ऊपर शीर्षक के शब्द क्या हैं?
मेरी पत्नीजी मच्छरों की संख्या बढ़ने पर हिट का प्रयोग करती हैं। महीने में एक आध बार। यह केमिकल स्प्रे सैंकड़ों की संख्या में मच्छर मार डालता है। लीथल केमिकल के कारण यह बहुत प्रिय उपाय नहीं है, पर मच्छरों और तिलचट्टों के लिये हिट का प्रयोग होता है। हम बड़ी आसानी से इन कीड़ों का सफाया करते हैं।
मैरे दफ्तर में एयर कण्डीशनर कुछ दिन काम नहीं कर रहा था। नये बने दफ्तर में डीजल जेनरेटर का फर्श धसक गया था। सो मेन स्प्लाई जाने पर एयर कण्डीशनर नहीं चलता था। लिहाजा खिड़की-दरवाजे खोलने के कारण बाहर से मक्खियां आ जाती थीं। मैने अपनी पोजीशन के कागज का प्रयोग बतौर फ्लाई स्वेटर किया। एक दिन में दस-पंद्रह मक्खियां मारी होंगी। और हर मक्खी के मारने पर अपराध बोध नहीं होता था – एक सेंस ऑफ अचीवमेण्ट होता था कि एक न्यूसेंस खत्म कर डाला।
कसाई की दुकान पर मैने बकरे का शरीर टंगा लगा देखा है। आदतन उस दिशा से मुंह मोड़ लेता हूं। कसाई को कट्ट-कट्ट मेशेटे (machete – कसाई का चाकू) चला कर मांस काटने की आवाज सुनता हूं। पता नहीं इस प्रकार के मांस प्रदर्शित करने के खिलाफ कोई कानून नहीं है या है। पर टंगे बकरे की दुकानें आम हैं इलाहाबाद में।
मैं सोचता हूं कि यह कसाई जिस निस्पृहता से बकरे का वध करता है या मांस काटता है; उसी निस्पृहता से मानव वध भी कर सकता है क्या? मुझे उत्तर नहीं मिलता। पर सोचता हूं कि मेरी पत्नी के मच्छर और मेरे निस्पृहता से मक्खी मरने में भी वही भाव है। हम तो उसके ऊपर चूहा या और बड़े जीव मारने की नहीं सोच पाते। वैसा ही कसाई के साथ होगा।
एक कदम ऊपर – मुन्ना बजरंगी या किसी अन्य माफिया के शार्प शूटर की बात करें। वह निस्पृह भाव से अपनी रोजी या दबदबे के लिये किसी की हत्या कर सकता है। किसी की भी सुपारी ले सकता है। क्या उसके मन में भी मच्छर-मक्खी मारने वाला भाव रहता होगा? यदि हां; तो अपराध बोध न होने पर उसे रोका कैसे जा सकता है। और हत्या का अपराध किस स्तर से प्रारम्भ होता है। क्या बकरे/हिरण/चिंकारा का वध या शिकार नैतिकता में जायज है और शेर का नहीं? शार्प शूटर अगर देशद्रोही की हत्या करता है तो वह नैतिक है?
जैन मुनि अहिंसा को मुंह पर सफेद पट्टी बांध एक एक्स्ट्रीम पर ले जाते हैं। मुन्ना बजरंगी या अल केपोने जैसे शार्प शूटर उसे दूसरे एक्स्ट्रीम पर। सामान्य स्तर क्या है?
मेरे पास प्रश्न हैं उत्तर नहीं हैं।
मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि लोग टिप्पणी करते समय मेरी पोस्टों से वैचारिक सहमति-असहमति पूरे कन्विक्शन (conviction) के साथ दिखाते हैं। मैं विशेषत कल मिली अमित, घोस्ट-बस्टर और विश्वनाथ जी की टिप्पणियों पर इशारा करूंगा। ये टिप्पणियां विस्तार से हैं, मुझसे असहमत भी, शालीन भी और महत्वपूर्ण भी। सम्मान की बात मेरे लिये!
