हाफ लाइफ प्योर साइण्टिफिक टर्म है। पहले मैं शीर्षक देना चाहता था "साहित्य की हॉफ लाइफ"। फिर लगा कि ह्यूमैनिटीज के साथ साइंस का घालमेल नहीं होना चाहिये। सो बैक ट्रैक करते हुये यह शीर्षक दिया – ब्लॉग की हॉफ लाइफ।
ब्लॉग रेडियोएक्टिव मेटीरियल की तरह विखण्डनीय फिनॉमिनॉ है। और विखण्डन/टूटन बहुत रेण्डम तरीके से होता है। हमारे खुद के इस ब्लॉग का विखण्डन दो महीने में हो गया था। पर फिर न जाने कैसे यह पुन: संश्लेषित हो गया और आज चारसौ बीस पोस्टों के पार ( ४२७ टु बी प्रिसाइस) चला आया है। फिर भी कह नहीं सकते कि इसका विखण्डन कब होगा।
ब्लॉग की हॉफ लाइफ से आशय मान लीजिये इस समय १०० ब्लॉग हैं। समय के साथ यह बन्द होंगे। अब से वह समय का अन्तराल जब वे ५० रह जायेंगे (मान लें T दिन) ब्लॉग की हाफ लाइफ होगा। सांख्यिकी के अनुसार २xT समय में जीवित ब्लॉग २५ बचेंगे और ३xT समय में १२-१३ रह जायेंगे। |
असल में साहित्य से मेरा मतलब कालजयी लेखन से है। वह काफी स्टेबल मैटर है। और जरूरी नहीं कि उसे भारी भरकम हस्ताक्षर लिखे। भारी भरकम हस्ताक्षर इन्सिपिड समय-काल में कभी कभी बगड्डई करते, रेवड़ गिनते रह जाते हैं, और विकट परिस्थितियों को जीने वाली एन फ्रैंक की डायरी कालजयी हो जाती है। इसलिये साहित्य की कालजयता या हॉफ लाइफ पर चर्चा टाइम वेस्टर है। तुलसी बाबा; बावजूद इसके कि काशी के पण्डितों ने अपने शरीर के विशिष्ट अंग का पूरा जोर@ लगा लिया उन्हे शून्य करने में; और जिनके कोई न था राम के सिवाय; आज हिन्दी या पूरी मानवता के कभी न डूबने वाले सितारे हैं। पर काशी के उन पण्डितों का नामलेवा नहीं है कोई।
साहित्य के हॉफ लाइफ की क्या बात करें जी?! वहां तो ध्रुव तारे की तरह के नक्षत्र हैं। जिनकी तरफ केवल हसरत से देखा जा सकता है।
पर ब्लॉग के हॉफ लाइफ के बहुत से फैक्टर समझ में आते हैं। पहला तो यह कि अपने कालजयी होने का गुमान आपके ब्लॉग विखण्डन(splitting)/डीके(decay) का बहुत बड़ा केटेलिस्ट है। दूसरे आप एक अन्य फील्ड की सफलता को ब्लॉग सफलता में सपाट तरीके से ट्रांसलेट नहीं कर सकते। तीसरे आप अगर रिफॉर्म (जिसमें कुछ हद तक विखण्डन भी सम्मिलित है) नहीं करते, नवीनता नहीं लाते, उत्साह नहीं रखते, नाक पर सदा भिन्नाहट रखते हैं, तो आप ब्लॉग को अधिकाधिक रेडियोएक्टिव बनाते हैं।
और ब्लॉग में आप हंसी ठिठोली करें, पर वह हास्य आपके लिये नेचुरल होना चाहिये। वह नेचुरल तब होगा जब उसके प्रति प्रतिबद्धता होगी। और प्रतिबद्धता, बोले तो, ब्लॉगिंग के प्रति एक गम्भीरता। हम तो यही समझे हैं। मसलन – अ.ब. पुराणिक अगर अपने लेखन के प्रति सीरियस नहीं हैं तो वे अ.ब. पुराणिक नहीं हो सकते। तब उस लेखन से नोट खींचना भूल जायें वे।
अब अपनी ब्लॉग पोस्ट लेंथ पूरी हो गयी है। मुंह की कड़वाहट घोंट, चला जाये ट्रेन गाड़ियां गिनने के काम पर।
पर आप यह तो बतायें कि आपके अनुमान से ब्लॉग की हॉफ लाइफ क्या है?! शायद एग्रीगेटर वाले लोग बता सकें। उनके पास कई डॉरमेण्ट/निष्क्रिय ब्लॉगों का लेखा जोखा होगा। (गूगल रीडर "ट्रेण्ड्स" में इनएक्टिव फीड्स बताता है।)
(सबसे दुखी उड़न तश्तरी जी होंगे, जो ब्लॉग जगत संवर्धन की अलख जगा रहे हैं और हम हॉफ लाइफ की पोस्ट ठेल रहे हैं! )
@ – माफ करें, काशी का अस्सी की लहरदार भाषा ज्यों का त्यों नहीं उतार पाया!
वाह ज्ञान जी, क्या धाँसू समानता निकाली है! यह कुछ कुछ ठीक है, पर तनिक बदलाव के साथ। हाफ़ लाईफ़ तो ठीक है, पर वह ब्लॉग के चिट्ठों की तादाद से नहीँ वरन ब्लॉगिंग प्रकिया की गति की। और हाँ इस हाफ लाईफ में विखंडन होने के साथ-साथ कुछ नये रेडियोधर्मी तत्व भी बन जाते हैं – मेरा आशय नये ब्लॉगरों / ब्लॉगों के जुड़ जाने से, फिर यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। इस अनालॉजी के चलते, समूह ब्लॉग को आप नाभिकीय संलयन (Fission) के कारण नये ब्लॉगों के बनने की प्रक्रिया को मान सकते हों – कदाचित।
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