वर्षा का मौसम आ गया। उमस और पसीने से त्वचा में इन्फ्लेमेशन (inflammation – सूजन, प्रदाह) होने लगा है। मेरी हाथ में घड़ी बांधने की जगह पर तेज ललाई, खुजली और सूजन हो गयी। घड़ी उतार कर मैने जेब में रख ली। दफ्तर के कमरे में समय देखने के लिये दीवाल घड़ी है। पर कोई कागज पर हस्ताक्षर करने हों तो नीचे दिनांक ड़ालने के लिये हाथ घड़ी पर नजर जाती है।
मैने विकल्प के रूप में देखा तो पाया कि मोबाइल फोन सदैव जेब में रहता है। वह जितने समय साथ रहता है; वह अब रिस्टवाच के साथ रखने से ज्यादा ही है। समय और दिनांक वह उतनी सरलता से बताता है, जितनी सरलता से हाथ घड़ी। तब हम रिस्टवाच का अतिरिक्त १०० ग्राम वजन ले कर क्यों चलते हैं?
मैने घड़ी लगाना छोड़ दिया। ऐसा किये एक सप्ताह होने को आया। काम चल ही जा रहा है। आदत बदल रही है।
जाने कितनी रिडण्डेण्ट चीजों का हम संग्रह करते हैं। कभी सोचते नहीं कि उनके बिना भी काम मजे में चल सकता है।
कह नहीं सकता कि यह फ्र्यूगॉलिटी (मितव्ययता) की सोच है या मात्र खुराफात! देखता हूं बिना हाथघड़ी के सतत चलता है काम या फिर कुछ दिनों का फैड है!
पर नये समय में हाथघड़ी क्या वास्तव में चाहिये? दस साल बाद टाइटन/सोनाटा घड़ियों का भविष्य है? आपके पास किसी हाथघड़ी की कम्पनी के शेयर हैं क्या? कैसा रहेगा उनका भाव?
एक एलर्जी:
मुझे विचित्र एलर्जी है। रतलाम में लाल रंग की छोटी चींटी अगर काट लेती थी और ध्यान न रहे तो लगभग दस मिनट में मेरी श्वसन नली चोक होने लगती थी। पहली बार जब मुझे आपातस्थिति में अस्पताल ले जाया गया तो मैं बमुश्किल सांस ले पा रहा था और डाक्टर साहब को समझ नहीं आ रहा था कि क्या है? इशारे से मैने कागज कलम मांगा और लिखा – ant bite. तब तुरन्त इलाज हुआ। उसके बाद तो मैं रेलवे सर्किल में इस एलर्जी के लिये जाना जाने लगा। यह एलर्जी कभी काली चींटी या अन्य कीड़े के काटने पर नहीं हुई। लाल चींटी गुसैल और कटखनी भी ज्यादा थी। मुझे बच कर रहना होता था। घर में फ्रिज में उसका एण्टीडोट इन्जेक्शन भी रखा गया था – आपात दशा में प्रयोग के लिये। पर जब भी वह काटती, मैं बिना समय बर्बाद किये अस्पताल ही चला जाता था।
अब न रतलामी चीटियां हैं, न वह एलर्जी। पर बारिश में इस तरह त्वचा का इन्फ्लेमेशन तो हो ही जाता है। लगता है कि कपड़े सूती पहने जायें और शरीर पर कसे न हों।
भले ही घडी का बाजार बढ रहा हो, पर अपुन ने तो मोबाइल हाथ में आने के बाद उसे बांधना ही छोड दिया है। मुझे भी पसीने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी।
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बहुत बढ़िया पोस्ट । हमने भी कभी घडी नहीं बांधी। जब जब बांधी तब तब छींके आने लगती और सर्दी हो जाती थी। ये हकीकत है…..
