भोर का सपना


स्वप्न कभी कभी एक नये वैचारिक विमा (डायमेंशन) के दर्शन करा देते हैं हमें। और भोर के सपने महत्वपूर्ण इस लिये होते हैं कि उनका प्रभाव जागने पर भी बना रहता है। उनपर जाग्रत अवस्था में सोचना कभी कभी हमें एक नया मकसद प्रदान करता है। शायद इसी लिये कहते हैं कि भोर का सपना सच होता है।

भोर का सपना सच होता हो चाहे न होता हो, उसका प्रभाव देर तक चलता है। और सवेरे उठते ही आपाधापी न हो – ट्रेने ठीक चल रही हों, सवेरे दो तीन कप चाय धकेलने का इत्मीनान से समय हो; तो उस स्वप्न पर एक दो राउण्ड सोचना भी हो जाता है। मै‍ यह काम सप्ताहान्त पर कर पाता हूं। पता नहीं आप इस सुख की कितनी अनुभूति कर पाते हैं। अव्वल तो इन्सोम्निया (अनिद्रा) के मरीज को यह सुख कम ही मिलता है। पर नींद की गोली और दो-तीन दिन की नींद के बैकलॉग के होने पर कभी कभी नींद अच्छी आती है। रात में ट्रैन रनिंग में कोई व्यवधान न हो तो फोन भी नींद में खलल नहीं डालते। तब आता है भोर का सपना।

ऐसे ही एक सपने में मैने पाया कि मैं अपने हाथों को कंधे की सीध में डैने की तरह फैला कर ऊपर नीचे हिला रहा हूं। और वह एक्शन मुझे उछाल दे कर कर जमीन से ऊपर उठा रहा है। एक बार तो इतनी ऊंचाई नहीं ले पाया कि ग्लाइडिंग एक्शन के जरीये सामने के दूर तक फैले कूड़ा करकट और रुके पानी के पूल को पार कर दूर के मैदान में पंहुच सकूं। मैं यह अनुमान कर अपने को धीरे धीरे पुन: जमीन पर उतार लेता हूं।

Hang Gliding

क्या आपको मालुम है?

  • हेंग ग्लाइडर ७०० किलोमीटर से ज्यादा उड़ चुके हैं
  • वे २०,००० फिट से ज्यादा ऊंचाई पर जा चुके हैं
  • वे अमूमन घण्टों उड़ सकते हैं।
  • उनकी उड़ान १०० मील/घण्टा तक हो सकती है।

अचानक कुछ विचित्र सा होता है। दूसरा टेक ऑफ। दूसरा प्रॉपेल एक्शन। इस बार कहीं ज्यादा सरलता से कहीं ज्यादा – कई गुणा ऊंचाई ले पाता हूं। और फिर जो ग्लाइडिंग होती है – सिम्पली फेण्टास्टिक! कहीं दूर तक ग्लाइड करता हुआ बहुत दूर तक चला जाता हूं। हरे भरे फूलों से सुवासित मैदान में उतरता हूं – हैंग ग्लाइडिंग एक्शन की तरह। सपने की ग्लाइडिंग हैंग ग्लाइडिंग नहीं, हैण्ड ग्लाइडिंग है!

कैसे आता है बिना किसी पूर्व अनुभव के ऐसा स्वप्न? असल में मुझे हैंग ग्लाइडिंग नामक शब्द पहले मालुम ही न था। इस स्वप्न के बाद जब ग्लाइडिंग को सर्च किया तो यह ज्ञात हुआ। और फिर एक विचार चला कि अधेड़ हो गये, एक हैंग ग्लाइडर क्यों न बन पाये!

स्वप्न कभी कभी एक नये वैचारिक विमा (डायमेन्शन) के दर्शन करा देते हैं हमें। और भोर के सपने महत्वपूर्ण इस लिये होते हैं कि उनका प्रभाव जागने पर भी बना रहता है। उनपर जाग्रत अवस्था में सोचना कभी कभी हमें एक नया मकसद प्रदान करता है। शायद इसी लिये कहते हैं कि भोर का सपना सच होता है।

अब शारीरिक रूप से इतने स्वस्थ रहे नहीं कि ग्लाइडिंग प्रारम्भ कर सकें। पर सपने की भावना शायद यह है कि जद्दोजहद का जज्बा ऐसा बनेगा कि बहुत कुछ नया दिखेगा, अचीव होगा। यह भी हो तो भोर का स्वप्न साकार माना जायेगा।

आओ और प्रकटित होओ भोर के सपने।

कल अरविन्द मिश्र जी ने एक नया शब्द सिखाया – ईथोलॉजी (Ethology)। वे बन्दरों के नैसर्गिक व्यवहार के विषय में एक अच्छी पोस्ट लिख गये। मैं अनुरोध करूंगा कि आप यह पोस्ट – सुखी एक बन्दर परिवार, दुखिया सब संसार – अवश्य पढ़ें।
ईथोलॉजी से जो मतलब मैं समझा हूं; वह शायद जीव-जन्तुओं के व्यवहार का अध्ययन है। वह व्यवहार जो वे अपनी बुद्धि से सीखते नहीं वरन जो उनके गुण सूत्र में प्रोग्राम किया होता है। मैं शायद गलत होऊं। पर फीरोमोन्स जन्य व्यवहार मुझे ईथोलॉजिकल अध्ययन का विषय लगता है।
याद आया मैने फीरोमोन्स का प्रयोग कर एक बोगस पोस्ट लिखी थी – रोज दस से ज्यादा ब्लॉग पोस्ट पढ़ना हानिकारक है। इसमे जीव विज्ञान के तकनीकी शब्दों का वह झमेला बनाया था कि केवल आर सी मिश्र जी ही उसकी बोगसियत पकड़ पाये थे!
Batting Eyelashes 

 



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

24 thoughts on “भोर का सपना

  1. चित्रों पर आप के पूरे नाम के बदले जी डी पी देखकर लगता है गरास डोमेसटिक प्राडक्ट । जो कि सही भी है, चित्रों की विषय वस्तु देखकर यही लगता है, जारी रखें। – सफेद घर

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  2. मैं तो सपनों में उड़ती ही रहती हूँ। ये सपने बहुत लम्बे भी चलते हैं।घुघूती बासूती

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