आजकल एक कारण जिससे में दिन में एक दो बार चिट्ठाजगत का पन्ना खोल लेता हूं, वह है आंकड़ों के बार/पाई चार्ट और उनसे मिलने वाली इनसाइट। आप चार प्रकार के चार्ट पा सकते हैं वहां पर –
- आज के प्रकाशित लेखों के पाई चार्ट।
- हर घण्टे प्रकाशित होने वाली पोस्टें
- हर दिन के एक्टिव ब्लॉग और पोस्टों की संख्या
- महीने दर महीने एक्टिव ब्लॉगों और पोस्टों की संख्या
आप जरा चिट्ठाजगत के इन चार्टों का अवलोकन करें –
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मेरे कुछ ऑब्जर्वेशन हैं –
१. MS Excel हिन्दी स्वीकारता है। अत: आंकड़ों का नाम, और सीरीज आदि का नाम हिन्दी में दिया जा सकता है जैसे निम्न चार्ट में है –
२. हमारे जैसे आंकड़ा प्रिय व्यक्ति के लिये अगर सम्भव हो तो आंकड़ों की टेबल भी दे दी जाय!
३. हम अपना ब्लॉग सवेरे ५ बजे शिड्यूल करते हैं पब्लिश होने को, पर ऊपर के घण्टे वार आंकड़ों को देख लगता है कि ज्यादा सही समय ५:४५ बजे है, जब पोस्टिंग लो पर होती है। या फिर सवेरे २ बजे, जिससे विदेश में रहने वाले टटकी पोस्ट पढ़ सकें!
४. रविवार को, आप शटर डाउन रख सकते हैं। एक्टिव ब्लॉग का टोटा माने पाठकों का टोटा!
५. विषयों की विविधता अच्छी है, बढ़ी है। पर हिन्दी में कवितायें बहुत लिखी जा रही हैं। इनपर टिप्पणी करना जितना आसान है – समझना उतना मुश्किल! आप शिव कुमार मिश्र की पोस्ट "तुलसी अगर आज तुम होते" देखें।
६. अप्रेल के महीने में एक्टिव ब्लॉग और पोस्टों की कमी का कारण स्पष्ट नहीं। शायद लोग यात्रा/भ्रमण पर जल्दी निकलने लगे हैं। अगर ऐसा है तो रेलवे को अपनी समर स्पेशल गाड़ियां जल्दी प्लान करनी चाहियें। वैसे ब्लॉग बढ़े और पोस्टें बढ़ीं, यह देख अच्छा लगता है!
मैने ब्लॉगवाणी के मैथिली जी को रवि रतलामी की एक पोस्ट पर टिप्पणी में सुझाव दिया था कि वे अगर वे ब्लॉगवाणी के भेजे पाठकों का आंकड़ा – जो वे जेनरेट करते हैं, १५ या ३० दिन के पीरियड पर ई-मेल कर सकें तो बड़ा सुभीता हो। मालुम नहीं कि उनकी टीम इस पर विचार कर रही है या नहीं। रोज की खांची भर स्पैम ई-मेल आती हैं। कम से कम महीने में एक दो काम की ई-मेल तो बढ़ें!
इन सब बातों की और तो ध्यान ही नही जाता है। अच्छा है आपके द्वारा पता चल गया।
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बढिया पोस्ट है। सुझाव तो बहुत से आते है मन मे मेरे भी पर एग्रीगेटर वाले इतने मन से सब कुछ बुरा-भला सुनकर भी जुटे है सेवा मे तो लगता है कि जो कर रहे है अपने हिसाब से एकदम बढिया कर रहे है। नारद की एक बात अच्छी लगती थी कि उसमे लिखा होता था- ये नये चिठ्ठे है, इन पर टिप्पणी कर इनका उत्साहवर्धन करे । यह पवित्र सन्देश अब कही नही दिखता।
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पाण्डेय जी शुक्रिया ….ये तो वाजिब है की जब से ब्लोग्स का खेल शुरू हुआ है ..सब दबे हुए कवि बाहर आ गए है …उनमे से हम जैसे भी लोग है ……लेकिन एक बात ओर है जो मैंने महसूस की है कुछ लोग निरंतरता से हिन्दी ब्लोगिंग के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य लगातार बिना चर्चा ओर बिना कमेंट्स की उमीदो के किए जा रहे है रतलामी जी उनमे से एक है….ऐसे लोग वाकई साधुवाद के पात्र है…..आप जानकारी देते रहिये क्यूंकि इन पर हमारी निगाह कभी नही जाती……
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होजी आप तो ना हिंदी ब्लागरों के तकनीकी सलाहकार हो जाइये। बाकी जमाये रहिये। आपने बीच में कविता लिखना शुरु किया था, बंद क्यों कर दिया।
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उम्दा खोजपरख उम्दा जानकारी दी है आपने कृपया इसी प्रकार जानकारी देते रहे जिससे हम नव ब्लागरो को ज्ञान और दिशा प्राप्त हो सके . धन्यवाद
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शनिवार रविवार को ही तो दुकान चलाने का दिन होता है ज्ञानजी । बाकी आंकड़ों के खेल को हम कभी फुरसत वाले दिन के लिए टालते आए हैं । आंकड़ों से घबराते हों ऐसा नहीं । पर आंकड़े मुल्तवी वाले कॉलम की तरफ सरका देते हैं ऐसा जरूर है ।
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बस ऐसे ही ज्ञानवर्धन की ज्ञानजी से उम्मीद है. वैसे मैने एक साल से यह प्रक्रिया उपयोग की है कि सोमवार की सुबह सुबह और बुध या गुरु की सुबह सुबह पोस्ट करिये, भारतीय समयानुसार. अधिकतर लोग दफ्तर से एक्सेसे करते हैं और इसी वजह से शनि और इतवार की पोस्ट को हिट्स नहीं मिलती.इन सबके अलावा विवाद हर दिन वेलकम हैं, हिट मिलेगी ही मिलेगी. :)आप रोज लिखते हैं तो शनि और इतवार को छुट्टी रख सकते हैं. लोगों को इन्तजार का मौका भी मिलेगा. 🙂 इन्तजार का अपना मजा है.
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चिट्ठाजगत में कई फ़ीचर हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। आप उनके बारे में बताते रहें।
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बड़ा अच्छा है, यह काम आप कर लेते हैं और बता भी देते हैं। हमें आंकड़ेबाजी न पहले आती थी, न अब उस में उतने सफल हैं। कभी करनी पड़ती है तो पसीने छूटने लगते हैं। बेटी भले ही स्टेटिस्टीशियन है। हाँ आंकड़ों को पढ़ कर इस्तेमाल करना जरुर आता है, इतना जरूर है कि अनुभव से यह निष्कर्ष जरुर निकाल लिया था कि कब पोस्ट करना उचित होता है। लेकिन अपने काम के चक्कर में उसे कभी शिड्यूल नहीं कर पाए। (वह आता भी नहीं था, अभी कुछ दिन पहले ही आप की एक पोस्ट से सीखा) प्रबन्धन में कमजोर हैं जी। उस का खामियाजा जिन्दगी भर भुगता है, और भुगत रहे हैं।
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खांची भर स्पैम मेल ….. वाह क्या शब्दों का मेल है, ऐक बिल्कुल देहाती और दूजा ऐकदम आधुनिक….निके लागल…लगे रहिये।
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