स्लैंग्स भाषा को समृद्ध करते हैं। शिवकुमार मिश्र का इनफॉर्मल ग्रुप जो स्लैंग्स जनरेट करता है, वह यदा-कदा मैं अपने ब्लॉग पर ठेल दिया करता हूं। उन्होंने एक शब्द बताया था -"खतम"। इसपर मैने एक पोस्ट लिखी थी – आप तो बिल्कुल खतम आदमी हैं। एक अन्य स्लैंग शब्द है "कसवाना", जिसे मुझे उपेंद्र कुमार सिंह जी ने बताया था और जिसपर पोस्ट थी – कहां से कसवाये हो जी?
शिव ने एक और शब्द दिया था "मुद्राभिषेक", जिसपर पोस्ट थी – मुद्राष्टाध्यायी नामक ग्रंथ रचने की गुहार। शिव ने आजकल नये स्लैंग्स बताना बंद कर रखा है। मेरे रेलवे के औपचारिक वातावरण में स्लैंग्स के फलने फूलने की उपयुक्त परिस्थितियां नहीं हैं। लिहाजा नये स्लैंग्स मुझे पता नहीं चलते। कर्मचारीगण गढ़ते भी होंगे तो मुझसे शेयर नहीं करते।
स्लैंग (slang – एक अनौपचारिक शब्दकोश का शब्द, जिसका अर्थ एक समूह या लोग प्रारम्भ करते हैं, और जो सामान्यत: हास्य-व्यंग उपजाता है) बहुत हैं आम बोलचाल में, पर मुझे नहीं मालुम कि उनका कोई अमानक-शब्दकोश (non standard dictionary) बनने का प्रयास किया गया या नहीं। अंग्रेजी में अर्बनडिक्शनरी.कॉम पर स्लैंग्स का संकलन है। उसका एक गूगल गैजेट भी उपलब्ध है, जिसका बटन मैं यहां उपलब्ध कर रहा हूं।»
एक विचार – सफल ब्लॉग स्लैंग्स का सफल और सार्थक प्रयोग प्रयोग करते हैं। मिसाल के तौर पर व्यंगकारों के ब्लॉग या फुरसतिया और अज़दक के ब्लॉग। |
मेरे विचार से एक कम्यूनिटी ब्लॉग हो सकता है, जिसमें लोग अपनी मर्जी से हिन्दी स्लैंग्स और उसका अर्थ/प्रयोग प्रस्तुत कर सकें। उससे हिन्दी ब्लॉगिंग की भाषा सशक्त बनेगी।
अब आप देखें कि चिरकुट एक स्लैंग ही रहा होगा कुछ समय पहले तक। पता नहीं अब भी मानक शब्दकोश में आ पाया है या नहीं। अरविंद सहज समांतर कोश में तो नहीं मिला। पर "चिरकुट" ने हिंदी ब्लॉगरी को कितना समृद्ध किया है! इसी तरह पिलानी के पास स्थान है – चोमू। जब हम बिट्स, पिलानी में पढ़ते थे तो गंवई लंण्ठ के लिये शब्द प्रयोग करते थे – चोमू। व्यक्ति में चोमुत्व का उत्तरोत्तर कम होते जाना, समाज में देशज मनोरंजन समाप्त कर रहा है। तभी लोग टीवी से चिपकत्व बढ़ा रहे हैं। नेचुरल भाषा क्वाइन करने की (सृजन करने की) प्रतिभा का ह्रास हो रहा है।
मित्रों, आप टिप्पणी में अपने ज्ञात दो-चार अनूठे हिन्दी स्लैंग ठेल दें – प्लीज! और कोई महानुभाव सामुहिक "हिन्दी स्लैंग का ब्लॉग" बनाने की पहल कर सकते हों तो अत्युत्तम!
रोचक! विण्डोज लाइवराइटर से भविष्य में शिड्यूल दिन/समय पर पोस्ट पब्लिश करने से ब्लॉगर.कॉम पोस्ट तुरन्त पब्लिश नहीं कर रहा। शिड्यूल कर रहा है। एक नया फायदा!