मैं यह भी कहना चाहूंगा कि कल की पिरिक वाली पोस्ट मेरे अपने विचार से खुराफाती पोस्ट थी। मुझे अपेक्षा थी कि लोग इकनॉमिक टाइम्स की खबर के संदर्भ में टिप्पणी करेंगे, मेरी ब्लॉगिंग सम्बन्धी कराह पर टिप्पणी करने के साथ साथ! और कई लोगों ने अपेक्षानुसार किया भी। धन्यवाद।
अच्छा विषय, अच्छा आलेख और अच्छी टिप्पणियाँ. बात को आगे बढाने के बजाय मेरे निम्न आलेख को ही मेरी टिप्पणी समझा जाए: अहिंसा परमो धर्मः
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मैं ज्ञानजी से सिर्फ़ एक बार मिला हूँ। उनके दफ़्तर में ही। सिर आधे घण्टे की मुलाकात में हमने ढेरों बातें कीं, चाय पी गयी, कम्प्यूटर पर मैने कुछ ब्लॉगरी का तकनीकी पक्ष भी सीखा और इन्होनें एकाध फोन काल्स का जवाब भी दिया। इस सब के बीच एक बड़ी सी मक्खी जो हमारे लिए मंगायी गयी नमकीन और बिस्किट पर मंडरा रही थी उसे एक अखबार से ज्ञानजी ने एक झटके में ही शांत कर दिया। बड़ी सहजता से। वह मक्खी जब तक जीवित थी हमारी बात-चीत को असहज बना रही थी।इस गर्मागरम बहस को पढ़कर मुझे ये लगता है कि हम कभी-कभी बेज़ा बहस-नवीस होते जा रहे हैं।
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मैं मूलतः बात हिंसा पर टिकाता हूं। अगर मच्छर भी न मारा जाए , इन्सान की हत्या भी न की जाए और मांसाहार के लिए जीव जिबह भी न किये जाए तो भी हिंसा मनुश्य के स्वभाव का हिस्सा है। क्रोध , अपशब्द, दोषारोपण, प्रताड़ना, अपशब्द के जरिये वह हिंसा प्रकट करता ही है। यही सामान्य स्तर है.
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Quote:——————————————यहाँ मैं अनामदास जी की बात से असहमत हूँ. मेरा अपना विचार है की मांसाहारी लोग वास्तव में संवेदनशील हो ही नहीं सकते.—————————————-Unquoteयहाँ मैं Ghost Buster जी की बात से असहमत हूँ।केवल शाकाहारी होने से इन्सान संवेदनशील नहीं बनता।सुना है कि हिट्लर शाकाहारी था।कभी कभी तो पालतू माँसाहारी कुत्ते भी आदमी से अधिक संवेदनशील होते हैं।बंगाल में सभी मछली खाते हैं।क्या बंगाली लोग संवेदनशील नहीं होते?इस विषय पर हम ज्यादा सोचते हैं तो कई contradictions सामने आते हैं।हम हिन्दु लोग गोहत्या को पाप मानते हैं।मछली, बकरी और मुर्गी ने कौनसे पाप किये?भैंस भी दूध देती है, तो हम केवल गाय को माँ का स्थान क्यों देते है?क्या रंग भेद का मामला है?अगर भैंस काला न होकर सफ़ेद होता तो क्या उसे भी हम गाय का दर्ज़ा देते?कोरिया में लोग कुत्ते और बिल्ली को खाते हैं।अंग्रेज़ों को इसपर आपत्ति है।कोरिया के लोग पूछते हैं कि अंग्रेज़ सूअर, गाय, बकरी वगैरह खा सकते हैं तो वे कुत्तों और बिल्लियों को क्यों नहीं खा सकते?यह बहस कभी खत्म नहीं होगी।
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तीनों स्थितियों की तुलना नहीं की जा सकती. मक्खी-मच्छर-तिलचट्टे गन्दगी और बीमारी फैलाते हैं. यदि सवाल मनुष्य या कीडे-मकोडों के बीच जीवन संघर्ष का हो तो चुनाव में कहीं कोई संशय नहीं. कीटों का विनाश ठीक है.दूसरी ओर गाय, बकरे, भेड़ आदि निरीह पशुओं को लीजिये. क्या इनका जीना किसी तरह से मानव जीवन के लिए दुश्वारियत की वजह है? कहीं से नहीं. तो केवल स्वाद के लिए इनका वध करना मानवीय स्वभाव में कहीं गहराई में संरक्षित पशुता का ही प्रदर्शन है.तीसरी केटेगरी के बारे में तो क्या कहा जाए? ये तो पाशविकता की पराकाष्ठा है.—————————————-यहाँ मैं अनामदास जी की बात से असहमत हूँ. मेरा अपना विचार है की मांसाहारी लोग वास्तव में संवेदनशील हो ही नहीं सकते.
