ब्लॉगिंग की सामाजिक ताकत का पूरे ब्लॉस्ट पर अन्दाज मुझे शनिवार को हुआ। और क्या गज़ब का अन्दाज था!
शनिवार की पोस्ट में मैने श्री जी विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु को धन्यवादात्मक फुटनोट लिखा था – उनकी टिप्पणियों से प्रभावित हो कर। उसमें यह लिखा था कि जब वे ४ साल इन्जीनियरिन्ग पढ़ चुके होंगे तब मैं बिट्स पिलानी में दाखिल हुआ था।
और तब उस पोस्ट पर टिप्पणी से ज्ञात हुआ कि श्री विश्वनाथ भी बिट्स पिलानी के प्रॉडक्ट हैं। एक साल बिट्स कैम्पस में हम लोगों ने साथ-साथ गुजारे होंगे। उस समय ३६ वर्ष पहले एक ही स्थान पर रहने वाले अनजान दो विद्यार्थी; हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़ कर अब अचानक एक दूसरे से ई-मेल, मोबाइल नम्बर, बातचीत और एसएमएस एक्स्चेंज करने लगे – केवल उक्त पोस्ट छपने के ८-१० घण्टे के अन्दर!
क्या जबरदस्त केमिस्ट्री है ब्लॉगिंग की! एक उत्तर भारतीय जीव दूसरे मुम्बई में जन्मे केरलाइट-तमिलियन व्यक्ति (मूलस्थान केरल का पालक्काड जिला) से मिलता है। दोनों के बीच एक शिक्षण संस्थान का सेतु निकलता है। साथ में होती है दक्षिण भारतीय सज्जन की हिन्दी प्रयोग करने की प्रचण्ड इच्छा शक्ति! फिल्में भी क्या स्टोरी बनायेंगी ऐसी!
शनिवार की शाम तक मैं श्री विश्वनाथ के चित्र और एक छोटी अतिथि पोस्ट हासिल कर चुका था। आप जरा उनकी हिन्दी में प्रेषित यह पोस्ट देखें –
समाज सेवा आज मैंने अचानक, बिना सोचे समझे, एक ऐसा काम किया जो चाहे बहुत ही छोटा काम हो, लेकिन किसी अनजान व्यक्ति के लिए अवश्य उपयोगी साबित हुआ होगा। उस व्यक्ति को इसके बारे में पता भी नहीं होगा। मैंने ऐसा क्या किया? बताता हूँ।
मेरी दस साल की आदत के अनुसार मैं आज भी सुबह सुबह टहलने चला था। वापस लौटते समय, अचानक मेरा दांया पाँव गली में पड़ी एक तेज धार वाले पुराने स्क्रू (screw) पर पड़ते पड़ते बच गया। स्क्रू लगभग १ इन्च लम्बा हुआ होगा और उसपर काफ़ी जंग लग चुकी थी। उसकी नोंक उपर की तरफ़ थी। ऐन वक्त पर मैं पैर हटाने में सफ़ल हुआ और गिरते गिरते बच गया। फ़िर आगे निकल गया कुछ दूर तक। थोड़ी दूर जाने के बाद खयाल आया और अपने आप से पूछने लगा “यह मैंने क्या किया? अपने आप को तो बचा लिया। कोई स्कूटर या कार का टायर यदि उस स्क्रू पर चले तो पंक्चर निश्चित है। क्या मेरा कर्तव्य नहीं कि उस स्क्रू को उठाकर किसी कूड़े के डिब्बे में डाल दूँ?” मुड़कर उस स्क्रू को ढूँढने निकला। कुछ समय लगा उसे ढूँढ निकालने में। मेरे पास मेरा मक़सद समझाने का समय नहीं था और न ही इच्छा। समाज सेवा आसान नहीं है। क्या विचार है, आपका? – गोपालकृष्ण विश्वनाथ |
मित्रों अठ्ठावन वर्ष की उम्र में श्री विश्वनाथ अपनी हिन्दी परिमर्जित करने और उसे अपनी अंग्रेजी के बराबर लाने का जज्बा रखते हैं। मैं देख रहा हूं कि अनेक लोग मिल रहे हैं जो सीखने और नया करने में उम्र का कोई बैरियर स्वीकार करने वाले नहीं हैं – और इसे सिद्ध भी कर दे रहे हैं। यह अहसास मुझे अत्यन्त प्रसन्नमन कर रहा है।
