जेफ्री आर्चर के उपन्यास आप में से बहुतों ने पढ़े होंगे। वे बीसवीं सदी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासकारों में से हैं। उनकी नयी पुस्तक A Prisoner of Birth सुना है बहुत बिक रही है। मैने पढ़ी नहीं।
मैं यह पोस्ट जेफ्री आर्चर, उनकी पुस्तकें, उनके परज्यूरी (perjury – शपथ पर गलतबयानी) के कारण दो साल की कैद आदि किसी बात से प्रभावित हो कर नहीं लिख रहा हूं। वे विगत में भारत आये थे और उनका बिजनेस वर्ल्ड ने एक इण्टरव्यू लिया/छापा था। उस इण्टरव्यू में अन्त में (जैसा सामान्यत: इण्टरव्यू लेने वाले पूछते हैं); उनसे पूछा गया कि अपना विगत देखते हुये वे क्या सन्देश देना चाहेंगे? और जेफ्री आर्चर ने उसके उत्तर में माइकल प्राउस्ट को उद्धृत किया – "हम हमेशा अन्तत: वह करते हैं जिसके लिये हम सेकेण्ड बेस्ट हैं"।
मित्रों माइकल प्राउस्ट के इस वाक्य में (वाया जेफ्री आर्चर) मुझे वह मिल गया जो मैं विगत माह हुये हिन्दी ब्लॉग जगत के साहित्यकार-ब्लॉगर विवाद के मूल को समझने के लिये खोजता रहा हूं।
साहित्यकार हैं – वे ब्लॉगिंग में अपना सेकेण्ड बेस्ट काम कर रहे हैं| अगर वे साहित्य की दुम न पकड़ते तो शायद बेस्ट ब्लॉगर होते। इसी तरह ब्लॉगिंग में बढ़िया करने वाले अलग अलग फील्ड में सेकेण्ड बेस्ट हैं – डाक्टर, इन्जीनियर, सरकारी नौकरशाह, वित्त विशेषज्ञ …. अपने मूल काम में वे सेकेण्ड-बेस्ट हैं। ब्लॉगिंग में चमक रहे हैं! अब ये लोग यह जरूर कह सकते हैं कि अपने फील्ड में उनका सेकेण्ड बेस्ट होना भी बेस्ट साहित्यकार से बैटर है! कुल मिला कर अच्छे साहित्यकार और अच्छे ब्लॉगर फिर भी कुनमुनायेंगे। पर आप जरा माइकल प्राउस्ट का कहा सोचें।
हम चले। जै रामजी की!
कल की पोस्ट पर श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ और श्री समीर लाल ने बड़ी मेगा-टिप्पणियां की। आप ने न देखी हों तो नजर मार लीजिये। श्री विश्वनाथ जी ने सभी ब्लॉगर मित्रों का अभिवादन भी बड़ी आत्मीयता से किया। वे एक कुशल टिप्पणीकार तो लगते ही हैं! |
काम दो टाइप के होते हैं।पहला: वह काम जो हम करना चाहते हैं।दूसरा: वह काम जो हमें करना पढ़ता है।धन्य हैं वे लोग जो पहला वाला काम को अपना पेशा बनाने में सफ़ल हुए हैं । कई नामी संगीतकार, फ़िल्मी सितारें, खिलाडी वगैरह इस सूची में शामिल होंगे।बाकी सब लोग यह best / second best मामले में जूझ रहे हैं।और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो किसी काम में best/second best नहीं बल्कि poor/poorest हैं।गोपालकृष्ण विश्वनाथ
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हम भी सोच रहे हैं… पर बेस्ट होना तय करना तो साधारणतया दूसरो का काम है. अपनी सोचे तो हर काम में अपना किया हुआ बेस्ट ही लगेगा. 🙂 जैसा आलोक जी ने कहा है. अपने आप के लिए संतुष्ट ज्यादा अच्छा शब्द लगा… बेस्ट से ज्यादा जरुरत है कि किस काम में संतुष्टि मिलती है. हम तो वही करने की कोशिश करते हैं… ‘कैसा है’ ये फैसला करना तो सामने वाले का काम है. वैसे विचार किया तो लगा कि जिसमें बेस्ट हों ऐसे काम खोजना पड़ेगा.
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हम भी अलोक जी से सहमत हूँ.पर उनका नंबर हमारे बाद आता है.:)
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दिक्कत ये है की साहित्यकार ब्लोगिंग को शायद इच्छा से नही अपनाता है ,ओर जब अपनाता है तब शायद उसे अपेक्षानुसार परिणाम नही मिलते है …ओर दूसरी परेशानी है कि वो पीछे रहना नही चाहता ….. ….दरअसल ब्लोगिंग एक ऐसी विधा है जहाँ आप जेफ्री आर्चर जैसो को नकार सकते है ओर दूर दराज के किसी गाँव से बैल गाड़ी के बारे मे लिखने वाले को हाथो हाथ ले सकते है….. ओर अब ऐसा नही है की संपादको को आप अपनी रचनाये हाथ से लिख कर भेजे ओर फ़िर रोज उनके उत्तर की प्रतीक्षा करे आप के मन मे रात २ बजे एक विचार आया उठे ओर लिख डाला …..दिक्कत ये है आपका बेस्ट आप जान नही पाते …तो पहले दूसरे की बात तो छोडिये ….ये सब बड़े लोगो का शगल है…..चूँकि अपन ठहरे असहित्यकार …
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सरजी हम तो हर मामले में आत्मनिर्भरै हैं।हम बेस्ट हूं, बताइये। कौन खंडन कर सकता है। किसी से पूछने की जरुरत नहीं है। खुद को बेस्ट डिक्लेयर कर दें। जो इससे सहमत ना हों, उसे बुद्धिजीवी मानने से इनकार कर दें। प्रशंसास्य च प्रेम च विवादायस्वबल ही श्रेष्ठायअर्थात कवि जालीदास कहते हैं कि प्रशंसा, प्रेम और विवादों अर्थात झगड़ों में स्व का बल यानी खुद का बल ही काम आता है, किसी और के सहारे इन मामलों में रहने वाला धोखा खाता है।
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जिन्हे जो समझना है समझने दीजिए.. और अपनी गाड़ी चलाते जाइए..
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सही लिखा है जी। मैं तो जरा भी नहीं कुनमुनाया। शायद ‘अच्छा’ होता तो कुनमुनाता। वैसे यह माथापच्ची जरूर कर रहा हूं कि (फर्स्ट)बेस्ट मेरे लिये क्या है- खेती, ब्लॉगिंग या पत्रकारिता।
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बढ़िया लिंक किया है आपने । समझता हूं कि इस हिंदी ब्लाग-जगत केवल आप ही एक शख्स हैं जिन से लगातार कुछ नया पढ़ने की प्रेरणा हम सब को अकसर मिलती रहती है।
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Being a Successful Blogger , should be a welcome event for any one, being second best @ the profession may b secondry ! :)Jeffery Archer is populer because he has his finger on the pulse of modern READER …the record SALE of his books proves it.Rgds,L
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माइकल प्राउस्ट चिंतन में लगा हूँ. 🙂 विचार पसंद आ रहे हैं, जितना ज्यादा चिंतन कर रहा हूँ.आभार आपका!
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