एक खबर के मुताबिक एसोशियेटेड सीमेण्ट कम्पनी अपने सीमेण्ट उत्पादन के लिये जल और पवन ऊर्जा के विकल्प तलाश रही है। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में कम्पनी पहले ही राजस्थान और तमिलनाडु में १० मेगावाट से कुछ कम की क्षमता के संयंत्र लगा चुकी है। इसी प्रकार आई.टी.सी. तमिलनाडु में १४ मेगावाट के पवन ऊर्जा संयन्त्र लगाने जा रही है।
कम्पनियां अक्षय ऊर्जा के प्रयोग की तरफ बढ़ रही हैं। और यह दिखावे के रूप में नहीं, ठोस अर्थशास्त्र के बल पर होने जा रहा है।
मैं रोज देखता हूं – मेरे उत्तर-मध्य रेलवे के सिस्टम से कोयले के लदे २५-३० रेक देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग को जाते हैं। एक रेक में लगभग ३८०० टन कोयला होता है। इतना कोयला विद्युत उत्पादन और उद्योगों में खपता है; रोज! पिछले कई दशक से मैने थर्मल पावर हाउस जा कर तो नहीं देखे; यद्यपि पहले से कुछ बेहतर हुये होंगे प्लॉण्ट-लोड-फैक्टर में; पर उनमें इतना कोयला जल कर कितनी कार्बन/सल्फर की गैसें बनाता होगा – कल्पनातीत है। अगर कोयले का यह प्रयोग भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के साथ बढ़ा तो सही मायने में हम प्रगति नहीं कर पायेंगे।
हम लोगों को रोजगार तो दिला पायेंगे; पर उत्तरोत्तर वे अधिक बीमार और खांसते हुये लोग होंगे।
घर के स्तर पर हम दो प्रकार से पहल कर सकते हैं नॉन-रिन्यूएबल ऊर्जा के संसाधनों पर निर्भरता कम करने में। पहला है ऐसे उपकरणों का प्रयोग करें जो ऊर्जा बचाने वाले हों। बेहत ऊर्जा उपयोग करने वाले उपकरणों का जमाना आने वाला है। इस क्षेत्र में शायद भारत के उपकरण चीन से बेहतर साबित हों। हम बैटरी आर्धारित वाहनों का प्रयोग भी कर सकते हैं – गैसों का उत्सर्जन कम करने को। सौर उपकरण और सोलर कंसंट्रेटर्स का प्रयोग काफी हद तक अक्षय ऊर्जा के दोहन में घरेलू स्तर पर आदमी को जोड़ सकते हैं।
मैं पाता हूं कि सबसे सरल अक्षय ऊर्जा से चलित संयन्त्र है सोलर कूकर (सौर चूल्हा)। यह हमने एक दशक से कुछ पहले खरीदा था। प्रारम्भ में इसे जोश में खूब इस्तेमाल किया। फिर धीरे धीरे जोश समाप्त होता गया। उसका प्रयोग करना काफी नियोजन मांगता है भोजन बनाने की प्रक्रिया में। फटाफट कुकिंग का विचार उसके साथ तालमेल नहीं रख पाता। कालान्तर में सोलर कुकर (सौर चूल्हा) खराब होता गया। उसके रबर पैड बेकार हो गये। काला पेण्ट हमने कई बार उसके तल्ले और बर्तनों के ढ़क्कनों पर किया था। पर धीरे धीरे वह भी बदरंग हो गया। फिर उसका शीशा टूट गया। वह स्टोर में बन्द कर दिया गया।
वह लगभग ६०० रुपये में खरीदा था हमने और ईंधन की कीमत के रूप में उससे कहीं अधिक वसूल कर लिया था। पर अब लगता है कि उसका सतत उपयोग करते रहना चाहिये था हमें।
गांधीजी आज होते तो खादी की तरह जन-जन को सौर चूल्हे से जोड़ना सिखाते।
१४७ डॉलर प्रति बैरल से ६७ डॉलर पर आ गिरा। ईरान का क्या हाल है जहां आर्थिक प्रतिबन्धों को बड़ी कुशलता से दरकिनार किया गया है। और यह मूलत पेट्रोलियम के पैसे से हो रहा है। ईराक/लेबनान और इज्राइल-फिलिस्तीनी द्वन्द्व में ईरान को प्रभुता इसी पैसे से मिली है। वहां मुद्रास्फीति ३०% है।
मैं महान नेता अहमदीनेजाद की कार्यकुशलता को ट्रैक करना चाहूंगा। विशेषत: तब, जब पेट्रोलियम कीमतें आगे साल छ महीने कम स्तर पर चलें तो!
पर कम स्तर पर चलेंगी?
