आजकल मौसम सुहाना हो गया है। मेरी सासू मां ने सवेरे की पूजा और शंखद्वनि के बाद सैर पर जाना शुरू कर दिया है। लोगों से बतियाती घर में घुसती हैं सैर के बाद। और कोई न कोई खबर ले कर आती हैं।
श्रीमती रीता पाण्डेय की; फुरसतिया सुकुल के उकसाने पर, तुरत-फुरत लिखी एक घरेलू वातावरणीय पोस्ट!
आपको यह पोस्ट पसन्द आये तो रीता पाण्डेय की नजीर मियां की खिचड़ी का भी अवलोकन करें! |
दो दिन पहले घर में अफनाते हुये घुसीं और बोलीं – “अरे संकठा भाग गया है कहीं। उसकी महतारी रो रो कर जान दे रही है। दस दिन पहले तो संकठा की सगाई हुई थी।” घर में वातावरण अचानक गर्मा गया। भरतलाल (हमारे सरकारी भृत्य) को तुरंत बतौर “वन मैन कमीशन” नियुक्त किया गया – पूरी तहकीकात के लिये।
भरतलाल से जो खबर पता चली, उसके अनुसार संकठा को लड़की पसन्द नहीं थी। सो उसने शादी करने से मना कर दिया, पर बाप की मार के डर से घर से भाग गया। सामान्यत जैसा होता है; महिलायें इस तरह के मामले में पूरी तह तक गये बिना चैन नहीं लेतीं। अत: मैने भी पूरी तरह पड़ताल की ठानी। विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्र कर जो कहानी बनी, वह शुरू तो रोमांस के साथ हुई, पर समापन दर्द के साथ हुआ।
संकठा खाते पीते परिवार का गबरू जवान – बिल्कुल सलमान खान टाइप बिन्दास छोरा है। सड़क पर निकलता है तो लड़कियां देख कर आहें भरती हैं। संकठा की नजर एक लड़की से उलझ गयी और वह ऐसा लड़खड़ाया कि उसका दिल लड़की की गोदी में जा गिरा। और तो ठीक था पर लड़की उसकी जात बिरादरी से अलग की थी। पर इश्क कहां देखता है जात बिरादरी! संकठा प्रेम नगर की सीढ़ियां चढ़ते गये। लड़की को समोसा – लौंगलता खिलाये। फिर मोटरसाइकल पर बैठा कर प्रेम गली में फर्राटा भरने लगे।
खैर, दुनियां बड़ी कमीनी है। प्रेमियों को जीने कहां देती है। कुछ लोग संकठा के बाप के पास पंहुच गये – “भैया छोरे को खूंटे से बांधो, वर्ना घर की इज्जत डुबोयेगा और बिरादरी की नाक कटेगी सो अलग।” बस, बाप ने पकड़ कर चार लात दिये। संकठा की मां को भी हजार गाली दी – “तुझे तो घर में कण्डे थापने से फुर्सत नहीं है और छोरा हो रहा है आवारा। किसी दिन किसी चुड़ैल को घर ले आया तो गंगा में डूब मरना।”
बाप ने आनन फानन में एक लड़की देखी और संकठा की नकेल कसने को सगाई कर दी। सगाई से पहले संकठा ने एक नाकाम सी कोशिश करते हुये मां से कहा कि “लड़की की लम्बाई छोटी है”। इस पर बड़ा भाई गुर्राया – “तू कौन छ फुट्टा है! लड़की वाले तीन लाख खर्च कर रहे हैं। और वे जण्डइल है साले। चूं-चपड़ की तो वे तुझे काट कर अपट्रान चौराहे पर गाड़ देंगे।” लिहाजा, अपट्रान चौराहे पर गड़ने को अनिच्छुक, सगाई करा संकठा गायब हो गया।
सारी कहानी पर हमारी महरी शान्ती की मेरी सासू मां को दी टिप्पणी थी – “अरे अम्मा, लड़की क लम्बइया नाय छोट बा। दहेजवा छोट लागत होये। दहेजवा तनी बढ़ जाई त लड़की क लम्बइयौ बढ़ि जाई! अउर ऊ हरामी कत्तौं न ग होये। अपने मौसिया के घरे होये। आइ जाई!” (अरे अम्मा, लड़की की लम्बाई नहीं छोटी है। दहेज छोटा लग रहा होगा। दहेज कुछ बढ़ जायेगा तो लड़की की लम्बाई भी बढ़ जायेगी। और वह हरामी कहीं नहीं गया होगा। अपनी मौसी के घर होगा। आ जायेगा।)
पता नहीं संकठा ने क्या अनुभव किया। अपट्रान चौराहे पर गाड़े जाने का भय या दहेज की बढ़ी लम्बाई?
