मेजा-माण्डा के पास जमीन धसकने के कई मामले सामने आये हैं। मेजा-माण्डा इलाहाबाद के पूर्व में इलाहाबाद-मुगलसराय-हावड़ा रेल मार्ग के समान्तर पड़ते तहसील हैं। जमीन धसकने में अगर रेल लाइन के पास कुछ होता है तो रेल परिचालन में सावधानियां लेनी पड़ेंगी। फिलहाल इंजीनियर्स कहते हैं कि ट्रैक के पास इस प्रकार की हलचल नहीं लगती।
कुछ दिनों पहले; जब वर्षा प्रारम्भ नहीं हुई थी; श्री दीपक दवे, इलाहाबाद के मण्डल रेल प्रबंधक अपनी परेशानी बता रहे थे – पानी की किल्लत को ले कर। बोरवेल बहुत गहरे हो गये हैं – १००० फीट से भी ज्यादा गहरे। और फिर भी पानी कम आ रहा था। इलाहाबाद स्टेशन और कालोनी की पानी की जरूरतें पूरी करने में समस्या हो रही थी। यह हाल गंगा-यमुना के किनारे बसे शहर का है तो बाकी जगहों की क्या बात की जाये।
जमीन धसकना अण्डरग्राउण्ड जल के अत्यधिक दोहन का परिणाम है। जनसंख्या और खेती के दबाव में यह आगे और बढ़ेगा गांगेय क्षेत्र में। आदिकाल से यहां जल की प्रचुरता रही है। उसके कारण इस क्षेत्र में अभी लोगों पानी का किफायती प्रयोग नहीं सीखे हैं।
अखबार और स्थानों की बात भी कर रहे हैं। बदायूं में भी पांच फिट गहरी और १८ फिट लम्बी धरती धसकी है। दिल्ली-अम्बाला रेल मार्ग पर धरती धसकने को लेकर विशेष ट्रैक-पेट्रोलिंग की खबर भी दे रहा है टाइम्स ऑफ इण्डिया।
परेशानी में डालने वाला पर्यावरणीय-ट्रेण्ड है यह। गंगा के मैदान को मैं बहुत स्थिर जगह मानता था, पर मानव-निर्मित स्थितियां यहां भी अवांछनीय परिवर्तन कर रही हैं।
समीर जी की टिप्पणी पढकर लगा कि हम सब भी किसी न किसी तरीके से ऐसे प्रयास में अपना योगदान दे सकते हैं. ब्रश करते समय अगर नल बन्द रखें तो एक मिनट में 6 लिटर पानी बरबाद होने से बचा सकते हैं, उसी तरह बूँद बूँद टपकते नल को अच्छी तरह बन्द किया जाए तो हफ्ते में 140 लिटर पानी बचा सकते हैं. आजकल बाज़ार में पानी सेव करने की कई डिवाइस आ गई हैं जिन्हे हमने अपने घर के नलों में लगाया हुआ है.
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Pure water is needed only for drinking.Almost all the water that we need is for non potable purposes.For drinking, we could use water purifiers.
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Namaste,Indian cities are full of pollution. Acid rains are common. Then how rainwater harvesting will give pure water? Rainwater harvesting must be done in places free from pollutants and pollution.
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बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने….वाकई भूमिगत जल का दोहन देखकर बड़ा दुख होता हैसमीरजी की पहल तो वाकई अनुकरणीय है. विश्वनाथजी ने भी अच्छा विकल्प बताया है
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सामाजिक स्तर पर भी कयी प्रयास किये जा सकते हैँ जैसा जबलपुर के बारे मेँ समीर भाई ने बतलाया – सूर्य की उर्जा , नदीयोँ का और बरसात का जल, सभी का सँचय बढती आबादी और प्रदूषित आबोहवा से लडने के लिये उपयोग मेँ लाने का समय, आज नहीँ, कल आ पहुँचा था -The Time arrived, yesterday & not today – काश, इन मुद्दोँ पे सावधानी बरती जाये और काम किया जाये तभी आनेवाले समय मेँ लाभ होगा — लावण्या
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