जो भी है, बड़ी फैसिनेटिंग है!
प्री-पोस्ट त्वरित टिप्पणी –
कर दो पोस्ट। क्या फरक पड़ता है। तुम सब आधे दिमाग के लोग हो – रीता पाण्डेय।
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मानसिक हलचल : ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में रह कर ग्रामीण जीवन जानने का प्रयास कर रहा हूँ। रेलवे के विभागाध्यक्ष के पद से रिटायर रेलवे अफसर।
यथार्थ…./
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गुरुदेव, जब बड़ों-बड़ों का ऐसा बैण्ड बजा जाता है तो हम जैसे टुटपुजिओं का क्या हाल होगा। आदरणीया रीता जी यह भी बता ही डालें तो मन का बोझ हल्का हो। 🙂
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भाई दिमाग चाहे आधा हो या पोना, उसे काम आना चाहिये,यानि चलना चाहिये , वरना तो … एक आदमी डा के पास गया अपने दिमाग को चेक करवाने, अब डा हेरान हुआ ओर बोला आप के आस तो सिर्फ़ आधा ही दिमाग है भाई?? वह आदमी बोला जानता हुं पिछले बीस साल से मेरी बीबी मेरा दिमाग खा रही है….शुकर आधा तो बच गया.
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रीता भाभी की तारीफ सारे देवर ऐसे कर रहे हैं जैसे उन्होंने नज़र उतारी हो …..वाकई में आधे दिमाग वाले हैं …:-))
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हूं………………..।
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जबसे अजदक पढ़े थे, आत्म विश्लेषण के महासागर में डुबकी लगा रहे थे. अब इसे पढ़ कर तो जल समाधि ले लिए हैं.यूँ तो भाभी जी को साधुवाद कि इतना सम्मान दिया वरना तो “तुम सब पगलाए गये हो का” सुनते सुनते कान पक गये थे.
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कल ही देख आया था.. कुछ समझ नही आया. अपने तो आधे दिमाग पर भी डाउट हो रहा है.
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हब सब आधे दिमाग के हैं तो फ़िर ताऊ का क्या होगा ? सुबह आठ बजे से ४ बार आ चुका हूँ ! बहुत चिंता में हूँ ! देखता हूँ फ़िर आके आगे क्या होता है ?
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satya vachan Reeta ji…kam se kam pata chal gaya ki mere paas bhi dimagh hai-chahey ‘aadha’ hi sahi–:D–main to ab tak soch rahi thi ki mere paas dinagh hai hi nahin—:(
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reeta di,hamney pehley hi khaa hai ki YAHAN SAB NASHEY ME HAIN…:)
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