एसईजेड कहां से आया बन्धुओं?


बहुत ठेलाई चल रही है तहलका छाप पत्र-पत्रिकाओं की। एक ठो नन्दी भी बड़े हैण्डी बन गये हैं। ऐसा लग रहा है कि “दास-कैपीटल” के बाद सबसे अथॉरिटेटिव कुछ है तो तहलका है!
हमें लग रहा है कि हम भी कहीं से कुछ पढ़ कर ठेल दें, ताकि सनद रहे कि दखिनहे ही सही, पढ़वैया तो हैं!
ई देखें – चाइना डेली अपने हियां के एसईजेड के कसीदे में बन्दे मातरम कर रहा है। बकिया, एसईजेड के कॉन्सेप्ट को बताता है कि भारत ने सन ८० के पहले इसकी अधकचरी कोशिश की थी। वह तो चीन ही था जिसने इस विचार को चमका कर लागू किया।
यह चाइना डेली के भलमनई (भद्रपुरुष) – यू न्यू जी कहते हैं चीन में भी श्रमिक सम्बन्धों और जमीन के प्रयोग की मुश्किलें हैं जरूर, पर चीन की सरकार बहुत दरियादिल है कम्पन्सेशन और पुनर्वसन के प्रोग्राम में। काश भारत को ऐसी दरियादिल सरकार मिल पाती! अगले चुनाव में भारत की जनता शायद ध्यान रखे!
हम तो यू न्यू जी के विचारों से गदगद हैं। पता नहीं भारत के गदगद पॉलितब्यूरो के क्या विचार हैं?


वैसे, बाई रिमोट चांस, अगर साम्यवादी दल का अगला प्रधानमन्त्री बनता है तो हमारी पसंद – बुद्धदेब भट्टाचारजी!

“हलचल” का मानो या न मानो:

दो रेक कोयले के फलाने थर्मल पावर हाउस में खाली नहीं हो रहे। ९-१० घण्टे में खाली होने चाहियें, पर ४८ घण्टे हो गये। कारण – टिपलर (वह संयंत्र जिसपर वैगन पलटा कर कोयला नीचे पिट में गिराया जाता है, फिर वहां से कोयला कन्वेयर बेल्ट से पावर हाउस में जाता है) काम नहीं कर रहे। टिपलर इसलिये काम नहीं कर रहे, क्यूंकि बिजली नहीं आ रही!!! क्या बतायें, बिजली बनाने वाले के पास अपना कोयला उतारने के लिये बिजली नहीं है! Thumbs-down


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

20 thoughts on “एसईजेड कहां से आया बन्धुओं?

  1. क्या इसीलिए आज का समय ‘विचारधाराओं के अंत’ का — उनके खात्मे का समय कहा जा रहा है .

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  2. अरे प्राप्त तो हो गई है पर इससे पहले जब जब आते रहे हैं , तब इतना स्लो मामला होता था कि पूछिये नहीं। पोस्ट समझ में आ गई 🙂

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  3. चीन अमरीका से धन अर्जित कर रहा है -\ भारत की उपेक्षा हो जाती है – हमारी राजनीति का जहाजबिना सही कप्तानी के, मँझधार मेँ है ! -लावण्या

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  4. SEZ माने – सब ईहां झंडू कोई लाल तो कोई त्रणमूलिया तो कोई भाजपाई झंडा लिए 😀

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  5. भारत में वामपंथी हैं ही कहां? वामपंथ की पक्षधरता जतानेवाले अनेक लोग पूंजीपतियों की चाकरी बजाते मिलेंगे। कोई आदमी किसी सिद्घांत पर अटल रहे तो यह अच्‍छी बात है। यह उसकी चारित्रिक दृढ़ता का परिचायक है। किन्‍तु हमारे यहां तो वामपंथ दिखावा है, अवसर व सुविधा के अनुसार सिद्धांतों का पालन होता है।

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  6. लेफ्ट-राइट का चक्कर तो चलता ही रहेगा… आप ‘थर्ड वे’ के बारे में पढिये. एक प्रोफेसर साहब की दया से ये किताब पढ़ी थी मैंने कुछ समय पहले… ये लिंक देखिये कांसेप्ट तो मुझे अच्छा लगा था. http://www.amazon.co.uk/Third-Way-Renewal-Democracy-European/dp/0745622674http://en.wikipedia.org/wiki/Third_Way_(centrism)http://en.wikipedia.org/wiki/Anthony_Giddens(गिडेंस को टोनी ब्लेयर का राजनितिक गुरु कहा जाता है )और भारत-चीन के मोडल पर तो चर्चा होते ही रहती है… पर सच्चाई इस बात में भी है की चीन की सरकार अपनी मनमानी करा भी लेती है, कानून भी अलग है… और चीनी मीडिया भी. हाल के ओलंपिक से जुड़ी खबरें भी देखें तो भी बहुत कुछ साफ़ होता है इस बारे में.

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