बच्चों का होमवर्क मम्मियां करती हैं – प्राइमरी कक्षाओं तक। पर यह तो गजब है – आस्ट्रेलिया के कम्प्यूटर साइंस के विद्यार्थी अपना होमवर्क भारत के प्रोग्रामर्स को आउटसोर्स कर दे रहे हैं! और १०० आस्ट्रेलियायी डालर्स में उनका काम पक्का कर उन्हे मिल जा रहा है। बाकायदा रेण्ट-अ-कोडर पर निविदा निकलती है। कोडर अपनी बोली भरते हैं और भारतीय अपनी बोली कम होने के आधार पर बाजी मारते हैं।
भैया हमारे जैसे “जीरो बटा सन्नाटा” कितने समय में प्रोग्रामिंग सीख कर यह निविदा भरने लायक बन सकते हैं? अपने बच्चे का होमवर्क तो करा/कराया नहीं कभी, इन आस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालय जाने वाले बच्चों का भला करने लायक बन जायें!
यह खबर पीटीआई की है – मेलबर्न/सिडनी से। पर जब मैने नेट पर सर्च किया तो पाया कि अमेरिका में यह पवित्र कार्य दो साल पहले भी हो रहा था!
अब कौन तेज है – अमरीकन, आस्ट्रेलियायी या भारतीय!
आउटसोर्सिंग तो कई क्षेत्रों में हो रही है… होमवर्क से लेकर कापियां जांचने तक. आपने अगर ‘वर्ल्ड इस फ्लैट’ पुस्तक न पढ़ी हो तो बताइए… इसकी सॉफ्ट कॉपी भी मेरे पास है. वैसे इस पुस्तक की आलोचना करने वाले बड़े अर्थसास्त्री भी हैं… पर कुछ भी हो यह पुस्तक आउटसोर्सिंग पर एक रोचक पुस्तक तो है ही. थर्ड वे पर एक पेपर भेजा था मैंने, आशा है आप को मिल गया होगा.
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किसी से पैसे निकलवाना हमेशा टेढी खीर रही हैThat is very true & कमाल है – ऐसी परीक्षा का क्या उपयोग ?और विधार्थी की दक्षता का सही मुल्याँकन कैसे हुआ ? – लावण्या
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भारतीयों के सस्ते होने की गूँज कहाँ नहीं है ?आउ्टसोर्सिंग तो ग़नीमत है, जी !पता नहीं, सुश्री बहन मायावती जी पी०एम०टी० या बोर्ड परीक्षाओं में चल रहे आउटसोर्सिंग से क्यों हलाकान है ?
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