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आप किसी होम्योपैथ से नही मिले क्या? वे चाहे तो आपको चन्द दवाओ के प्रयोग से सदा के लिये राहत दे देंगे। हो सकता है इस एलर्जी के बारे मे सुनते ही वे ऐसी दवा चुन ले जो आपके शेष मर्जो को भी ठीक कर दे। हमारे यहाँ जंगलो मे चीटीयो के इस बुरे गुण के उपयोग से कई प्रकार के रोगो की पहचान की जाती है। एक विशेष प्रकार की चीटी होती है जिसके बारे मे कहा जाता है कि वह मधुमेह के रोगियो को नही काटती। घडी को घडी-घडी देखने के दिन अब लद रहे है ये मै भी मानता हूँ।
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लगता हैं इस मामले में मैं अल्पसंख्यकों में से हूँ।मैं तो अपनी घड़ी के बिना कभी रहता ही नहीं। केवल नहाते समय और सोते समय इसे कलाई से उतारता हूँ। और कभी कभी तो, इसे पहनकर ही सोता हूँ । पत्नि याद दिलाती है कभी, उसे उतारने के लिए।आलोकजी कहते हैं————————-“घड़ी अब दूसरों को दिखाने के लिए पहनी जाती है”————————-आजकल कुछ लोग महँगे मोबाइल फ़ोन भी दिखाने के लिए खरीदते हैंउनका सही और पूर्ण रूप से प्रयोग करते ही नहीं।वैसे मेरी घड़ी एक साधारण घड़ी है।==========संजयजी कहते हैं:————————“एक साल से घड़ी पहनना छोड़ रखा है. कौन बोझ लिये घूमे. :)———————-बोझ? कैसा बोझ? कौनसा बोझ? मेरे लिए कभी बोझ नहीं बना।जिस सहूलियत से कलाए पर पहन सकते हैं, क्या मोबाईल फ़ोन को रख सकते हैं? हम मर्दों के पास कम से कम जेबें होती हैं। महिलाओं को फ़ोन को अपने हाथों/हथिलियों में रखकर घूमती हुई देखा हूँ। कैसे झेल लेती हैं यह असुविधा!मैं उन लोगों में से हूँ जो दिन में कुछ समय के लिए मोबाइल फ़ोन से दूर रहता हूँ। मन की शांति के लिए। अवाँछित फ़ोन कॉल से परेशान हो जाता हूँ। मैं अपनी घड़ी से कभी परेशान नहीं हुआ। मेरी वफ़ादार घड़ी चुपचाप अपना काम और ड्यूटी करती जाती है चाहे मैं उसकी तरफ़ ध्यान दूँ या नहीं। कभी नहीं कहती मुझसे “मुझे चार्ज करो” . बस साल में एक बार बैट्टरी बदलना पढ़ता है। मेरे सोच में या काम में कभी दखल नहीं देती। कहाँ मिलेंगे ऐसा मोबाइल फ़ोन? फ़ोन को “स्विच ऑफ़” करने से समय भी “स्विच ऑफ़” हो जाता है।जब समय देखना चाहता हूँ तो कलाई की तर्फ़ केवल एक झाँकी काफ़ी है। मोबाईल फ़ोन तो मेरे बेल्ट से बँधा हुआ एक “पौच” में रखा हुआ है और उस “पौच” को खोलकर, यंत्र को बाहर निकालने में जो समय और परिश्रम की आवश्यकता है, वह मुझे स्वीकार नहीं। और समय नोट करने के बाद फ़ोन को वापस “पौच” में रखने का काम, सो अलग!घड़ी को एकदम ढीला पहनता हूँ। दो या तीन “लिन्क” अधिक जोड़ने से, कलाई में त्वचा को राह्त मिलती है। इतना ढीला पहनता हूँ कि जब हाथ ऊपर उठाता हूँ तो घड़ी नीचे की तरफ़ सरकती है। इससे घड़ी की एक ही जगह पर बँधे रहने से, जो त्वचा पर असर पढ़ता है उससे आप बच सकेंगे।न भई न। आप मोबाइल फ़ोन प्रेमियों को यह यंत्र मुबारक हो।मैं अपनी वफ़ादार घड़ी को कभी नहीं त्यागूँगा।=======फ़यर फ़ॉक्स की अभी जरूरत नहीं पढ़ी। आगे सोचूँगा इसके बारे में।जैसे समीर लाल जी ने कहा, हमारे लिए भी, IE काफ़ी है। उसकी भी पूरी क्षमता का अभी लाभ उठाया ही नहीं। ============अपने को भाग्यशाली मानता हूँ!ईश्वर की असीम कृपा से, मुझे अब तक, इतने सालों में किसी चीज़ की “अलर्जी” नहीं हुई है। बस कुछ लोगों को मुझसे “अलर्जी” हो सकती है!उनसे दूर रहने की कोशिश करता हूँ।==============
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मैं पिछले 5-6 सालों से घड़ी नहीं पहन रहा हूं.. पापाजी ने ना जाने कितनी बार घड़ी उपहार में दी मगर मैं 3-4 महीने बाद उसे वापस घर पर रख आता था.. बस एक्जामिनेसन हॉल में ही उसकी जरूरत परती थी क्योंकि वहां मोबाईल नहीं ले जा सकते थे..मैं अभी भी इंटरनेट एक्सप्लोरर पर ही निर्भर हूं.. क्योंकि कुछ ऐसे एप्लीकेशन पर काम करता हूं जो नये वाले फ़ायरफाक्स पर भी नहीं दौड़ता(RUN) है..
