अब तक हम “मानसिक हलचल” से प्रेरित पोस्टें प्रस्तुत करते रहे। जब जो मन आया वह ठेला। अब समय आ गया है कि ऐसा लिखें, जो इस ब्लॉग को एक चरित्र प्रदान कर सके। यह निश्चय ही न जासूसी दुनियाँ है, न मनोहर कहानियां। हास्य – व्यंग में भी जो महारत आलोक पुराणिक, राजेन्द्र त्यागी या शिव कुमार मिश्र को है, वह हमें नहीं है। कविता ठेलने वाले तो बहुसंख्य हैं, और उनकी पॉपुलेशन में वृद्धि करने में न नफा है न उस लायक अपने में उत्कृष्टता।
अपने लेखन में केवल आस-पास के बारे में सीधे सीधे या न्यून-अधिक कोण से लिखने की थोड़ी बहुत क्षमता है। उस लेखन में अगर कुछ कमी-बेसी होती है तो उसे मेरा मोबाइल कैमरा समतल करता है।
क्या किया जाये? मेरे ख्याल से सारी हलचल आसपास से प्रारम्भ होनी चहिये। वहां से वह स्टीफन हांकिंस के पाले में जाये या हिलेरी क्लिन्टन के या हू जिन्ताओ के – वह उसके भाग्य पर छोड़ देना चाहिये। मूल बात यह होनी चाहिये कि उससे मानवता डी-ग्रेड नहीं होनी चाहिये। आदमी की मूलभूत अच्छाई पर विश्वास दृढ़ होना चाहिये और पोस्टों में व्यक्तिगत/सामुहिक सफलता के सूत्र अण्डरलाइन होने चाहियें। बस, यह अवश्य आशंका होती है कि पाठक शायद यही नहीं कुछ और/और भी चाहते हैं। यह कुछ और क्या है; चार सौ पोस्टें ठेलने के बाद भी समझ नहीं आया। शायद, जो पीढ़ी हिन्दी नेट पर आ रही है उसकी अपेक्षायें कुछ और भी हैं। पर यह भी नहीं मालुम कि वे अपेक्षायें क्या हैं और क्या उस आधार पर कुछ परोसा जा सकना मेरी क्षमताओं में है भी या नहीं!
चुहुल या पंगेबाजी की फ्रेंचाइसी अरुण पंगेबाज ने देने से मना कर दिया है, अत: उस विधा का प्रयोग यदा-कदा ही होना चाहिये, जिससे पंगेबाजी के © कॉपीराइट का उल्लंघन न हो!
लेखन में एक मॉडल फुरसतिया सुकुल का है। पर उस जैसा भी लिखने में एक तो मनमौजी बनना पड़ेगा – जो मुझमें स्थाई भाव के रूप में सम्भव नहीं है। दूसरा (मुझे लगता है कि) सुकुल का अध्ययन मुझसे अधिक स्तरीय और विस्तृत है। इस लिये कोई स्टाइल कॉपी करना हाराकीरी करना होगा। लिहाजा, रास्ता अपना ही हो और अपनी ही घास के रँग में रंगा जाये।
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इसके इम्पेरेटिव (imperative – निहितार्थ या आवश्यकता) हैं लिखा अपने स्टाइल से जाये। पर अधिक ध्येय-युक्त हो वह। क्या ख्याल है आपका? और यह भी है ब्लॉग केवल लेखन की विधा नहीं है, वह बहुत विस्तृत तरीके से व्यक्तित्व, सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति को प्रकटित करता है।
खैर कुछ परिवर्तन होने चाहियें।
ऐसा लगता है जबसे आपने “मानसिक हलचल “ही पकड़ा है …हलचल तेज शुरू हो गयीं है ,मैं जब लिखता हूँ बस दिल की आवाज से लिखता हूँ…इतनी गहरी सोचो मे नही पड़ता हूँ.. ब्लॉग इसलिए अलग है की यहाँ आपके विचारों को किसी संपादक की कैचियो से नही गुजरना पड़ता ,आपके बिहार मे लिखे गये एक विचार को कनाडा या अमेरिका मे बैठा भारतीय कही सिरे से महसूस कर सकता है….इसमे शब्दों की बाजीगिरी उतनी महत्वपूर्ण नही जितनी वो भावना जो लिखी गयीं है ,एक लेखक ओर आम इन्सान मे यही फर्क होता है की लेखक के पास अपनी भावनाये व्यक्त करने के लिए शब्दों के बेहतरीन जाल ,सयोंजन की कला ओर शब्द कौशल होता है पर ब्लॉग लेखन शायद एक ऐसी विधा है जहाँ कुशल चित्तेरे भी है ओर १४ -१५ साल की बच्ची भी ,जो मासूमियत से लिखती है की वो हीरो पुक चलाना सीख रही है ..मुझे दोनों ही भले लगते है …..महत्पूर्ण बात ये है की दोनों एक साथ है…….