श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ ने कई ब्लॉगों पर बड़े दत्त-चित्त हो कर टिप्पणियां की हैं। जो टिप्पणियों की गुणवत्ता परखते हैं, वे उन्हे पूरी इज्जत देंगे। अपना अनुभव और हिन्दी के प्रति लगन से वे बहुत दमदार टिप्पणियां प्रस्तुत करते हैं। अगर वे मोटीवेट हो सके तो हिन्दी ब्लॉग जगत के बहुत महत्वपूर्ण अहिन्दी-भाषी सितारे साबित होंगे।
श्री विश्वनाथ की मेरी पोस्टों पर कुछ टिप्पणियां आप यहां, यहां, यहां और यहां देख सकते हैं। मेरी पर्यावरण दिवस वाली पोस्ट पर उन्होंने अपनी टिप्पणी में पर्यवरण ठीक रखने के बारे में यह लिखा है कि वे बिजली पर चलने वाली कार (रेवा) का प्रयोग करते हैं। जिससे प्रदूषण न हो। वे और उनकी पत्नी के लिये यह कार मुफीद है। चित्र में यह हैं श्री विश्वनाथ अपनी रेवा कार के साथ।
आपकी पोस्ट, विश्वनाथजी की पोस्ट व टिप्पणी, और बाक़ी टिप्पणियाँ एक साथ पढीं, अच्छा लगा. बात सच है – अच्छे काम कठिन हो सकते हैं इसीलिये जहाँ कोई भी बेरीढ़ कायर एक बन्दूक लेकर, चार क़त्ल करके जिहाद कर सकता है वहीं एक छोटा सा सत्कर्म करना भी कई बार इतना कठिन और वीरोचित होता है की हर किसी के बस की बात नहीं रहता.
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विश्वनाथ जी के बारे में जानना बहुत सुखद रहा । सचमुच , विश्वनाथजी इस समय तो टिप्पणीजगत के सुपरस्टार नज़र आ रहे हैं। उड़नतश्तरी तो उनसे पीछे हैं 🙂 विश्वनाथजी को शब्दों के सफर पर भी हम आमंत्रित करते हैं…कभी हमारे चिट्ठे पर भी नज़र पड़ी या नहीं उनकी…शुक्रिया ज्ञानदा…
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अभिभूत हूं। ब्लॉगिंग करते महीना दिन भी नहीं हुआ। इतने कम समय में इतना कुछ, इतने लोगों को जान-समझ पाउंगा, अंदाजा न था। सब कुछ आत्मा को संतृप्त करनेवाला है। खुशी से आंखें नम हो आयीं।
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श्री जी. विश्वनाथ की पोस्ट और उनकी विस्तृत टिप्पणी दोनो पढी । उनके लोहे का स्क्रू रूककर उठाने के वाकये ने दिल को छू लिया । विश्वनाथजी की टिप्पणी लेने के लिये तो अब प्रयास करने ही पडेंगे । इस सप्ताहांत पर कुछ नये विषयों पर लेखनी चलायेंगे । साथ ही दौडते हुये पाडकास्ट रेकार्ड करने के लिये लाजिस्टिक पर भी काम चल रहा है । बस एक दूसरे मित्र धावक को साथ में रखना होगा जो ध्यान रख सके कि रेकार्ड करते हुये दौडते हुये आस पास क्या हो रहा है ।विश्वनाथ जी से गुजारिश है कि वो तकनीकि विषयों पर लिखें और इन विषयों को प्रेरित करें । ज्ञानदत्तजी आप स्वयं भी इन विषयों पर लिख सकते हैं । इस क्षेत्र में अगर कुछ ब्लागर मिलकर काम करें तो ही सिनर्जी बन सकती है, अकेले करने से बात बनती नहीं दिख रही है ।