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बचपन में जब नयी साईकल आती तो टायरों में हवा निकल जाती थी हांलाकि दो तीन दिन बाद ठीक हो जाता था। फारफॉक्स के साथ भी कुछ ऐसा ही हो या फिर विंडोज़ में क्रैश किया हो, मैं तो लिनेक्स पर फायरफॉक्स-३ प्रयोग कर रहा हूं एक बार भी नहीं क्रैश किया।
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एक वक़्त था जब हमे हाथ घड़ियो को शौक था.. बहुत सी घड़िया आज भी सेफ की शोभा बढ़ा रही है.. अब जब से मोबाइल आया है.. बस वही लिए घूमते है..
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हाथ घड़ी की आदत बरकरार रहेगी बस घड़ी के मोडल बदलते रहेगे ,मुझे याद है एक सज्जन एक बार मुझे गाँधी स्टाइल की घड़ी गिफ्ट कर गए थे ..घड़ी मोबाइल ,पेन रुमाल ,पर्स इनकी आदत छूटना मुश्किल है ..आपने भी allergy की वजह से छोडा है ,वैसे संभावित होता है की आप कुछ allergy के संभावित शिकार है …ऐसे लोगो को atopic कहा जाता है ,धूल, चाइनीज फ़ूड ,फिश ,चीज़ ,peanuts ओर पक्षियों के पंख से भी बचकर रहे ओर अपने बस एक ट्यूब flutibact रखे ,कभी घड़ी पहनने का मूड हो तो अपना पट्टा change करा ले ,कई लोगो को nickile से allergy होती है …ओर साथ में घड़ी के बेस पर कुछ micropore tape चिपका दे ….cottan की पहने ,अपने घर के पर्दों में धूल न जमने दे ,ओर अपने ऑफिस के ऐ.सी की नियमित सफाई करवाते रहे …एक बात ओर ऐसी allergy अनुवांशिक भी हो सकती है आपसे अगली पीड़ी में …….क्या घर में किसी को साँस की कोई बीमारी है ?या कोई ऐसा व्यक्ति जिसको बार बार जुकाम हो जाता हो या कई बार छींके मरता हो ?मौसम के बदलने से सबसे ज्यादा असर पड़ता हो ?इश्वर की कृपा से firefox -३ अभी तक तो धाँसू कम कर रहा है…..आगे देखिये ….
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अब घड़ी समय देखने के लिए न हो कर एक गहने जैसी हो गई है. समय देखने के अनेक साधन उपलब्ध है. दिन भर कंप्युटर के आगे बैठना होता है, वहाँ समय दिखता ही है, बाकि समय के लिए जेब में मोबाइल भी है ही. तो एक साल से घड़ी पहनना छोड़ रखा है. कौन बोझ लिये घूमे. 🙂
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घड़ियांअब टाइम के लिए नहीं, स्टाइल स्टेटेमेंट के लिए पहनी जाती हैं। कल टाइटन ने घड़ी लांच की है एक लाख दस हजार रुपये की। सिटीजन की रेंज 18000 रुपये से शुरु होती है, झक्कास बिक रही है। घड़ी अब दूसरों को दिखाने के लिए पहनी जाती है। आप की घड़ी देखकर लगता है कि शादी की मिली घड़ीअभी तक यूज कर रहे हैं।टाइटन के भविष्य का यह हाल है कि पब्लिक के पास भौत पैसा है, सो वह टाइटन की ज्वैलरी खरीदने में जुट गयी हैं। टाइटन की घड़ियों की सेल की ग्रोथ रेट बीस परसेंट से ज्यादा नहीं है, ज्वैलरी की ग्रोथ रेट सत्तावन परसेंट है जी। भारत वर्ष कितना गरीब है यह टाइटन ज्वैलरी की सेल के आंकड़े बताते हैं। बहुत जल्दी टाईटन बासमती आने वाला है।
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