मेरे साथ यात्रा करती मेरी पत्नी रीता की अचानक बुदबुदाती आवाज आती है। लैपटाप में मुंह घुसाये मैं पलट कर देखता हूं तो पाता हूं कि वे अपने पर्स से रामचरित मानस का गुटका निकाल कर पढ़ रही हैं। मैं समझ जाता हूं कि जैसे मैं ब्लॉग लिखने का प्रयोग तनाव प्रबंधन के लिये करता हूं; वैसे ही वे मानस पारायण का प्रयोग तनाव प्रबंधन के लिये कर रही हैं।
मानस पारायण, गुरुग्रंथ साहब का पाठ, रोज़री (माला) फेरना, गायत्री मंत्र का उच्चारण या लेखन या बापू का तकली चलाना – ये सब तनाव प्रबंधन की सात्विक एक्सरसाइजें हैं। हर व्यक्ति समय समय पर इनका या इन प्रकार की अन्य का प्रयोग करता है।
दीवार पर या पंचिंग बैग पर घूंसे मारना, अनाप-शनाप बुदबुदाना, फोन बैंग करना (पटकना) आदि तनाव को राजसिक प्रदर्शन के माध्यम से कम करने का जरीया है। शिकार पर जाना या मछली पकड़ना भी उस ब्रेकेट में रखा जा सकता है।
तामसिक तरीका क्या है जी? ड्रग्स लेना, नींद की गोली का नियमित सेवन, आलस्य को अपनी सामान्य स्टडी स्टेट मानना, खूब भकोसना (अनाप-शनाप खाना) शायद उसमें आता हो।
हम सब में सत्त्वस-रजस-तमस तीनों हैं। हम उन सभी का प्रयोग अपने तनाव प्रबंधन में करते हैं। उसमें से किसकी बहुतायत है – वह तय करता है कि हमारा व्यक्तित्व कैसा है।
ब्लॉगिंग किसमें आता है – सत्त्व/रजस/तमस में?
![]() मेरी पसंद "खुदी को किया बुलंद इतना |
सत्व रजस और तमस,तीनो ही मनुष्यमात्र की प्रवृत्ति का हिस्सा हैं,अन्तर केवल १ से १०० के बीच प्रतिशत रूप में प्रत्येक की गुण मात्रा का ही होता है और इसी के अनुकूल व्यक्ति विशेष अपने तनाव मुक्ति का प्रबंधन भी कर लेता है.सात्विक प्रवृत्ति वाले सकारत्मक रचनात्मिकता की ओर प्रवृत्त होते हैं(स्वाध्याय द्वारा अपनी प्रवृत्तियों को सात्विक करने का प्रयास भी इसी का हिस्सा है),राजसिक प्रवृत्ति वाले दूसरों को बिना नुकसान पहुंचाए अपने मनः रंजन को प्रस्तुत होते हैं और तामसिक प्रवृत्ति वाले परपीडन में आनंद खोज लेते हैं.लेकिन एक बात यह निश्चित है कि अपनी जन्मजात प्रवृत्ति के अनुरूप हर मनुष्य तनाव मुक्ति के लिए रास्ता अवश्य खोज लेता है.जहाँ तक ब्लॉग लेखन का प्रश्न है,मैं इसे लेखन मान कर चलती हूँ और ब्लॉग तो इसे प्रकाशित करने का एक तकनीकी माध्यम भर…निश्चित रूप से लेखन इस प्रबंधन का एक बहुत ही शशक्त जरिया है परन्तु यह भी सत्व रजस और तमस तीनो गुणों से भरपूर होता है और अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप व्यक्ति इस लेखन के जरिये आत्मतुष्टि तथा तनावमुक्ति दोनों का मार्ग खोज लेता है.तभी तो देखिये न कोई सार्थक लेखन में,तो कोई परनिंदा या दूसरों को नीचा दिखने में लिप्त रहता है.वत्सुतः इस लेखन(ब्लो९ग लेखन)में भी हर कोई अपनी प्रवृत्ति अनुरूप अपना तनावमुक्ति प्रबंधन ही कर रहा है. .
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ये तो सही है.. कई तरीके हैं तनाव दूर करने के..कुछ धुवें के साथ तनाव उड़ाना पसंद करते है तो कुछ भजन किर्तन करके..आपका आभारी हूं जो मेरे लिखे शब्दों को अपने घर में जगह दिया.. वैसे अनुराग और अभिषेक जी की बात सही है.. ये मेरा है भी नहीं.. हां मगर एक जगह मैं उनसे आगे हूं.. मैंने ये लाफ़्टर चैलेंज शुरू होने से बहुत पहले कहीं सुना था.. शायद कालेज के किसी मित्र ने सुनाया था.. 🙂
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मै तो तनाव मे आने पर एक गिलास ठंडा पानी पी के अपनी डायरी उठाकर वो वजह लिख लेती हूँ जिससे तनाव कि स्थिती बनी है, उसके बाद भी काम ना बने तो मेडिटेशन करती हूँ, काम बन जाता है… पर अक्सर लोग कहते हैं.. गरिमा और तनाव मे … अच्छा मजाक है 😀
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“खुदी को बुलंद इतना कि और तनाव भाग जाए तनाव बंदे से खुद पूछे, बता बेटा अब तेरे पास आऊ कैसे .अपने विचार दूसरो को बांटने और ब्लॉग में अभिव्यक्ति से तनाव में कमी तो आती है. और ब्लॉग लेखन एक सर्वोत्तम माध्यम है . सभी अपने तनावों को कम करने के लिए कोई न कोई जुगत भिडाते रहते है. रोचक पोस्ट के लिए धन्यवाद् .
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“खुदी को बुलंद इतना कि और तनाव भाग जाए तनाव बंदे से खुद पूछे, बता बेटा अब तेरे पास आऊ कैसे .अपने विचार दूसरो को बांटने और ब्लॉग में अभिव्यक्ति से तनाव में कमी तो आती है. और ब्लॉग लेखन एक सर्वोत्तम माध्यम है . सभी अपने तनावों को कम करने के लिए कोई न कोई जुगत भिडाते रहते है. रोचक पोस्ट के लिए धन्यवाद् .
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