गूगल ट्रांसलेशन का प्रयोग कर रिडिफ में पीटी आई की छपी एक खबर के अनुवाद के अंश प्रस्तुत कर रहा हूं:
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार के दिन विश्व शांति के लिए एक विशेष प्रार्थना की। ऐतिहासिक जामा मस्जिद, दिल्ली में। उन्होने कहा कि यह खेदजनक है कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है; आतंकवाद के नाम पर।
उन्होंने कहा कि, “यह खेदजनक है कि मुसलमानों को लक्षित किया जा रहा हैं आतंक वाद के नाम पर।”
दलाई लामा ने कहा कि एक व्यक्ति जो आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न है, नहीं हो सकता एक सच्चा मुसलमान।
“मुसलमान आतंकवादी नहीं हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक आतंकवादी है, तो वह नहीं हो सकता है एक मुस्लिम।” तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा।
मुझे प्रसन्नता है कि गूगल ट्रान्सलेशन इतना कण्डम नहीं है। ऊपर अनुवाद में मुझे आशा से कम सम्पादन करना पड़ा। मैं इस औजार पर भविष्य में ज्यादा विश्वास करूंगा और मैने इसे बुकमार्क कर लिया है। उस दिन की प्रतीक्षा है जब मैं प्रॉजेक्ट गुटनबर्ग की सारी किताबें पा सकूंगा हिन्दी में वाया गूगल ट्रान्सलेशन!
मैं आशावान हूं कि दलाई लामा की बात समस्त मुस्लिम विश्व माने। पर हथुआ स्टेशन को आती उस गाड़ी से सुनाई देती एक धार्मिक स्थल के माइक की आवाज मेरे कानों में अब भी गूंजती है। उस बात को दो साल हो गये। उस प्रवचन में इतनी तल्खी थी, इतना हेट्रेड, कि मैं अब तक रिकन्साइल नहीं कर सका। चुनाव आने को हैं। आशा है साम्प्रदायिक समझ बढ़ेगी, बिगड़ेगी नहीं।
हेट्रेड फैलाने वाले उत्तरोत्तर हाशिये पर धकेले जाने चाहियें – चाहे वे किसी सम्प्रदाय/धर्म में हों। क्या सोच है आपकी?
विश्व पर्यावरण दिवस
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पंकज अवधिया जी ने मुझसे कुछ लिखने को कहा था। वह मैं कर नहीं पाया। उन्होंने अपना एक उकेरा चित्र भेजा था अनलिखी पोस्ट के लिये। उसे यहाँ चढ़ाने के लिये री-साइज करने लगा तो .bmp फाइल .jpg फाइल बनाने पर बहुत धुंधली हो गयी – उनकी उकेरी लकीरें बहुत सूक्ष्म थीं। लिहाजा उन्हें मुझे MS Paint में जा कर मोटा करना पड़ा। अब जो इस दिवस पर हमारे ज्वाइण्ट वेंचर से चित्र बना है, वह देखें आप। अच्छा है तो अवधिया जी का। खराब हो गया तो मेरे टच-अप करने से!
मुख्य चित्र नहीं है, मुख्य बात है इस दिन को स्मरण करने की। आइये हम अपने पर्यावरण को कुछ बेहतर बनायें।
——–
और मुझे पर्यावरण पर पोस्ट न लिखने की निराशा से श्री समीर लाल ने उबार लिया। पंकज जी के चित्र को देख कर उन्होंने यह अत्यन्त सुन्दर कविता लिखी है:
(समीर लाल – अवधिया जी का भेजा चित्र देख मन में यूँ ही कुछ शब्द उठे, सो आपको लिख भेजता हूँ…यह मैं नहीं, वो चित्र कह रहा है।)
वृक्ष की व्यथा
खून उतर आता है
रग रग में मेरी
खून उतर आता है
आँखों में मेरी
जब देखता हूँ
तुम्हारा व्यवहार
जिसे मैं आजतक
मानता आया
अपना यार!
और तुम
मेरी ही जड़ें खोद रहे हो
मुझे काट कर
बनाते हो अपने लिए
ऊँची इमारतें
रोज करते हो
नई शरारतें
..
याद रखना
जब मैं खत्म हो जाऊँगा
उस दिन लिख जायेंगी
अनलिखी इबारतें
मोटे मोटे लाल हर्फों मे:
यहाँ कभी मानव रहा करते थे!!!
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समीर लाल ‘समीर”
पर्यावरण दिवस और दलाई लामा, आशा की किरणें?
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गर्व से कहना चाहता हूँ कि बढ़ी गाड़ी न खरीदकर, अपने लिए, इस बुढापे में, एक रेवा कार खरीदकर आज कल उसी को चला रहा हूँ।पर्यावरन की रक्षा के अलावा, पैसे की बचत भी हो रही है।महीने में केवल ३०० रुपये का खर्च कर रहा हूँ इसपर और २५०० से लेकर ३००० रुपये की पेट्रोल पर खर्च बचा रहा हूँ।चलाने में भी आसान। मेरा छोटा सा परिवार (आजकल पत्नि और मैं) के लिए यह बैटरी पर चलने वाली गाड़ी काफ़ी है।
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और आज पर्यावरण दिवस पर करीब एक घंटे तेज बारिश हुई. शाम को मौसम बड़ा ही सुहावना हो गया. हमने अमरुद और अनार के कुछ पेड़ लगा रखे हैं. उन पर गिलहरियों और पक्षियों की उल्लासपूर्ण दौड़ भाग, अठखेलियाँ बड़ी मनमोहक रहीं. देर तक देखते रहे.
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१. समीर जी ने अवधिया जी के बनाये चित्र पर अद्भुत शब्द जड़े हैं. बहुत शानदार लिखा है. जुगलबन्धी जबरदस्त रही. वैसे आपका भी योगदान इसमें था, इसलिए जुगल के बजाये ट्रिपल (हिन्दी में क्या कहें?) होना चाहिए. jpg फाइल का क्वालिटी लेवल क्या रखा था आपने? उसे एडजस्ट करके कुछ सुधार हो सकता था.२. गूगल ट्रांसलेशन अभी भी बहुत सुधार मांगता है. हमने आपके बताये रीडिफ़ के लेख को ट्रांसलेट करके देखा. नतीजा बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं लगा. आपने शायद अंग्रेजी में पहले पढ़ लिया रहा हो, इस वजह से हिन्दी अनुवाद की खामियां कम लगी हों. लेकिन अगर कोई सिर्फ़ हिन्दी ट्रांसलेशन ही पढे तो उस के लिए सर खपाऊ चीज हो सकती है.३. तीसरे विषय पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. भावुकता और कोमलता से हम काम लेना नहीं चाहते और कुछ सच सच कहना डिस्टेस्टफुल हो सकता है.
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