पिछली जुलाई में लिखी पोस्ट में गंगा की बढ़ी जल राशि की बात की थी मैने। अब गंगा विरल धारा के साथ मेरे घर के पास के शिवकुटी के घाट से पल्टी मार गई हैं फाफामऊ की तरफ। लिहाजा इस किनारे पर आधा किलोमीटर चौड़ा रेतीला कछार बन गया है। यह अभी और बढ़ेगा। गंगा आरती लोग अब गंगा किनारे जा कर नहीं, शिवकुटी के कोटितीर्थ मन्दिर के किनारे से कर रहे हैं।
कछार में हम काफी दूर तक गये। खटीकों ने जगह घेर कर अपने अपने खेत बना लिये हैं। अपने अपने खेत में गड्ढे खोद कर पानी के कुण्ड बना कर गंगा के अण्डरकरेण्ट का सिंचाई हेतु इस्तेमाल करने के लिये जुगाड़ भी कर लिया है। मेहनती लोग हैं ये और गंगामाई इस सीजन में इन्हें मेहनत का अच्छा प्रतिफल देंगी।
काफी दूर जाने पर देखा – दलदल प्रारम्भ हो रहा था गंगा के ठहरे पानी का। उसके आगे थे कुछ छोटे छोटे बन आये द्वीप। और उनके बाद गंगा की विरल धारा। गंगाजी कितनी स्लिम हो गयी हैं! इतनी जबरदस्त डाइटिंग कराई है जनता ने उन्हें।
खटिकों के खेतों में कुम्हड़ा और ककड़ी के पौधे दीखे। एक जगह झोंपड़ी भी बनी दीखी। एक वृद्ध अपने नाती के साथ जा रहे थे। नाती का नाम था ऋषि। गंगा के कछार में ऋषि के भी दर्शन हो गये।
यह लिखते श्री अमृतलाल वेगड़ जी की पुस्तक “सौंदर्य की नदी, नर्मदा” की बहुत याद आ रही है। नर्मदा तो कई जगह स्थाई पल्टी मारती नदी हैं। गंगाजी की अस्थाई पल्टी पांच-सात महीने के लिये जीवनचर्या में बहुत बदलाव ला देती है!
परकम्मावासी नर्मदामाई की परिक्रमा करते हैं। वहां शूलपाण की झाड़ी के अस्सी मील लम्बे विस्तार में आदिवासी भीलों से पूर्णत: लूटे जाने की बाधा भी पार करते हैं। यहां गंगामाई के तट पर शूलपाण की झाड़ी शायद नहीं है। पर फिर भी गंगाजी की परकम्मा की कोई परम्परा नहीं है। सम्भवत: बहुत लम्बा विस्तार है गंगा का।
फिर भी इलाहाबाद से वाराणसी दक्षिण तट से पैदल होते हुये उत्तर तट पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लौटने का सपना है। शायद कभी पूरा हो पाये!
ek mansik halchal si uthi aap ka lekh padkarbahut gambhir prashna
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और तो सब ठीक , लेकिन गंगा का स्लिम होना चिंताजनक है.
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गंगाजी कितनी स्लिम हो गयी हैं! इतनी जबरदस्त डाइटिंग कराई है जनता ने उन्हें। सुन्दर व्यंग्य.
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प्रकति के दोहन ओर मनुष्य की अहसानफरामोशी का एक उदारहण है गंगा.
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जाने क्यों यकायक मुझे पटना का गंगा तट याद आ रहा है.. जहाँ जाने कितनी ही शाम गुजारी हैं यूँ ही..
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मैं दावा करता हूँ कि फुरसतिया के साथ पैदल यात्रा पर जाने को ज्ञान जी तैयार हो ही नहीं सकते 🙂
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गंगा तट का छाया चित्र देखकर कितनी ही यादें सजीव हो उठीं…वो बचपन …लहरें….नावें …पाल …. रेत…और रेत में बोए गए खरबूजा, खीरा और ककडी …..वो पानी में छूने का खेल…सब कुछ एक फ्लैश बैक सा घूम गया आंखों के सामने. जाना तो अब भी होता है साल में एक दो बार किंतु इतना समय नही मिल पाटा की गंगा तट तक जाया जा सके.
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गंगाजी का स्लिम होना भले ही अस्थाई तौर पर कुछ लोगो को रोजगार देदे. पर शुभ नही है.और परिक्रमा का सपना पूरा हो यही शुभकामना है.रामराम.
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फिर भी इलाहाबाद से वाराणसी दक्षिण तट से पैदल होते हुये उत्तर तट पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लौटने का सपना है। शायद कभी पूरा हो पाये!”सुंदर लेख और गंगा के दर्शन….भगवान आपकी मनोकामना पुरी करे….”Regards
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इश्वर करेंगंगा मैया की परिक्रमा की आपकी इच्छा जल्द ही पूरी हो.
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