बहरहाल संकठा प्रसाद लौट आये हैं!
इसकहानी को आज पाडकास्ट में सुना अच्छा लगा।
http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/06/sankata-prasad-by-rita-pandey-audio.html
LikeLike
गुरुवर, संकठा प्रसाद को मारो गोली…जन्मदिन की बधाई पकड़ो पहिले,उई तो इश्क में गिरफ़्तार हैं, आप लोग काहे उसकी निजता का मटियामेट कर रहे हो..हमारा बस एक छोटा सा आग्रह है… मानोगे ?आज के दिन खिचड़ी न खाना,अउर तर माल में से पहिले हमारा कौरा ( ग्रास ) निकाल देना, वरना पेट फूल जावेगा !So, Happy Birthday to you..मुझसे दोस्ती करोगे ? गुरुअई अपनी जगह पर रहेगी.. बोलो मंज़ूर ?
LikeLike
बड़े दिनों बाद ज्ञानदद्दा की पोस्ट में एक भी अंग्रेही शब्द ना देखकर मैं चौंक गया, बाद में पता चला कि ये पोस्ट तो भाभीजी ने लिखी है। एक बाट तो पक्की है कि भाभीजी का अपना अलग से चिट्ठा नहीं है वरना शर्तिया आपके चिट्ठे के सारे ग्राहक मेरा मतलब.. आपके पाठक सब भाभीजी के ब्लॉग पर चले जाते। शुरुआत मेरे से ही होती यह भी पक्का है।
LikeLike
वाकई क्या केने :)हम तो मुरीद हो गए रीता आंटी के लेखन के
LikeLike
लेखन की भाषा जबर्दस्त प्रवाहमय है. मुझे ऐसा लगा कि कोचिन में नहीं बल्कि मैं अपने घर ग्वालियर में बैठा हूँ.इस मामले में ज्ञान जी को बधाई देने वाला था कि अचानक समीर जी की टिप्पणी पर नजर गई एवं ज्ञान चक्षु खुले कि आलेख तो भाभी का है.बधाई हो भाभी! कुछ दिन में ज्ञान जी आप की चिट्ठाकारी बंद न करवा दें — ऐसा गजब का आलेख फूटता है आपकी कलम से.
LikeLike
sir we follow the way u writegreat linesregardsdo visit my new post
LikeLike
कहानी तो वही है, जो रोज सुनने को मिलती है; लेकिन रीता जी की कलम ने इसे ऐसा रोचक बना दिया है कि पाठक लोग दुहरे हुए जा रहे हैं। बधाई।
LikeLike
अरे बकरे की मां कब तक खेर मनायेगी संकटा , भाई हलाल तो होना ही है चाहे बाप की छुरी से हलाल हो जायो चाहे गली वाली छुरी से, बाप थोडा समझ दारी से काम करेगां,भाग ले बेटा कितना भागेगाग्यान जी बहुत सुन्दर लिखा, अब सासु मां से पुरी खबर ले कर लिखना, इस संकटा क संक्ट टला या नही. धन्यवाद
LikeLike