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आज की मुलाकात बस इतनी .. कहकर विश्वनाथजी चल दिये … अभी ये पूरा किस्सा पढा 🙂 बहोत खुशी हुई ..स्वागत है आपका हिन्दी ब्लोग जगत मेँ !- लावण्या
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विश्वनाथजी, आपकी टिप्पणी पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आपकी टिप्पणी की लम्बाई और कई बार फ़ुरसतिया शब्द इस्तेमाल करते देख मन खुश हो गया। हमें पक्का भरोसा है कि आप फ़ुरसतिया टाइप लेख लिखने वाले हैं हिंदी में। हिंदी ,वर्तनी, व्याकरण की चिंता तो नको करें। बस लिखने लगें। आप जिसके ब्लाग पर लिखेंगे वह धन्य होगा लेकिन मेरा सुझाव और अनुरोध है कि आप अपने ब्लाग पर ही लिखें। हिंदी ब्लागिंग के फ़ंडे आप यहां से समझ सकते हैं। आपका स्वागत है हिंदी ब्लागिंग में।
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और हां विश्वनाथ जी वो बंदर वाला किस्से का इंतजार रहेगा
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ज्ञान जी आज कल कुछ व्यक्तिगत कारणों से मै आप के ब्लोग पर या किसी भी ब्लोग पर नियमित रूप से टिप्पणी नही कर पा रही, लेकिन पढ़ती जरूर हूँ। जी विश्वनाथ जी की पोस्ट पढ़ कर खुद को रोक नहीं पायी। दो तीन कारण थे।1।) इसके पहले वाली पोस्ट में आप ने फ़ुटनोट के रूप में जब इनके बारे में लिखा तो जिज्ञासा और आश्चर्य दोनों थे क्युं कि मैं अभी मई के महीने में इसी जे पी नगर, बेंगलौर में चार दिन रह कर आई हूँ तो उस पते का नाम पढ़ते ही जिज्ञासा जागी। 2) आप की कहानी के साथ खुद को आइडेंटिफ़ाइ कर पाए याद है हम भी अपनी एक सहेली को ढ़ूंढ़ रहे है कॉलेज के जमाने की3) ज्यादातर हम टिप्पणी करने के बाद वापस जा कर नही देखते, शुरु में वापस जाते थे देखने कि कोई जवाब है क्या, कोई जवाब नही होता था तो हमने एक तरफ़ा कम्युनिकेशन से समझौता कर लिया था। आज विश्वनाथ जी की टिप्पणियां कैसी थी आप की पहली पोस्टस पर ये देखने के लिए आप के दिय लिक पर वापस गये तो देखा कि उन्होनें हमारी टिप्पंणी का जवाब लिखा है, मन मयुर नाच उठा। वैसे ज्ञान जी आप को बताना चाह्ती हूँ कि आप के ब्लोग पर टिप्पणी देना मेरे लिए काफ़ी टेड़ी खीर है। हिन्दी ठीक से लिखी ही नहीं जाती। मुझे नोट पेड पर लिख कॉपी पेस्ट करना पड़ता हैविश्वनाथ जी ब्लोग जगत में आप का स्वागत है , आप के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा। मेरे ब्लोग पर लिखने के लिए भी मेरा निमंत्रण स्वीकार करें। आप की पोस्ट मेरे ब्लोग पर आना मेरे लिए फ़क्र की बात होगी। रेवा के बारे में मैने सुना हुआ है, आज आप से विस्तृत जानकारी भी पा ली। सोच रही हूँ , बम्बई की सड़कें जो चांद की धरती लगती हैं वहां क्या ये गाड़ी चल पाएगी।कितने की है?प्लीज ई मेल में बताए तो और भी अच्छा।
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