नानी पालकीवाला को आप पढ़ें तो वे कई स्थानों पर कहते नजर आते हैं कि वयस्क मताधिकार को संविधान में स्वीकार कर भारत ने बहुत बड़ी गलती की। और नानी जो भी कहते हैं उसे यूं ही समझ कर नहीं उड़ाया जा सकता।
नानी पालकीवाला के एक लेख का संक्षेप प्रस्तुत करता हूं, जिसमें उन्होने इस समय के भारत की छ: विनाशक गलतियों की बात कही है; और वयस्क मताधिकार की अवधारणा की गलती उसमें से पहली है।
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छ: गलतियां –
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हमारी सबसे बड़ी गलती थी कि हमने चुनाव में वयस्क मताधिकार की प्रक्रिया अपनायी। अन्य किसी जनतन्त्र ने वयस्क मताधिकार को अपनाने की इतनी भारी कीमत नहीं चुकाई। औरों ने प्रारम्भ में मताधिकार सीमित संख्या में चुने हुये लोगों को ही दिया था। राजाजी और सरदार पटेल ने वयस्कमताधिकार को लागू करने के पहले जनता को शिक्षित करने पर जोर दिया था, जिससे वे मताधिकार की योग्यता हासिल कर सकें। महान जनतंत्र में किसी योग्यताप्राप्त नागरिक को मत देने का अधिकार होना चाहिये।
- हमने दूसरी विनाशक गलती यह की कि अपनी जनंसख्या को तीन गुना होने दिया। हमारी सारी आर्थिक उपलब्धियां बेलगाम जनसंख्या के आगे अर्थहीन हो जाती हैं।
- हमारी सबसे दुर्भग्यकारी गलती यह हुई कि हमने अपनी आबादी को शिक्षित करने के कोई ठोस प्रयास नहीं किये, जो उनमें समझ विकसित कर सके कि किस उम्मीदवार को मत देना है। मूल्यों पर आर्धारित शिक्षा में कोई “राजनैतिक सेक्स अपील” नहीं होती।
- हमने अपनी जनता को देश की संस्कृति की जानकारी देने की जो नीति अपनाई है, उसके तहद लोगों को सांस्कृतिक विरासत और सम्पदा के ज्ञान/सूचना से विरत रखा जाता है।
- हमारा शासन अभी तक लोगों में राष्ट्रीय तादात्म्य की भावना को दृढ़ता तथा स्थाई रूप से बिठाने में असफल रहा है। हमें इस प्रकार के सवाल सदा परेशान करते हैं कि भारत एक राष्ट्र है या अनेक समुदायों का समूह। क्या भारत राष्ट्रविहीन देश है? भारत का सबसे भयंकर अभिशाप है – जातिवाद। वह प्लेग से भी ज्यादा खतरनाक है – जिससे भारत पहले कभी ग्रस्त था। और इस गलती के भीषण दुष्परिणाम आगे हमें भुगतने हैं।
- हमने अपने मत से राजनीतिज्ञों को यह गलत अहसास दे दिया है कि वे बिना जिम्मेदारी की भावना के पूरी आजादी बरतने के हकदार हैं।
भारत में न अनुशासन की भावना है, न राष्ट्रीय समर्पण की।
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पोस्ट स्क्रिप्ट: यह रही वह पुस्तक (चित्र देखें, प्रकाशक राजपाल एण्ड संस; अनुवाद बहुत बढ़िया नहीं है।) और यह रहा रिडिफ पर का नानी पालकीवाला के एक इण्टरव्यू का लिंक। इण्टरव्यू कई वेब पेजों में है।
मैं पुन: कहता हूं कि आप नानी से सहमत हों न हों। पर आप उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते। नानी पालकीवाला अब इस दुनियाँ में नहीं हैं, पर उनका व्यक्तित्व/कृतित्व भविष्य में पीढियों को प्रेरणा देता रहेगा।
नानी जी से पूर्णतया सहमत हु..
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बोधिस्त्व की टिप्पणी से और क्रमांक 1 से असहमत।बोधि भाई का बात मानते तो वो पहले क्रमांक की गलती बन जाती।समीर भाई संस्मरण पर पूरी पोस्ट बनाइए
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देश का अगला विभाजन अगर हुआ तो वह धर्म पर नहीं जाति पर आधारित होगा।
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दूसरे बिंदू से हम असहमत।आज हमारी जनसंख्या हमारे लिये वरदान बन रही है।
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इन गलतियों को सुधारने के लिए साहित्यकारों का एक मंडल क्यों नहीं बना देते जो कि ब्लॉग भी लिखते हों….
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पहले नंबर को छोड कर सबसे सहमती
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पहले बिन्दु के अतिरिक्त सभी से सहमति है। एक बार गलतियों को चीन्ह लेने के बाद इन्हें दुरुस्त करने का उपाय भी तो तलाश करना चाहिए और उस पर काम भी।
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अब इन गलतियों को कैसे सुधारा जा सकता है?
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नानी पालकीवाल से व्यक्तिगत रुप से मिला, साथ में यात्रा की, कई बार बजट पर उन्हें सामने बैठ कर सुना, खूब पढ़ा. हमेशा ही एक नया अनुभव रहा. मैं उनका और दिनेश ठाकुर (कभी उनके जूनियर होते थे, अब इन्डेपेन्डेन्ट हो उसी राह पर है) का हमेशा से फैन रहा हूँ. आपने उनके आलेख का एक हिस्सा पढवाया जो मुझसे छूटा हुआ था तो आपका तो पहले से ही फैन था, अब मुरीद हो रहा हूँ. :)बहुत आभार.उनका फैन होने के बावजूद उनकी कही हर बात से सहमत नहीं होता था और थोड़ा उनसे मूँह लगा था तो बहसिया भी लेता था. शायद वो उनका स्नेह ही रहा होगा जो मुझे ऐसा करने की अनुमति थी और वो मेरी बात पर मुस्कराते भी थे. इन बिन्दुओं को अगर मैं उनसे सुनता तो कुछ पर तो बहसिया ही लेता उस जमाने में. अब थोड़ा बदल गया हूँ. असहमति जज्ब करना सीख गया हूँ, इसलिये बिन्दु क्र.२ एवं ६ पर कुछ नहीं कहूँगा. 🙂
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क्रमांक १ से तो मैं सहमत नहीं हूं लेकिन बाकी सभी के सभी १००% सही लगते हैं।यदि संभव हो तो नानी जी के लेख या पुस्तक की लिंक भी दे दीजीये।
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