महेन ने एक टिप्पणी की है बिगबैंग का प्रलय-हल्ला… वाली पोस्ट पर:
ऐसी ही अफ़वाह ’96 में भी उड़ी थी कि उस साल भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध के कारण धरती नष्ट हो जाएगी। इसका आधार नास्त्रेदामस की भविष्यवाणियाँ थीं। कालेज का दौर था तो मैं सोचा करता था कि क्लास की किस लड़की को बचाने के लिये भागूँगा। मगर हाय रे किस्मत, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।
उस दौर से गुजरता हर नौजवान रूमानियत के विमोह (infatuation) का एक मजेदार शलभ-जाल बुनता है। हमने भी बुना था। उसी की पंक्तियां याद आ गयी हैं –
अनी मद धनी नारी का अवलोकन युग नारी का कर ले जीवन – युवा पुरुष तन वह गर्वित तन खड़ी है हिम आच्छादित मेघ विचुम्बित कंचनजंघा वह बिखेरती |
वह अण्ट-शण्ट लिखने का दौर डायरियों में कुछ बचा होगा, अगर दीमकों मे खत्म न कर डाला हो! यह तो याद आ गया महेन जी की टिप्पणी के चलते, सो टपका दिया पोस्ट पर, यद्यपि तथाकथित लम्बी कविता की आगे की बहुत सी पंक्तियां याद नहीं हैं। वह टाइम-स्पॉन ही कुछ सालों का था – छोटा सा। अन-ईवेण्टफुल!
अब तो कतरा भर भी रूमानियत नहीं बची है!
रुमानियत बिना इंसान इंसान नहीं। आप को वो किस्सा याद आ गया मतलब अभी कुछ आस बाकी है पूरी तरह रुमानियत चुकी नहीं। हां ये हो सकता है कि जिन्दगी के दूसरे दौर के रोल अदा करने के लिए रुमानियत को दबा दिया गया हो
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क्या बात हे सच मे प्रलय आ गई…. नही नही मजा आ गया.धन्यवाद
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“अब तो कतरा भर भी रूमानियत नहीं बची है”यह झूठ है… बिल्कुल सफेद झूठ। इसे कोई नहीं मानेगा। मैं नीरज गोस्वामी जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ।हम आशा करते हैं कि घर के भीतर से सच्चाई का खुलासा बहुत जल्दी आएगा। आदरणीया रीता जी की अगली पोस्ट पढ़ने की उत्सुकता बढ़ा दी आपकी इस आखिरी पंक्ति ने।
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deemken bhi roomani ho gayi hongi, aur dayari ko bakhsh diya hoga, khojiye to sahi. 🙂
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