। मै यहां उस रेल के अजूबे के बारे में लिख रहा हूं। चीन ने तिब्बत का एकांतवास समाप्त करने और वहां की सांस्कृतिक विशेषता को समाप्त करने के लिये उसे रेल मार्ग से जोड़ा। इस रेल लाइन के प्रयोग से चीन की तिब्बत पर सामरिक पकड़ भी मजबूत हुई है।

जीनिंग-गोलमुद-ल्हासा के बीच 1956 किलोमीटर लम्बी यह रेल लाइन सन 2006 में बन कर पूरी हुई। इसका उद्घाटन हू जिंताओ ने 1 जुलाई 2006 को किया था। इसका प्रथम खण्ड (जीनिंग-गोलमुद) 815 किलोमीटर का है और 1984 में बन कर तैयार हुआ था। दूसर और 1141 किलोमीटर लम्बा गोलमुद-ल्हासा खण्ड 2006 में बना।

असली अजूबा है यह दूसरा गोलमुद-ल्हासा खण्ड। इसका 80% हिस्सा 4000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर है। यह 5072 मीटर ऊंचे तंग्गूला पास से गुजरती है जो विश्व का सबसे ऊंचा रेल ट्रैक है। इसी पर फेंगुओशान रेल सुरंग है जो 1.4 किलोमीटर लम्बी है और समुद्र से 4905 मीटर की ऊंचाई पर विश्व की सबसे ऊंची सुरंग है। ल्हासा से 80 किलोमीटर उत्तर पश्चिम मे दूर यांगबजिंग टनल 3.345 किलोमीटर लम्बी है जो इतनी ऊंचाई (4264 मीटर समुद्र तल से ऊंची) पर सबसे लम्बी सुरंग है।

जीनिंग-गोलमुद-ल्हासा रेल लाइन का नक्शा और चलती ट्रेन का चित्र; विकीपेडिया से।

मजे की बात है कि गोलमुद-ल्हासा खण्ड का अधाभाग पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) जमीन पर है।1 यह जमीन सर्दियों में सब जीरो तापक्रम पर रहती है। तापक्रम (-)40 डिग्री सेल्सियस तक जाता है। इस पर्माफ्रॉस्ट जमीन में बहुत सा हिस्सा बर्फ-जल का है, जो सर्दियों में पत्थर की तरह ठोस रहता है। गर्मियों में जब बर्फ ढ़ीली होने लगती है तब रेल ट्रैक दलदली जमीन में धसक सकता है। इस समस्या से निजात पाने के लिये कई जगहों पर तो मिट्टी डाली गयी है। पर बहुत ऊंचाई के स्थानों पर द्रव अमोनिया के बेड पर रेल लाइन बिछाई गयी है। लिक्विड अमोनिया के हीट रेडियेटिंग पाइप रेफ्रीजरेटर का काम करते हैं, जिससे गर्मियों में भी रेल की पटरी को ठोस सतह मिलती रहती है। बड़ा ही अनूठा उपाय है पर्माफ्रॉस्ट जमीन को रेल बिछाने योग्य करने का!

दुनियां की छत पर यह रेल लाइन एक महान अजूबा है। और चीन के लिये तिब्बत पर जकड़ बनाने का सबसे कारगर औजार भी!


1. पर्माफ्रॉस्ट जमीन गर्मियों में वैसा व्यवहार करती है, जैसे कमजोर फार्मेशन वाले बेस पर बनी रेल पटरी हमारे देश में मड-पम्पिंग (mud-pumping) के कारण टेढ़ी मेढ़ी हो जाने की अवस्था में आ जाती है। वह स्थिति किसी भी ट्रैक-इंजीनियर के लिये भयावह होती है।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

15 thoughts on “एक अजूबा है ल्हासा की रेल लाइन

  1. सबसे पहले पोस्ट के लिए धन्यवाद. बुद्धिज्म और तिब्बत के सांस्कृतिक इसोलेसन वाली बात थोडी अजीब लगी. ये रेल लाइन अजूबा तो जरूर है पर आप जरा और खोज कीजिये तो ये बात भी पता चलेगी कि पर्यावरणविदों ने इस परियोजना का काफ़ी विरोध किया था और उस क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों पर चिंता जाहिर की थी. कुछ जीवों की प्रजातियों पर खतरा होने तक की बात की गई है. इस रेल में ऑक्सिजन कि सप्लाई और तापमान नियंत्रण जैसी जानकारी भी देते तो अच्छा होता. और एक बात ये भी कि इस रेल के चालू होने के बाद चीन और तिब्बत में पर्यटकों कि संख्या में बहुत तेज बढोत्तरी हुई है.

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  2. इस रेल लाइन और इसकी निर्माण प्रक्रिया पर डिस्कवरी ने एक वृत्तचित्र बना रखा है…अक्सर डिस्कवरी चैनल पर प्रसारित होता रहता है।

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  3. रेल लाइन के अजूबे को हम केवल सामरिक उपयोग की दृष्टि से ही देख रहे हैं यह हमारा संकीर्ण दृष्टिकोण और वामपंथ व चीन के प्रति पूर्वाग्रह नहीं है क्या? जब भारत में पहली रेल लाइन बिछी तब भी अंग्रेजों का दृष्टिकोण यही था। लेकिन उस रेल ने क्या जनता की सेवा नहीं की? तिब्बत रेल से जुड़ा यह बहुत बड़ी जन उपलब्धि भी है। इस से कटा हुआ तिब्बत शेष दुनियां से जुड़ गया है। अब देखना यह है कि तिब्बती जनता उस का क्या उपयोग करती है?

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  4. इसके बारे में मैने भी पढ़ा था जब ये शुरू हुई थी, पढ़कर अजूबा ही लगा था लेकिन जो भी है कमाल तो किया ही है। एक बार फिर पढ़वाने के लिये धन्यवाद।

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  5. चीन से तिब्बत की ये रेल लाइन अजूबा है और तिब्बत को मजबूत कब्जे में रखने का जरिया भी। चीन और वामपंथ को लाख गाली देने वाले भी उनकी तरक्की से चकित हैं। ये अलग बात है कि भारत के वामपंथियों का तरक्की से वास्ता ही नहीं है। दो राज्यों में बरसों से सरकार होने के बाद भी विकास का कोई मॉडल नहीं दे पाए। हां, ये अलग बात है कि चीन की तरक्की और वामपंथी तानाशाही में बहुत कुछ दबा दिया गया। हम तो मुंबई में एक बांद्रा वर्ली सी लिंक बनाने में आठ साल से भी ज्यादा लगा देते हैं। और, चीन साल भर में ऐसे छे ब्रिज बना देता है। और, ज्ञानजी इलाहाबाद में जिस खूबसूरत ब्रिज से नैनी जुड़ गया है। दो-दो प्रधानमंत्रियों वीपी सिंह, राजीव गांधी के मंच से भरोसा देने के बाद भी ये मूर्त रूप नहीं ले सका था। मुरली मनोहर जोशी के आखिरी कार्यकाल में ये बन सका।

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  6. जीनिंग-गोलमुद-ल्हासा रेल लाईन की जानकारी बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक रही, बहुत आभार इसे यहाँ लाने का.

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