मेरी पत्नी जी की पोस्ट पर देर से आई दो टिप्पणियां विचार करने को बाध्य करती हैं। सम्भव है कि बहुत से लोग उस पोस्ट पर अब न जायें, इस लिये इस पोस्ट को लिखने की जरूरत पड़ी।
पत्नी को पीटना, या शराब पी कर पीटना (जिसमें बहाना रहता है कि आदमी अपने होश हवास में न था) बहुत चल रहा है भारतीय समाज में। इसके खिलाफ बहुत कुछ होता भी नहीं। पर न होने का अर्थ इसे सामान्य या सहज व्यवहार मान लिया जाये?
मैं उस पोस्ट पर ज्ञान जी की टिप्पणी और उस पर विश्वनाथ जी का प्रत्युत्तर आपके सामने रखता हूं। आप ही निर्णय करें:
ज्ञान जी की टिप्पणी |
जी. विश्वनाथ जी की प्रतिटिप्पणी |
आप लोग कितनी सहजता से किसी मृत व्यक्ति के लिए ‘कमीना’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। |
वह केवल इसलिए के इससे भी ज्यादा शक्तिशाली या भावुक शब्द हम लोग इस सार्वजनिक मंच पर प्रयोग नहीं करना चाहते। |
क्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यह मानते हैं कि पत्नी की अंधाधुंध पिटाई करने वाला कमीना है, फिर चाहे वह शराबी हो या ना हो। |
जो अपनी पत्नी को पीटता है वह हमारी नज़रों में कमीना ही रहेगा। |
या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? | पूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि ३३ साल में कई बार पत्नी से झडप हुई है पर एक बार भी मैंने उसपर हाथ नहीं उठाया। एक बूँद शराब भी नहीं पी। मेरे जैसे हजारों मर्द होंगे। यकीन मानिए पत्नी को न पीटना कोई मुश्किल या असंभव काम नहीं है! |
मैं तो आपकी सहजता पर हैरान हूँ! | हम भी आपके विचारों से हैरान हैं! |
YH LEKH KISI KANE VYKTI KA LIKH LAGTA HAI JISNE AADHA DEKHA HAI YA NARI KO FREE ME DAYA BAT KAR VAH VAH LUTNA CHAHATA HAI .KYA NARI AADMI PAR ATYACHAR NAHI KARTI .AADMI KA DIKHAI DETA HAI JISKE BARE ME CHILATE HO MAGAR JO GHAR KE ANDER BHAWANAO KA AATYACHAR HOTA HAI USKE BARE ME KYO NAHI BILTE .MAR KA GHAV BHAR JATA HAI BOLI KA GHAV NAHI BHARTA. YA AAP LOG NARI KO KAMJOR RUP ME DEKHTO HO AAP BRABAR RUP ME AAYEGI TO PRTI DIVANDI HOGI OOR USKE LIYE YUD HOGA JO JISME TAKT HAI VAH JIT KE LIYA LGAYE GA IS ME ATYACHAR KI BAT HI .KUCHHPANE KE LIYE CUCHH TO KHONA PDEGA .AAGE BADTE BALTKAR ME AAP AADMI KO DOSI BAT KAR VAH VAH LOOTNE CHAOGE JO GALAT HOGA.NARI MARNA ACHHA NAHI TO NARI KA BHAVNATAMK ATYACHAR BHI ACHHA NAHI HAI.NARI BARABARI KARNE JA RAHI HAI YH LADAI ADHIK HOGI . PDE LIKHE JYADA HOGE.KYO JRA SOCHO .NARI KA VOT NA LO.
LikeLike
वाह ! सुंदर सार्थक चर्चा…….मगर हम तो दाहिनी तरफ़ ज्यादा हैं…किसी की पत्नी या स्त्री होने के कारण नही,मनुष्यता के नाते इस कर्म की घोर निंदा करते हैं. apne se shareerik roop se asmarth par prahaar poorntah kayarta hai,purusharth nahi..
LikeLike
आपको पढ़कर अच्छा लगा!
