मैं विफलता-सफलता की बात कर रहा था। सत्यम की वेब साइट, जो अब बड़ी कठिनाई से खुल रही थी (बहुत से झांकने का यत्न कर रहे होंगे), के मुख्य पन्ने पर बने विज्ञापन में एक छवि यूं है:
सफलता लक्ष्य/परिणाम पर सतत निगाह रखने का मसला है।
काश सत्यम ने यह किया होता।
सत्यम छाप काम बहुत सी कम्पनियां कर रही होंगी। और आस पास देखें तो बहुत से लोग व्यक्तिगत स्तर पर उस प्रकार के छद्म में लिप्त हैं। अन्तर केवल डिग्री या इण्टेंसिटी का है। मिडिल लेवल इण्टेंसिटी वाले “सत्यमाइज” होते हैं। बड़े पापी मार्केट लीडर हो जाते हैं। छोटे छद्म वालों को कोई नोटिस नहीं करता।
बाइबल की कथा अनुसार पतिता को पत्थर मारने को बहुत से तैयार हैं। पहला पत्थर वह मारे जो पाक-साफ हो!
सत्यम का शेयर ३९-४० रुपये पर बिक रहा है। खरीदने वाले तो हैं। सब पत्थर मार रहे हैं तो कौन खरीद रहा है?
राजू बन गया सींकचो का मैन . सत्यम अंतम दुखम . जिन्होंने शेअर लिए थे वे सत्यम नाशम दुखम कर मातम मना कर सर पीट रहे है . लालच बुरी बलाय . दुनिया में लालचियो और लूटने वालो की कमी नही है . एक ढूंढो हजार मिलेंगे. हर शाख पे उल्लू बैठे है सारे गुलिस्ता का क्या होगा .
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सच कहूं तो शिबू सोरेन के हारने से एक खुशी हुई है। न जानें क्यों।यह विदित है कि वे शायद अब या तो इस्तीफा देने के बाद फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे और किसी और सीट से फिर से चुनाव लड़ेंगे तब संभवत: जीत भी जाएं।लेकिन फिर भी उनकी हार ने एक प्रसन्नता दी है।क्या हम व्यक्तिवादी राजनीति से मुक्त होने की ओर बढ़ रहे हैं भले ही कछुए से भी धीमी चाल से।
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बहुत बढ़िया लगा —- लेकिन पहला पत्थर वो मारे जिस ने पाप न किया हो — बहुत सटीक लिखा है।
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देखने वाली बात एक ही है. सत्यम में जो पाप होना था वो हो चुका है या असली बड़ा पाप अब होगा?
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