ढ़ेरों बुद्धिमान हैं जो दुनियां जहान का पढ़ते हैं। अलावी-मलावी तक के राष्ट्र कवियों से उनका उठना बैठना है। बड़ी अथारिटेटिव बात कर लेते हैं कि फलाने ने इतना अल्लम-गल्लम लिखा, फिर भी उसे फुकर प्राइज मिल गया जब कि उस ढ़िमाके ने तो काल जयी लिखा, फिर भी फुकर कमेटी में इस या उस लॉबी के चलते उसे कुछ न मिल पाया। यह सब चर्चा में सुविधानुसार धर्मनिरपेक्षता/अल्पसंख्यक समर्थन/मानवाधिकार चाशनी जरूर लपेटी जाती है। ऐसे पाठक बहुत विशद चर्चा जेनरेट करते हैं, आपके हल्के से प्रोवोकेशन पर। पर उनका स्नेह दुधारी तलवार की माफिक होता है। कब आपको ही ले गिरे, कहना कठिन है।
बाई-द-वे, सभी इण्टेलेक्चुअल ऐसे नहीं होते। कुछ की वेवलेंथ को आपका एण्टीना पकड़ता भी है। यह जरूर है कि आपकी समझ का सिगनल-टू-न्वॉयज रेशो (signal to noise ratio) कम होता है; कि कई बातें आपके ऊपर से निकल जाती हैं। अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (de-meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।
असल में, आप जितना अपने में परिवर्तन का प्रयास करते हैं, बुद्धिमानों की आशानुसार; उतना आप वैसा का वैसा ही रह जाते हैं। मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है!
खैर, विषय को जरा यू-टर्न दे दिया जाये। सुमन्त मिश्र “कात्यायन” एक बड़े ही बड़े महत्व के पाठक मिले हैं। उनके प्रोफाइल में लिखे उनके इण्टरेस्ट – धर्म/दर्शन/संस्कृति/सभ्यता/सम्प्रदायों का उद्भव… बड़े प्रभावी हैं। समस्या हमारे साथ है, हम यदा-कदा ही उनके मोड में आ कर कुछ लिख सकते हैं। अपनी नियमित मानसिक हलचल तो टमाटर/आलू/टाई/बकरी पर टिक जाती है।
यह अवश्य है कि अपना नित्य लेखन पूर्णत: उथला नहीं हो सकता। क्रौंच पक्षी की टांगें पूरी तरह डूब जायें, इतना गहरा तो होता है। पर उसमें पर्याप्त (?) गहराई होने की भी कोई गारण्टी नहीं दे सकता मैं। लिहाजा ऐसे पाठक केवल तीन कदम साथ चलेंगे, या मैत्री की ट्रॉसंण्डेण्टल (transcendental – उत्तमोत्तम) रिलेशनशिप निभायेंगे; अभी कहना कठिन है।
अजीब है कि ५०० से अधिक पोस्टों के बाद भी आप अपने ब्लॉग और पाठकों की प्रकृति पर ही निश्चयात्मक न हो पायें।
सुमन्त जी का स्वागत है!
चिठ्ठाजगत हर रोज ई-मेल से दर्जन भर नये चिठ्ठों की सूची प्रदान करता है शाम सात बजे। अगर उन्हें आप क्लिक करें और टिप्पणी करने का यत्न करें तो पाते हैं कि लगभग सभी ब्लॉग्स में वर्ड वैरीफिकेशन ऑन होता है। वर्ड-वैरीफिकेशन आपको कोहनिया कर बताता है कि आपकी टिप्पणी की दरकार नहीं है। इस दशा में तो जुझारू टिप्पणीकार (पढ़ें – समीर लाल) ही जोश दिलाऊ टिप्पणी ठेल सकते हैं।
(नये ब्लॉगर्स से अनुरोध: गूगल ब्लॉगर में ब्लॉग के डैशबोर्ड में Settings>Comments>Show word verification for comments?>No का विकल्प सेट कर दें वर्ड-वेरीफिकेशन हटाने को। जैसा टिप्पणियों से लगता है, नये ब्लॉगर यहां से पढ़ने से रहे। लिहाजा यह काट दे रहा हूं। दूसरी जुगत लगाऊंगा!)
अमित जी की देखा देखी इंक ब्लॉग ठेलाई, एमएस पेण्ट से:
इस डर के कारण तो हम कई बार टिप्पणी देने में भी घबरा जाते हैं…बड़े, ज्ञानी लोग हैं, पता नहीं क्या सोचेंगे.
