अमित माइक्रो ब्लॉगिंग की बात करते हैं।
यह रही मेरी माइक्रो ( Style Definitions */ p.MsoNormal, li.MsoNormal, div.MsoNormal {mso-style-parent:””; margin:0cm; margin-bottom:.0001pt; mso-pagination:widow-orphan; font-size:12.0pt; font-family:”Times New Roman”; mso-fareast-font-family:”Times New Roman”; mso-bidi-font-family:”Times New Roman”; mso-bidi-language:AR-SA;}@page Section1 {size:612.0pt 792.0pt; margin:72.0pt 90.0pt 72.0pt 90.0pt; mso-header-margin:36.0pt; mso-footer-margin:36.0pt; mso-paper-source:0;}div.Section1 {page:Section1;}–> μ) पोस्ट :
दिनकर जी की रश्मिरथी में कर्ण कृष्ण से पाला बदलने का अनुरोध नहीं मानता, पर अन्त में यह अनुरोध भी करता है कि उसके “जन्म का रहस्य युधिष्ठिर को न बता दिया जाये। अन्यथा युधिष्ठिर पाण्डवों का जीता राज्य मेरे कदमों में रख देंगे और मैं उसे दुर्योधन को दिये बिना न मानूंगा।”
कर्ण जटिल है, पर उसकी भावनायें किसकी तरफ हैं?
बुजुर्गो ने सही कहा हे किसी का एहसान नही लेना चाहिये,वरना एक छोटा सा एहसान कई बार पेरो की बेडियां बन जाता हे, जेसे कर्ण के साथ हुआ ( मै एहसान फ़रोसो की बात नही कर रहा)ओर यह सब काथाये हमे रास्ता दिखाने के लिये ही हे , यानि हमारा मार्ग दर्शनधन्यवाद
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और माइक्रोब्लॉगिंग की शुरुआत पर बधाई और शुभकामनाएँ 🙂
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@सतीश सक्सेना जीप्यार के लिए तरसता कर्ण एक बहुत बदकिस्मत इंसान रहाकर्ण ने कभॊ नहीं कहा कि वह प्यार को तरसा हुआ है, प्यार उसको अपने दत्तक माता-पिता से खूब मिला और वह उन्हीं को अपना माता-पिता मानता था क्योंकि उन्होंने ही उसको जीवन दिया(नदि में बहता रहता तो कैसे जीवित रहता) और पाल पोस के बड़ा किया।कर्ण अपनी पहचान पाने के लिए तरसता था, क्योंकि जब उसे पता चला कि वह सूत पुत्र नहीं है तो उसे इस उत्कुंठा ने घेर लिया कि आखिर वह किस कुल का है, उसकी पहचान क्या है। इसी पहचान को पाने के लिए वह इस तरसता रहा।@संजय भाईसूतपुत्र को जिसने सम्मान दिया उसके प्रति अनुराग गलत कहाँ है, धर्मराज के गुणी भाई तो अछूत का अपमान करते थे…वास्तविकता से अनजान रहे हो भले.रामायण और महाभारत उस काल के भारतीय के समाज और उसमें रहने वालों के आचार-व्यवहार और मानसिकता के प्रतिबिंब है। एक संपूर्ण फिल्म की ही भांति इनमें भी आम जीवन, राजसी ठाठबाट, एक्शन, ट्रैजिडी, रोमान्स, आदि सब का समावेश है। यदि सिर्फ़ अच्छा-२ ही लिख दिया जाता तो फिर तो ये कभी सत्यता के निकट नहीं लगते और कदाचित् इतनी लोकप्रिय भी नहीं होते। 🙂
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कर्ण’स dilemma or Paradox !महाभारत के कुछ किरदारों में तुलना करना बड़ा कठिन होता है… कौन श्रेष्ठ? भीष्म, विदुर, कर्ण, युद्धिष्ठिर, अर्जुन … मेरे मन में तो उत्तरोत्तर घटते क्रम में ही है… पर कई बार dilemma की स्थिति होती है… कृष्ण को इनसे ऊपर ही रखता हूँ… ये तो मेरी मनःस्थिति है… बाकी आप बेहतर समझा सकते हैं.
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देखन में छोटे (माइक्रो) लगे घाव करे गंभीर!
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माइक्रो ब्लागिंग के बारे मव घोस्ट बस्तर जी की राय मेरी राय है ! और कर्ण मेरी राय में दिल से पैदलऔर कर्म से दृढ़ प्रतिज्ञ शूरवीर था !
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हमारी “माइक्रो टिप्पणी” स्वीकारे
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मैंने रश्मिरथी नहीं पढ़ा है किंतु जो टिप्पणी आई है उनसे कुछ कुछ समझ पारहा हूँ -मैं तो मात्र तुकबंदी वाला ब्लोगर हूँ आपलोगों के साथ जुड़ कर भाग्य शाली समझ रहा हूँ
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इसका उत्तर तो बड़ा जटिल है.. इतनी आसानी से कैसे दू?
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माइक्रो ब्लॉगिंग के बारे में पहली बार सुना, और देखा भी। फिर तो माइक्रो टिप्पणी हो होनी चाहिए।
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