गोलू पाण्डेय 1 मेरा पामेरियन पॉमरेनियन-अल्शेशियन क्रॉसब्रीड का कुत्ता था। साल भर हो गया उसके देहांत को। सात साल जिया। सात साल में जितनी खुशियां हमें दे कर गया; मरने के समय उतना ही उदास भी कर गया।
गोलू पाण्डेय जब ऊर्जा से भरा होता था तो अपनी पूंछ पकड़ने के लिये गोल गोल घूमता था। पूंछ तो पकड़ में आती न थी; पर हमारा मनोरंजन बहुत होता था। मुझे लगता है कि बहुत से कुत्ते इस प्रकार चकरघिन्नी खा कर अपनी पूंछ को चेज करते हैं। वे यह नहीं जानते कि जिसे वे चेज करते हैं, वह उन्ही के पास है। या चेज करना छोड़ दें तो वह चीज (पूंछ) उन्ही के पास आ जायेगी।
गोलू पाण्डेय जिंदगी भर चेज ही करता रहा। पूंछ, चिड़िया, बिल्ली, चुहिया और कभी कभी तो मक्खी! वह दौड़ता, सूंघता, चकरघिन्नी खाता, ऊंघता और हल्की आहट पर कान खड़े करने वाला जीव था। कभी कभी (या बहुधा) वह यह अहसास करा देता था कि हम उसे जितना होशियार समझते हैं, उससे ज्यादा मेधासम्पन्न है वह।
गोलू पाण्डेय चेज करते करते अंतत: जिन्दगी को चेज नहीं कर पाया। चेज करने में वस्तुयें उसके हाथ न लगी हों, पर जितनी भी खुशी इकठ्ठी की उसने, वह मुक्त हस्त से हमें देता गया।
और यह लघु कथा पढ़िये:
एक बड़ी बिल्ली ने एक छोटे बिल्ले को अपनी पूंछ को चेज करते देखा। पूछा – “अपनी पूंछ क्यों चेज कर रहे हो?”
छोटे बिल्ले ने जवाब दिया, “मुझे पता चला है कि एक बिल्ली की जिन्दगी में सबसे बढ़िया चीज है प्रसन्नता। और यह प्रसन्नता मेरी पूंछ में है॥ इस लिये मैं पूंछ को चेज कर रहा हूं। जब मैं पूंछ को पकड़ लूंगा, तब प्रसन्नता को पा लूंगा।”
बड़ी बिल्ली ने कहा, “बेटा, मैने भी जीवन की समस्याओं पर विचार किया है। मैने भी जान लिया है कि प्रसन्नता पूंछ में है। पर मैने देखा है कि जब भी मैं इसे चेज करता हूं, यह मुझसे दूर भागती है। और जब मैं अपने काम में लग जाता हूं, तब यह चुपचाप मेरे पीछे चलने लगती है। यह सब जगह मेरे पीछे चलती है!”
(सी एल जेम्स की रचना “ऑन हेप्पीनेस” से)
1. यह लिंक एक दुखद सी मेरे अंग्रेजी ब्लॉग पर लिखी पोस्ट का है।
गोलू का नाम लेकर बहुत ऊची बात कह दी आप ने,वेसे हमारे पास भी हेरी नाम का कुत्ता हे, वह भी जब शरारत के मुड मे होता हे तो हब सब के लिये एक अलग सा मनोरंजन होता हे ओर वो भी अपनी पूछं को पकडने की कोशिश करता हे,गोलु के बारे पढ कर दुख हुया
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@ श्री अरविन्द मिश्र – सही आपने कहा। शब्द है – पॉमरेनियन। मैने पोस्ट में सही कर दिया है। धन्यवाद।
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ज्ञान जी सही शब्द क्या है ?- पामेरियन या पाम्रेनियन ?My tributes to Golu !
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गोलू जी के लिए हमारी भी हार्दिक संवेदना एवं श्रद्धांजलि.
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मैने देखा है कि जब भी मैं इसे चेज करता हूं, यह मुझसे दूर भागती है। और जब मैं अपने काम में लग जाता हूं, तब यह चुपचाप मेरे पीछे चलने लगती है। यह सब जगह मेरे पीछे चलती है!बहुत कुछ सिखा गई ये लाईनें…
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गोलू के लिए हार्दिक संवेदना….
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ज्ञान जी देखा जाए तो हम सभी गोलू पांडे ही हैं जो किसी ना किसी चीज़ को चेज़ कर रहे हैं । दिक्कत ये है कि इस चेजिंग के नतीजे अकसर प्रॉपर नहीं मिलते । गोलू पांडे को हमारी श्रद्धांजली है ।
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पंकज अवधिया जी ने मेरी बात पहले ही लिख दी!!
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भैय्यागोलू ने मुझे हमारे “टैरी” की याद ताज़ा करवा दी. वो दो साल ही जिंदा रहा लेकिन हमारी यादों में आज १७ साल बाद भी जिंदा है. उसकी हरकतें याद आती हैं तो हँसी और रोना दोनों एक साथ आते हैं. मजे की बात कही है आप ने सब कुछ अपने पास होते हुए भी हम जीवन में पता नहीं क्या और पाने को भागते रहते हैं. पूँछ को पकड़ना अपने सपनो के पीछे भागने जैसा है.नीरज
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गोलू क्या हर कोई चेज करने मे ही लगा है। लघु कथा अच्छी है।
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