यह शीर्षक जानबूझ कर गलत सा लिखा है। मेरे अपने मानक से उसमें शब्द गलतियों की टॉलरेंस होने चाहिये। पर हम उत्तरोत्तर भाषा के प्रति प्रयोगधर्मी (पढ़ें लापरवाह) होते जा रहे हैं। हिज्जे गलत लिखना शायद ट्रेण्डी होना है। पर क्या वह उचित भी है?
पहली बात – ब्लॉगजगत हिज्जे सुधारकों की पट्टीदारी नहीं है। वह वास्तव में किसी की पट्टीदारी नहीं है। अगर मैं गलत हिज्जे लिख कर काम चला सकता हूं; अपना सम्प्रेषण पूरा कर लेता हूं; तो वह पर्याप्त है। कोई तर्क नहीं – पीरीयड। पूर्णविराम।
मुख्य बात है सम्प्रेषण। पर अगर मेरे लेखन के हिज्जे मेरे स्तर का सम्प्रेषण करते हैं तो झमेला हो जाता है। हिन्दी वाले वैसे ही हम जैसे को हिकारत से देखते हैं। "यह प्राणी जबरी अंग्रेजी के शब्द ठूंसता है, ऊपर से हिन्दी के हिज्जे भी गलत लिखता है! इसे तो पढ़ना ही अपना स्तर गिराना है" – पाठक में यह भाव अगर आने लगें तो पाठक-हीनता या खुद लिखे खुदा बांचे वाली दशा आने में देर न लगेगी। इस लिये मुझे लगता है कि लेखन में हिन्दी के हिज्जे सही होने चाहियें और किसी अन्य भाषा के शब्दों का प्रयोग अगर हो तो उच्चारण के आधार पर जितना सम्म्भव हो; वे शब्द देवनागरी में सही (इससे मेरा आशय परफेक्ट-perfect-शुद्ध नहीं एप्रोप्रियेट-appropriate-उचित से है) होने चाहियें।
मैं जानता हूं कि मैं कोई वेदान्तिक सत्य नहीं कह रहा। यह वाद-विवाद का मुद्दा हो सकता है कि भाषा में हिज्जों के बदलाव के प्रयोग होने चाहियें या नहीं? मैने स्वयं पहले पूर्णविराम के लिये "." का प्रयोग किया है और नीरज रोहिल्ला जी के सिखाने पर "।" पर लौटा हूं। शब्दों पर नासिकाध्वनि के लिये बिन्दु (चिड़ियां) का प्रयोग हो या चन्द्रबिन्दु (चिड़ियाँ) का – इस पर भाषाविद बहुत चेंचामेची मचा सकते हैं। उस प्रकार की बात छेड़ना ठीक नहीं। पर एक स्वीकार्य स्तर के अनुशासन की बात कर रहा हूं मैं। अपने आप पर लगाये गये अनुशासन की।
उस अनुशासन की रेखा क्या होनी चाहिये? हिज्जों की गलतियों (पढ़ें प्रयोगधर्मिता) का स्तर क्या होना चाहिये?