ज्ञान जी मसला बिल्कुल सही है…समस्या बढ़नी ही घटनी नहीं ..इसलिए वैकल्पिक उर्जा के क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से शोध और प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा. यही आज की आवश्यकता है और कल के लिए दूरदर्शिता. सोलर चूल्हा या इस तरह गैर परंपरागत उर्जा से जुड़े सभी उपकरणों का मंहगा, झंझटी और कुछ कुछ आज की स्थिति में अनुपयुक्त होना स्वाभाविक है…इसमें और अधिक “ऊर्जा” के साथ शोध की जरुरत है…..हम अपने सुविधा के अनुसार उपकरण बनने में माहिर हैं…शीघ्र ही बदला हुआ उपकरण परिदृश्य सामने आएगा…ऐसी आशा है.
LikeLike
विष्णु बैरागीजी,मैंने आपकी टिप्पणी शनिवार रात को दस बजे के बाद ही देखी।समस्या solar heater में नहीं, आपके इलाके का पानी में है।calcium carbonate, जो ठंडे पानी में घुला मिला रहता है, वही गरम पानी में कम soluble होता है और धीरे धीरे scale बनकर पानी को ठीक से बहने नहीं देता।यह एक Chemical engineering की पुरानी समस्या है और boilers में भी पायी जाती है।समाधान औद्योगिक क्रियाओं के लिए ढूंढे गए हैं जो हमारे लिए बहुत ही महंगा साबित होगा।इस विषय में मेरी जानकारी बहुत कम है। मैं यहाँ वहाँ पूछताछ करूँगा और यदि कुछ अच्छी और उपयोगी जानकारी मिली जो हमारी इस समस्या के लिए उपयुक्त हो तो आप को बता दूँगा। फ़िलहाल, मेरा सुझाव है की pipe diameter जरूरत से कुछ ज्यादा हो, पाईप को दीवारों के अन्दर न गाढें (भले ही देखने में बुरा लगे), ताकि पुराने पाइप को निकालकर कुछ सालों के बाद नये पाईप फ़िट करने में सहूलियत हो। लेकिन पाईप को बदलने में काफ़ी खर्च होगा। लगता है solar water heater आपके लिए किफ़ायती नहीं होगा।बेंगळूरु में ऐसी कोई समस्या नहीं। कावेरी का पानी एकदम soft होता है।
LikeLike
सोलर कुकर सचमुच में उत्कृष्ट उपकरण है लेकिन एक तो मंहगा और दूसरा – वहीं, धूप न मिलने की कठिनाई । मेरी पत्नी सरकारी नौकरी में है । सोलर कुकर ने उसकी बहुत सहायता की – मानो रसोइया रख लिया हो । अब जहां मकान बनाया है वहां आंगन में धूप नहीं मिलती और छत तीसरी मंजिल पर चली गई है । इतनी सीढियां कौन चढे ।यदि विश्वनाथजी यह टिप्पणी पढें तो एक सलाह प्रदान करें । पानी गरम करने के लिए मैं भी सोलर हीटर लगाना चाहता हूं । लेकिन मेरे अंचल के लोगों का अनुभव बहुत अच्छा नहीं है । उसकी नलियों में जल्दी ही ‘स्केल’ आ जाता है और पहले तो पानी आने की गति धीमी होती है,बाद में पानी आना बन्द हो जाता है । इसका कोई स्थायी निदान (कि ‘स्केलिंग’ न हो) सम्भव हो तो बताएं ।आपकी पोस्ट इस बार ‘जनोपयोगी’ और ‘सामयिक’ रही ।
LikeLike
मुझे लगता है कि लगभग सभी लोगों का अनुभव सौर पकावक के साथ कुछ ऐसा ही होगा. हमारे यहाँ ये कच्ची मूंगफली को भूनने और स्टोर करने के ही काम आ रहा है.OPEC देशों ने पेट्रोलियम उत्पादन में कमी करने की मंशा जताई है जिससे गिरते दाम काबू किए जा सकें. वैसे भी डॉलर के मुकाबले रूपये के और कमजोर होने से कम से कम आम जनता तक दामों में कमी नहीं पहुँचने वाली.
LikeLike
सौर चूल्हा – सुनने में कितना अच्छा लगता है, पर गुनने लायक खूबियाँ कुछ कम लगती हैं।
LikeLike
सौर जल उष्मक जैसा विश्वनाथ जी नें कहा सबसे उपयोगी और सफल रहा है।फ्लैट्स में भी आसानीं से लग सकता है। सौर चूल्हे की बनी खीर बहुत स्वादिष्ट होती है।
LikeLike
लगता है मेरे और आपके सौर चूल्हे की कहानी समांतर चलती रही बिल्कुल एक ही जैसी !
LikeLike