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स्मार्ट इण्डियनजी अकेले नहीं हैं । मैं उनके पीछे ही खडा हूं ।
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मैं भी स्मार्ट इण्डियनजी का अनुयायी हूं । सब कुछ सर से उपर ही निकल गया ।
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१)———————————-आलू, टमाटर, बैंगन, सूरन, टिड्डा और हम जैसे नगण्य पाठकों वगैरह पर लिखना कभी मत छोड़ना। हम साधारण लोगों को यही सब आकर्षित करते हैं।आपके “बुद्धिजीवी” पाठकों को प्रसन्न करने के लिए भले ही आप इनके botanical/zoological नामों का प्रयोग करें। या इनके लिए एक अलग ब्लॉग आरंभ कीजिए और हमें लिंक भी बता दीजिए ताकि हम गलती से भी वहाँ कभी न जाएं!——————————————–२)moderation से हमें कोई परेशानी तो नहीं होती। हम जैसे अधीर टिप्पणीकारों को सब्र सिखाता है। पर जब किसी ब्लॉग्गर के यहाँ टिप्पणी करने से पहले word verification की भी औपचारिकता पूरी करनी होती है, तो टिप्पणी करता ही नहीं हूँ। मेरे प्रिय चिट्टे वही हैं जहाँ मेरी टिप्प्णियाँ, बिना moderation के, उसी क्षन छपते हैं और बाद के सभी टिप्पणियों की notice मुझे भेजी जाती है।spam से बचने के लिए शायद आप जैसे सफ़ल और नामी ब्लॉग्गरों को moderation का सहारा लेना पढ़ता होगा। काश कोई ऐसी सुविधा होती जिससे आप कुछ चुने हुए विश्वसनीय मित्रों को “Free pass” दे सकें।Application Number 1 मेरे लिए आरक्षित कीजिए।—————-३)—————————-सुमन्त मिश्राजी की तरफ़ मेरा भी ध्यान आकर्षित हुआ था।२० October को टॉल्सटॉय और हिन्दी ब्लॉगरी का वातावरण विषय पर उनकी टिप्प्णी पढ़कर मैने लिखा था:सुमन्त मिश्राजी,आप से विनम्र अनुरोध है कि आप बार बार यहाँ आकर टिप्पणी करें।यह आपका “दुस्साह्स” नहीं होगा। उल्टा, हम सब अपने आप को धन्य समझेंगे।शुभकामनाएं—————————-४)———————————-कभी कभी तो ब्लॉग से ज्यादा टिप्पणी पढ़ने में हमें मज़ा आता है।एक प्रश्न पर आज भी बार बार सोचता हूँ।क्या टिप्पणी सबसे पहले करना अच्छा होगा या अंत मे ?अंग्रेज़ी में कहावत है He laughs best who laughs last.क्या टिप्प्णी करने की कला पर भी यह कहावत लागू होता है?—————————————५)———————–आपका इंक ब्लॉग देखा। यदि hand writing आपको पसन्द है तो इसके लिए अलग उपकरण मिल जाएंगे। Electronic note pad और Stylus / pen का प्रयोग कर सकते हैं । बिना scan किए आपका handwriting सीधा pdf format में बदल जाएगा। एक डाक्टर विशेषज्ञ के पास देखा था। उनका एक विशेष pad पर हाथ का लिखा हुआ prescription उसी क्षण अपने आप कंप्यूटर के स्क्रीन पर दिखने लगा और hard disk पर सहेज लिया गया था।—————————–
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ज्ञानजी,त्रुटि की ओर संकेत करनें तथा निराकरण के निर्देशके लिए धन्यवाद।मुझे लगता है कि सम्भवतः कार्य यथानिर्देश सम्पन्न हो गया है।समीर भाई को भी अनेकशः धन्यवाद।अभय तिवारीजी के आदेश पर जैसे तैसे ब्लाग तो बना लिया था किन्तु अभी भी बहुत सी तकनीकियाँ सीखनीं हैं।
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आपके लिखें की विविधता एवं सौम्यता का मैं प्रसंशक हूँ भाई जी ! ताऊ की पोस्ट से सहमत हूँ !
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आप और अन्य सभी अपनी स्वभावगत लेखन प्रक्रिया को जारी रखेँ यही मेरा मानना है – – लावण्या
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नहीं ऐसी बात नहीं, निश्चिंतता होगी….!! लेकिन एक बात नहीं होने देती वो है…ब्लॉग जगत की अनिश्चितता…..!जैसे ही यह आप जैसे गंभीर लोगों के अथक परिश्रम से स्थायित्व पायेगा…इसका लाभ सभी को मिलेगा. फ़िर भी कुछ अवश्यम्भावी परिवर्तन तो सदैव चलते रहेंगे…!
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जितनी इस पोस्ट की बातें गहन थीं, उतनी ही टिप्पणियॉ. लोगों ने अलग समां ही बांध दिया. लिखते जाइए. इसका मजा ही कुछ और है.
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