रविवार को कई नये ब्लॉग देखे। बहुत अच्छी शुरुआत कर रहे हैं नये चिठेरे। तकनीक और कण्टेण्ट दोनो बहुत अच्छे हैं। डेढ़ साल पहले जब मैने ठेलना प्रारम्भ किया था, तब से कहीं बेहतर एण्ट्री कर रहे हैं नये बन्धु।
चिठ्ठा-चर्चा तो जमती है; एक "नव-चिठ्ठा चर्चा" जैसा ब्लॉग भी होना चाहिये नये प्रयासों के लिये एक्स्क्लूसिव। अनूप सुकुल का एक क्लोन चाहिये इस महत्वपूर्ण कार्य के लिये! |
बहुतेरे चिट्ठाकार, वर्तनी (spelling) की गम्भीर त्रुटियाँ करते हैं तथा उनके ध्यान में यह बात लाये जाने पर बड़े ही ढ़ीठपने से उत्तर देते है कि ‘आप शब्दों (की त्रुटियों) पर क्यों जाते है, भावनायें समझिये’और तो और, यदि मेरी ओर से, perfection का आग्रह किया जाता है तो यह कटाक्ष किया जाता है कि ‘क्या आपको perfection का हिंदी अनुवाद नहीं आता’मेरी शिकायत यही है कि जब आप अंग्रेजी भाषा लिखते समय वर्तनी का ध्यान रखते हैं, अंग्रेजी भाषा पढ़ते समय मिले क्लिष्ट शब्दों को समझने के लिये, विभिन्न शब्दकोष खंगालते हैं, तो अपनी भाषा के सम्प्रेषण में भावना की जिद क्यों करते हैं। उस समय क्यों नही अपने मष्तिष्क को चौकन्ना रखते? बेशक transliteration में समस्यायें है, किन्तु लिखते समय उन्हें समझना चाहिये किवैश्य – वेश्यादम – दमारज – राज – रजाआदि – आदीप्लग – प्लेगपेज – पेगदिन – दीनबहुत – भुत (भूत)मरना- मारनाजैसे अनगिनत उदाहरणों के चलते उनकी ‘भावना’ का अभिप्राय बदल जाता है। जरा अपने किसी अंग्रेजी भाषा के आवेदन/ प्रस्तुतिकरण में मामूली सी mistake करके देखें, जैसेLog – LongPart – FartSum – SomeCheque -CheckChat -ChantAbut -AboutBomb – Wombउपरोक्त टिप्पणी मैने राज भाटिया जी की एक पोस्ट के जवाब में दी थी। नतीजा क्या हुया? आप ही देख लीजिये।आप ही देख लीजिये।
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वर्तनी महत्त्वहीन नहीं है, मगर मुल्य लिखे गए विचारों का ही है.वर्तनी बिलकुल महत्वपूर्ण है संजय भाई। बहुत से ऐसे मामले हो सकते हैं जहाँ वर्तनी गलत होने से पूरे का पूरा आशय ही बदल जाता है बात का, तो उस समय विचार कैसे पढ़ने वाले व्यक्ति को समझाएँगे? 🙂 इस पर शीघ्र ही एक पोस्ट ठेलता हूँ। 🙂
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“गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ”श्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये …..
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आपकी बात से पूर्ण सहमति है। भाषा में अनुशासन जरूरी है, लेकिन यह उसकी प्रकृति के अनुरूप होना चाहिए। इससे भाषा में प्रवाह बना रहता है। वैसे भी भाषा पर बेमेल नियम थोपने की कोशिश होती है, तो उसे उन नियमों को तोड़ते देर नहीं लगती।
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मेरी भी कई गल्तियाँ हो जातीँ हैँ – हिन्दिनी से टाइप करना सबसे सरल लगा है -और अँग्रेज़ी के लघु शब्द भी use karti हूँ – for e.g. You = U For = 4 etcetc बम्बैय्या हिन्दी से भी लोग चिढते रहेँ , वो भी प्रयुक्त होती ही रहेगी – – लावन्या
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जानबूझ कर तो कोई ग़लत लिखता नहीं, इसलिए कहीं कुछ कमी रहती है तो पाठकों से सहनशीलता की अपेक्षा की जानी चाहिए. लेकिन लापरवाहीवश ग़लत लिखने वालों से अनुशासन की अपेक्षा करने में भी कोई बुराई नहीं है.
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आपने बहुत ही रोचक, सामयिक और महत्वपूर्ण बात उठाई है । इस प्रकरण में मुझे कुछ विद्वानों ने ‘गुर’ दिए हैं । वे अपने ब्लाग पर पोस्ट करने की कोशिश करूंगा । उससे पहले यह कहने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूं कि कम्प्यूटर के कारण अब देवनागरी लिपि अपनी सम्पूर्णता से प्रयुक्त की जा सकती है -बिना कोई समझौता किए और बिना कोई शार्ट कट अपनाए ।
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