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अभी इतना सब कुछ पढने के बाद सोच रहा हूँ की अगली पोस्ट किस पर डालेंगे सर जी ?एक मक्खी पर आपने ढेरो लोगो को भिडा दिया ओर ख़ुद मजे ले रहे है ?धन्य हो सर जी धन्य हो?
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मेरी राय में अहिंसा व्यावहारिक दर्शन है। जीव हिंसा आम तौर पर गलत है, लेकिन समय व परिस्थिति के अनुसार यह बहुधा जायज लगने लगती है और लोग इसे पसंद कर रहे होते हैं। अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति भी अपनी जान बचाने के लिए दूसरे प्राणी की जान लेने में नहीं हिचकिचाएगा। आम तौर पर मांसाहारी लोग भी जीव हिंसा पसंद नहीं करते लेकिन उनकी थाली में स्वादिष्ट मांसाहार परोसा जाता है तो उनकी संवेदनशीलता व्यावहारिकता का रूप ले लेती है। इसी तरह हिंसक प्राणी की हिंसा आम तौर पर हमें सुकून देती है। मच्छर मार कर हमें खुशी होती है क्योंकि वह हमारा खून चूसता है। कोई अपराधी मारा जाता है तो हम राहत की सांस लेते हैं, क्योंकि उससे हमें भी कभी खतरा हो सकता था। कहने का मतलब है कि अहिंसा की नैतिकता संदर्भ सापेक्ष है। किस संदर्भ में इसकी बात की जा रही है, उस पर इसका जायज या नाजायज होना निर्भर करता है।
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Gyaanjee,I am extremely busy and in a desperate hurry today. Inspite of that I could not resist squeezing some time to quickly read your post and the interesting reactions.Though I would like to do so, I regret my inability to post a long comment in Hindi outlining my views on this vexatious issue. You know me. When something in a blog post catches my attention, I must comment or else I wlll feel restless for the rest of the day.So inspite of paucity of time, I will quickly post an impromptu comment in brief:It’s a question of drawing the line somewhere.Where do you draw it?I draw it here.You draw it there.Others draw it elsewhere.None of us is competent to pass judgement on this issue. So, for me this subject is a non-issue.So long as the law permits it go ahead.You won’t go to jail if you swot flies but be careful. If your boss notices it, he will give you some work to do!So long as your society or community permits it, go ahead. You won’t be ostracized. The butcher is safe. He is doing his job. So long as the country permits it, go ahead.The soldier must kill enemy soldiers for the sake of the nation.This debate on the merits and demerits or morality or immorality of killing and meat eating has always been inconclusive and may never be settled at any point in time.One point to note is that our religion, Hinduism, is silent on this issue of meat eating. It is our birth and upbringing that decides the issue for each of us. Later our environment either reinforces and confirms our eating habits or forces us to change.I am by birth and upbringing a vegetarian. I will continue to be one for ever not because of any lofty principles on this issue but simply because I am unable to overcome my revulsion for flesh and blood. But I have no problems eating with non vegetarians sitting at the same table as long as my menu does not include non vegetarian items.I will never kill unless I am attacked.I don’t swot flies, (merely flick them off) but I have killed mosquitoes that stung me and were in the act of sucking my blood.I have never killed a rat but have been party to the decision to buy and keep rat poison to save my office from these rodents.If I think too much about this I will only confuse myself. So let me stop at this stage and post this hurried comment. Sorry for writing in English but I need much more time for writing this correctly in Hindi.Besides your blog permits comments in English too.RegardsG Vishwanath
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