उत्तम विचार – इस बात पर पक्का कुछ न कुछ होना चाहिए – लेकिन घंटी के गले में बिल्ली कौन बाँधेगा ?[ p.s. चोमू / चोम – का प्रयोग जयपुर में भी होता था – और MBA के दौरान BITS वालों ने प्रचार प्रसार बहुत किया बाकी जगह – हमारे कालेज में “पीतल” , “सूड़” चलते थे – “चिरकुट” की महिमा का मंडन जन प्रिय रहा है – विनय पत्रिका से – कानपुर तो इन पवित्र नामों का खजाना है – यहाँ UAE में Big Boss के लिए “अरबाब” चलता है – “खल्लास” ]
LikeLike
साब जी! चौमू पिलानी के पास नहीं हमारे जयपुर के पास है . अब तो लगभग सटा जा रहा है जयपुर से . हां! जयपुर से पिलानी के रास्ते में ज़रूर पड़ता है . ढूंढाड़ और शेखावाटी में चौमू की वही महत्ता है जो एटा-मैनपुरी में भोगांव की और पंजाब-हरियाणा में भटिंडा की है . आप चूंकि पिलानी (शेखावाटी) में रहे हैं इसलिए हमारे चौमू के पुण्य-प्रताप से परिचित हैं .हिंदी में स्लैंग की डिक्शनरी तो होनी ही चाहिए. परतब शुद्धतावादी-नैतिकतावादी — प्यूरिटन — आग्रहों का क्या होगा,क्योंकि स्लैंग अक्सर भदेस और अश्लीलता की सीमारेखा पर मंडराते रहते हैं . अब आप कहेंगे हमही से ज्ञान ठेल रहा है चौमू के पड़ोस का ई मनई . हम भोगांव के पड़ोस का भी हूं. भटिंडा पता नहीं कैसे छूट गया .डिक्शनरी बनेगी तो योगदान किया जाएगा . ज्ञान जी के ब्लॉग पर हिमाकत नहीं करेंगे .
LikeLike
आप तो स्लैंग्स को लेकर काफी “सेन्टिया” से गये… सब यहाँ इक्कठे करके एक पोस्ट के माध्यम से रिप्रड्यूस कर दिजियेगा. तब तक अन्य माध्यमों से भी आप तक नये स्लैंग्स आ जायेंगे. 🙂 शुभकामनाऐं.
LikeLike
हिन्दी क ्स्लेंगस का दस्तावेज बनाना अच्छा आइडिय रहेगा। हम भी पूरी कौशिश करेगें इस के साथ जुड़ने की। मुन्नु गुरु की पोस्ट बड़िया है। आप सोहर गाये तो हम ताली बजाने को चले आयेगें।
LikeLike
गुरुदेव, जो बातें लंठई में रेलने वाली हैं, उनकी खोज हिंदी को झक्कास बनाने के लिये करने का बड़ा फोड़ू आइडिया निकाल दिये हैं। अब बात उठी है तो दूर तक जायेगी ही। वाह! मजा आ गया…
LikeLike
“झक्कास”, मतलब “चकाचक ” दोनोँ ही स्लेन्ग शब्द !बम्बइया भाषा मेँ तो प्रचुर मात्रा मेँ ऐसे शब्द आये हैँ -एकबार लोग सुन लेते हैँ फिर प्रयोग आम हो जाता है , जैसे “पँगा लेना ” ( अरुण भाई की तरह :)और “धमाल” जैसे शब्द आजकल आम हो गये हैँ -कुछ तो अन्य सज्जनोँ ने टीप्पण्णीयोँ मेँ लिख ही दिये हैँ :)एक सिँधी लडकी थी वो हमेशा भेलपूडी बेचनेवाले हमारे, “भैयाजी ” से कहती, ” भैय्या, हमको भेल पूडी बनाओ ! ” और युपी का बँदा ,बम्बई की ऐसी लडकी से खीझकर मुस्कुराकर कहता, ” अरे बेबी, आप्को कैसे बनायेँगेँ भेल पूडी ? हाँ, आप के लिये अभी बना देते हैँ ” और वो तुनक कर कहती, ” खाली पीली भेजा मत खाओ और फटाफट मस्त भेल बनाओ ! “मुन्नाभाई और उनकी मँडली ने तो बम्बैय्या भाषा को विश्वव्यापी बानाने का काम किया है !– लावण्या
LikeLike
बहुत सारे हर्बल स्लैंग्स भी है फिर तो। मै दिमाग दौडाता हूँ और फिर पोस्ट लिखता हूँ। 🙂
LikeLike
Dimag hi dahi karnarayata faila dena lapetnaWATT LAGana BC
LikeLike
भैय्याअगर जेब पर “फटका” न लगे और आप कोई “लफडा” न करें तो मुम्बईया स्लैंग बताने को हम तैयार हैं. बाद में चाहे आप मित्र मंडली में “खाली पीली बूम” मारते रहें की ये स्लैंग आप ने ही इजाद किए हैं , जैसे शिव हमसे सुन कर अपने नाम की ख़ुद ही ” पुंगी ” बजाते हैं.नीरज
LikeLike