LikeLike
ज्ञानदत्त जी,आपको इस नाम से संबोधित करना ठीक होगा। आज से “ज्ञान” आप नहीं, कोई और है जिसके उत्तर की प्रतीक्षा बड़ी व्याकुलता से कर रहा था। अब तक “ज्ञान” से कोई प्रति-टिप्पणी नहीं मिली है। सोचा था वे स्पष्टीकरण करते हुए कुछ कहेंगे।इस सम्मान के लिए धन्यवाद. सोचा नहीं था के मेरी टिप्पणी को आप इतना महत्व देंगे और अगली पोस्ट का विषय भी बना देंगे! और साथ साथ मेरी तसवीर भी फ़िर एक बार छाप देंगे। सोच रहा हूँ स्टूडियो जाकर एक अच्छी तसवीर खिंचवा लूँ। शायद भविष्य में काम आ जाए।पोस्ट और टिप्पणीयाँ पढ़कर सन्तुष्ट हुआ। इतने सारे लोग मुझसे सहमत हैं।तो मैंने कुछ गलत नहीं कहा।गर्व के साथ अपनी पत्नि को बुलाकर आपका ब्लॉग दिखा दिया और कहा :”देखो मेरी तसवीर छपी है”पत्नि ने उत्तर दिया : “किस खुशी में? आज कौनसा नया तीर मार लिया तुमने?”मेरी पत्नि ब्लॉग पढ़ती नहीं है और उसे अब तक समझ में नहीं आई है कि मैं इस पर इतना समय क्यों बिताता हूँ।मैंने कहा : “३३ साल में तुम पर कभी हाथ नहीं उठाया, इस खुशी में।” और सन्दर्भ समझाया उसे।मायूस कर देने वाला उसका उत्तर : “लो, तो इसमें कौनसी बड़ी बात है? अपने कड़वे शब्दों से, या कभी कभी मुँह फ़िराकर तुम्हारी चुप्पी साधना क्या कम हिंसातम्क है?
LikeLike
वैसे तो विष्णु वैरागी जी , दिनेश जी ने अपने कमेन्ट मेरी बात का अनुमोदन कर ही दिया हैं पर सुमन मिश्र जी शायद पढ़ा नहीं हैं . और उनका ये कहना की पति को सर्वस्व मानों–नहीं मोहल्ले वालों को सर्वस्व मानों?और पति तो तुम्हारा जीवन है–पति को यमराज समझो-यार को जीवनधार समझो?अपने आप मे उनकी मानसिकता को दर्शाता हैं जहाँ अगर स्त्री का पति नहीं हैं तो वो चरित्र हीन हो गयी . जिसकी आखे इसके आगे ना देख पाये उसको कुछ कहना अपना समय नष्ट करना होता हैं . पति है तो श्रृंगार करो- का सीधा अर्थ हैं हमारे समाज मे विधवा की स्थिति पर आप की नज़र मे शायद स्त्री की साथकता तभी तक हैं जब वो आप के नाम का सिंदूर मांग मे भारती हैं . आप के कमेन्ट मै सोचने लायक कुछ है ही नहीं एक आम प्रचलित धारणा हैं हमारे समाज की सो प्रतिक्रया ना यहाँ दूंगी और ना प्रतिक्रया स्वरुप अपनी बेटी या बहु को दूंगी . वैसे एक बात जरुर हैं “ये लड़के की मां और लड़की की मां कह कर आप दो महिलाओं को बड़ी आसानी से एक दूसरे के विरुद्ध कर देते हैं और कभी भी ससुर या पिता का क्या रोल होता हैं अपने बच्चो की जिंदगी बनाने या सवारने मै इस पर बात नहीं करते . ? कभी सोच कर देखे ऐसा तो नहीं हैं की जितने परिवारों मै आप मध्यस्थ की भूमिका निभा चुके हैं उन्ही मे आप की गलत राय की वजह से परिवार टूटे हो किसी चीज़ को तभी ठीक किया जा सकता हैं जब हम ये माने की हाँ वो सच मे हैं . ये लड़के की मां , ये लड़की मां , ये पत्नी का स्थान , ये बहु का फ़र्ज़ , ये सास की जगह .ये सोच तो सदियों से जकडे हैं परिवारों को
LikeLike