मां गंगा मेरे घर से ५००-७०० कदम पर हैं। आज गंगा किनारे गया शाम को। गंगा में पानी बहुत बढ़ा नहीं है, पर शुरुआत की बारिश से बहाव तेज हो गया है। कोटेश्वर महादेव (वह स्थान जहां राम जी ने वन जाते समय गंगा पार कर शिव पूजा की थी) के पास कटान दांयी ओर ले रही हैं गंगा मैया।
शाम के समय तट पर बीस-पच्चीस लोग गंगा आरती कर रहे थे – दीपक, घण्ट, फूल-माला आदि से लैस। बच्चे, महिलायें और पुरुष; सब थे। बहुत अच्छा लग रहा था श्रद्धा का वह प्रवाह। मैने कुछ चित्र लिये अपने मोबाइल से। इसी बीच गंगाजी के तेज बहाव को क्षिप्र गति से चीरता एक सर्प तट पर आ लगा, पर इतने लोग और आरती की ध्वनि सुन कर कहीं दुबक गया।
श्री गंगा जी
हरनि पाप त्रिबिध ताप, सुमिरत सुरसरित,
बिलसति महि कल्प-बेलि, मुद मनोरथ फरित।।१॥
सोहत ससि-धवल धार, सुधा-सलित-भरित,
बिमलतर तरंग लसत, रघुबर के चरित॥२॥
तो बिनु जगदम्ब गंग, कलियुग का करति?
घोर भव अपार सिन्धु, तुलसी किमि तरित॥३॥
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दूर कुछ कुत्ते तट पर चहरक-महरक करते घूम रहे थे। कुछ नौजवान जवान लड़कियों को घूरने के ध्येय से वहां बैठे थे और बीच बीच में गंगा में दूर तक कंकर फैंकने की स्पर्धा कर ले रहे थे।
कोटेशर महादेव के पास ढ़ेरों शिवजी की पिण्डियां हैं। उनमें से एक के सामने चबूतरे पर एक काले रंग का सांड़ विराजमान था – मानो आदिकाल से नन्दी वहीं बैठे हों।
मेरे मोबाइल मे २ मेगापिक्साल है …आपका शायद ३.५ वाला है…काफ़ी साफ है…आज आप कुछ अलग से मूड मे नजर आ रहे है…इसलिए इतना ज्ञान दे दिया…..
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कुम्भ मेले के समय मे बहुत याद आती है माई यहाँ प्रणाम करती हूँ जै गंगा माई…..
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jay ho ganga mayiya ki jay ho allahabad ki jay ho gyan ji ki
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gyandutt pandey ji,ganga kinare ek shham ke sath achchhi photo ki prastuti ke liye dhanyawad.prof. ashwini kesharwani
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भईयाआप गंगा के इतने नजदीक हैं और कभी ना बताये ना बुलाये एक हमें देखिये बाण गंगा जो हमारे घर से मात्र २०० मीटर पर “टाटा पावर” की मेहरबानी से बहती है को दिखाने के लिए आप को किती बार बता और बुला चुके हैं. आप का मोबाईल भी गज़ब का है और उसका उपयोग भी आप खूब करते हैं. हमारी खोपोली वाली पोस्ट के फोटो भी सारे मोबाईल से ही लिए हुए हैं. अब आप बुलाएँ ना बुलाएँ गंगा मईया की खातिर ही इलाहबाद आप के यहाँ आना ही पड़ेगा…क्या करें और कोई चारा नहीं है.नीरज
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गंगा तरंग रमणीय जटाकलापम–चित्र बड़े सुन्दर लगे—
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अलग अलग जगह पर अलग-अलग स्वरुप है गंगा मैया का… कानपुर में देखा था तो मन विचलित हो गया था प्रदुषण से… यमुना का भी कुछ यही हाल दिखा दिल्ली में… इलाहबाद में ये बातें दिखती नहीं. आप खुशकिस्मत हैं जो गंगा किनारे रह रहे हैं.
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बहुत खूब.. पटना में गंगा मेरे घर से 20 किलोमीटर दूर है.. अब और् क्या कहूं आगे.. समझ ही गये होंगे कि शायद ही कभी जा पाता हूं.. जब कालेज में था तो दोस्तों के साथ ना जाने कितनी शामें गुजारी है उन घाटों पर..
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गँगा को बचपन से हर रूप में देखता आया हूँ ,अभी भी गाहे बगाहे इलाहाबाद तक केवल गँगा किनारे बैठने के लिये कार दौड़ा लेता हूँ , 30 किलोमीटर पर डलमऊ में भी गँगा हैं, किंतु इतनी सुरम्य नहीं !अपने भूपेन हज़ारिका क्यों पूछ रहे हैं, ‘ विस्तार है अपार…तू निर्लज़्ज़ बहती है क्यूँ ?’
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जब भी इलाहाबाद जाते है गंगा मैया का दर्शन जरुर करते है।वाकई आपने बहुत ही सुंदर फोटो खींचे है।शुक्रिया इस बानगी गंगा दर्शन कराने के लिए।
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