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आत्म मँथन भी मानसिक हलचल का ही प्रारुप है – आप जितना अपने आप से सच्चा वार्तालाप करेँगेँ जैसा कि आप करते हैँ वही दूसरोँ के मन तक भी पहुँचेगा …जैसा कि अब तक हुआ है ..फिर उलझन कैसी ? आप सही दिशा मेँ आगे बढेँ ..शुभकामना सह्: – लावण्या
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आप की पोस्ट पढ़ कर मेरी छोटी सीइ बुद्धी में जो समझ आया है वो ये कि आप विचार कर रहे हैं कि ऐसा क्या लिखा जाए और किस शैली में लिखा जाए की ज्यादा से ज्यादा पाठकों को सन्तुष्टी हो। जहां तक शैली का सवाल है आप ने खुद ही सही जवाब दे दिया कि स्टाइल अपना मौलिक होना चाहिए। जहां तक कन्टेंट का सवाल है मुझे लगता है पहला सवाल तो ये है कि ब्लोग लेखन कर किस लिए रहे हैं ,क्या हम लेखक है क्या हमारी रोजी रोटी इस से चलती है और इस लिए ज्यादा से ज्यादा पाठकों की पसंद नापसंद का ख्याल रखना जरूरी है। मार्केटिंग की भाषा में कहूँ तो क्या हमारा ब्लोग एक प्रोडक्ट है जिसे हम मार्केट में बेचने उतरे हैं अगर हां तब तो खरीदने वाले को क्या चाहिए और किस दाम पर बेचना हमारे लिए फ़ायदेमंद होगा सोचना चाहिए , और अगर ऐसा नहीं है और हम लिखते है अपनी अभिव्यक्ती की इच्छा को पूरा करने के लिए तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की पसंद नापसंद के बारे में क्या सोचना । हम जैसे हैं वैसे हैं और हमारी अभिव्यक्ति अपनी है। शायद मुझे भी इस विषय पर अभी और सोचना है पूरी तरह से क्लीअर थिकिंग के लिए। आप की पोस्ट पढ़ कर जो सवाल मन में है वो ये कि हम ब्लोगिंग कर रहे हैं किस के लिए अपने लिए या दूसरों के लिए।
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जितू जी आप भडकाये मत, कही आपके कहने मे आकर ड्राफ़्ट वापस मांग लिया तो, आपको ब्लोग से कमाई नही हो रही है तो हमे तो कमाने दो जी जलो मत 🙂
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यह बैठे ठाले क्या सूझ गया आपको ,अच्छे भले चिट्ठाकारिता कर रहे हैं ,हाँ आलोक जी की हाँ मे हाँ मिलाते यह कह सकता हूँ कि अपनी पढी हुयी किताबों के सार संक्षेप से हिन्दी ब्लागरों क्या ज्ञान वर्धन कीजिये ..जहाँ तक व्यंग का सवाल है एक के रहते यहाँ आप की दाल नही गलने वाली है-रही कविता तो आप पहले से ही कवि ह्रदय हैं जो कवि होने से ज्यादा जरूरी है .हमे नए ज्ञान की आतुर प्रतीक्षा है .
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अरे पाण्डेय जी, आप दूसरों के लिए आदर्श है, आप दूसरों मे आदर्श काहे को ढूंढते है? आप भी कहाँ इत्ते सोच विचार मे पड़ गए, आप जैसे ही वैसे ही झकास है। वैसे यदि वैचारिक रुप से देखा जाए तो आप ब्लॉगिंग की दूसरी अवस्था: ब्लॉगिंग, क्यों, कैसी और किसके लिए? को प्राप्त हो रहे है। इस अवस्था मे पहुँचते पहुँचते कई ब्लॉगर, ब्लॉगिंग बन्द करके, चिंतन की अवस्था को प्राप्त होते है, लेकिन आप ऐसा कतई मत करिएगा।आप जैसा भी लिखते है, वैसा ही हम सभी को चाहिए। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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आलोकजी और अनूप जी ने सब कह दिया, अब उनसे बेहतर कह पाना मुश्किल है, आप जैसे मुक्त प्रवाह में किचन से लेकर ब्राजील के तेल तक लिखते रहे हैं वैसा ही जारी रखें।
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हम तो आपसे सीखने की कोशिश करते रहते हैं, अब हम क्या कहें? बस जैसा कि कई लोगो ने कहा है कि सबकुछ अच्छा चल रहा है और आपको बदलाव का नहीं सोचना चाहिए या जरूरत नहीं है. पर मैं ऐसा नहीं सोचता सुधार तो सतत चलते रहना चाहिए… आप सबसे अच्छे हैं तो भी हमेशा खुले दिमाग से सोच कर परिवर्तन तो होते ही रहना चाहिए.
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मुझे लगता है एक ब्लॉगर को इस सोच में नही पड़ना चाहिए, अगर इस सोच मे पड़े तो ब्रेक सा लगने लग जाता है पोस्ट डालने में।इसलिए जो पोस्ट मन मे आए बस डालते रहिए।
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