
श्री पंकज अवधिया ने पिछली साल पोस्ट लिखी थी – छत पर चूने की परत लगाने के विषय में। अपने उस प्रयोग पर आगे का अपडेट दे रहे हैं इस पोस्ट में। आप पायेंगे कि अनेक वनस्पतियां गर्मियों से राहत देने में प्रयोग की जा सकती हैं। आप पंकज जी के लेख पंकज अवधिया लेबल पर सर्च कर भी देख सकते हैं।
पिछली गर्मियो मे आपने छत मे चूने के प्रयोग के विषय मे पढा था। अब समय आ गया है कि इस विषय मे प्रगति के विषय मे मै आपको बताऊँ।
पिछले वर्ष गर्मियों में यह प्रयोग सफल रहा। पर बरसात मे पूरा चूना पानी के साथ घुलकर बह गया। शायद गोन्द की मात्रा कम हो गयी थी। इस बार फिर से चूना लगाने की तैयारियाँ जब शुरु हुयी तो एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ मित्र ने डरा दिया। आप जानते ही है कि मधुमेह की वैज्ञानिक रपट पर काम चल रहा है। 500 जीबी की आठ बाहरी हार्ड डिस्क कमरे मे रहती है जिनमे से दो कम्प्यूटर से जुडी रहती है। कमरे मे सैकडों डीवीडी भी हैं। एक हजार जीबी के आँकडो से भरे सामान को चूने के हवाले छोडने पर विशेषज्ञ मित्र ने नाराजगी दिखायी। कहा कि रायपुर की गर्मी मे हार्ड डिस्क और डीवीडी दोनो को खतरा है। मन मारकर एक एसी लेना पडा।
मेरे कमरे मे एसी होने से काफी ठंडक हो जाती है पर एक मंजिला घर होने के कारण बाकी कमरे बहुत तपते हैं। रात तक धमक रहती है। इस बार नये-पुराने दोनो प्रयोग किये हैं। एक कमरे के ऊपर चूना लगाया है। दूसरे के ऊपर अरहर की फसल के अवशेष जिन्हे काडी कह देते हैं, को बिछाया है। तीसरे के ऊपर चितावर नामक स्थानीय जलीय वनस्पति को बिछाया है। चौथे कमरे मे वन तुलसा को बिछाया है।
वन तुलसा और चितावर दोनो के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। चितावर का प्रयोग छत्तीसगढ मे आमतौर पर होता है। यह घर को ठंडा रखता है। जहाँ कही भी पानी भरा होता है चितावर अपने आप उग जाता है। लोग मुफ्त की इस वनस्पति को ले आते हैं और साल भर प्रयोग करते हैं। इस वनस्पति के औषधीय उपयोग तो हैं ही साथ ही औद्योगिक इकाईयो से निकलने वाले प्रदूषित जल के उपचार में भी इसका प्रयोग होता है।
वन तुलसा नामक वनस्पति बेकार जमीन मे उगती है खरपतवार के रुप में। छत्तीसगढ के किसानो ने देखा कि जहाँ यह वनस्पति उगती है वहाँ गाजर घास नही उगती है। यदि उग भी जाये तो पौधा जल्दी मर जाता है। माँ प्रकृति के इस प्रयोग से अभिभूत होकर वे अपने खेतों के आस-पास इस वनस्पति की सहायता से गाजर घास के फैलाव पर अंकुश लगाये हुये हैं। अरहर की जगह छत को ठण्डा रखने के लिये इसके प्रयोग का सुझाव किसानो ने ही दिया। उनका सुझाव था कि छत मे इसकी मोटी परत बिछाकर ऊपर से काली मिट्टी की एक परत लगा देने से घर ठंडा रहेगा। एक पशु पालक ने एस्बेस्टस की छत के नीचे रखी गयी गायों को गर्मी से बचाने के लिये कूलर की जगह इसी वनस्पति का प्रयोग किया है। आप चितावर और वन तुलसा के चित्र इन कडियो पर देख सकते है।
मेरे गाँव के निवासी चितावर का प्रयोग करते रहे हैं। इस बार गाँव मे बन्दरों का अधिक उत्पात होने के कारण अब खपरैल वाले घरों मे टिन की छत लग रही है। टिन के नीचे दिन काटना कठिन है। वे टिन की छत पर चितावर की मोटी परत बिछा रहे है पर बन्दरो का उत्पात किये कराये पर पानी फेर रहा है। गाँव के एक बुजुर्ग ने सलाह दी है कि सीताफल की कुछ शाखाए यदि चितावर के साथ मिला दी जायें तो बन्दर दूर रहेंगे। आपने शायद यह देखा होगा कि बन्दर सभी प्रकार की वनस्पतियो को नुकसान पहुँचाते हैं पर सीताफल से दूर रहते हैं। इस प्रयोग की प्रगति पर मै आगे लिखूंगा।
शायद यह मन का वहम हो पर इन दिनों जंगल मे धूप मे ज्यादा खडे रहना कम बर्दाश्त होता है। मुझे यह एसी का दुष्प्रभाव लगता है। इसमे माननीय बी.एस.पाबला साहब के सुपुत्र बडी मदद करने वाले हैं। उनकी सहायता से एक हजार जीबी के आँकडो को एक डेटाबेस के रुप मे आन-लाइन करने की योजना पर चर्चा हो रही है। जैसे ही यह आन-लाइन होगा सबसे पहले मै एसी से मुक्त होना चाहूँगा।
पंकज अवधिया
(इस लेख पर सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।)
हमने इस साल, पंकज अवधिया जी के पिछली साल के लेख के अनुसार, अपने एक मंजिले मकान की छत पर चूने और फेवीकोल की परत लगाई है। उससे लगता है कि गर्मी कुछ कम है कमरों में।
पंकज जी की उक्त लेख में बताई वनस्पतियों की स्थानीय रूप से उपलब्धता में दिक्कत हो सकती है, पर अगर प्रयोग करने हों तो हर स्थान पर अनेक प्रकार की वनस्पति नजर आती है। यहां कुछ लोगों ने घर की छतों पर लौकी-नेनुआ की बेलें बिछा रखी हैं। वह भी तापक्रम कम करती होगी।
ज्ञान जी, बढ़िया जानकारी दी आपने. मै तो पूरी तरह अलोक पुराणिक जी से सहमत हूँ
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इतने दिनों बाद पंकज अवधिया जी को मानसिक हलचल में देखकर मन प्रसन्न हो गया। हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़े हुए उनके शोधपरक लेखों को जब आप सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाकर प्रस्तुत करते हैं तो उसकी पठनीयता और अधिक बढ़ जाती है। अच्छा होता यदि पहले की भांति सप्ताह में एक दिन हलचल में भी उनका लेख आता रहता।हमारे यहां मूंज नाम की एक झाड़ी होती है, वह कुटिया/झोपड़ी/मड़ई छाने के काम में आती है। यह घर को काफी ठंडा रखती है। मुझे लगता है चितावर भी शायद इसी तरह की वनस्पति है।मेरे खेतों की मेड़ों पर वनतुलसी काफी उगता है, इतना अधिक कि खेतों में फैलने से रोकने के लिए उसे उखाड़ना होता है। शायद उसी के कारण गाजर घास वहां नहीं है। अब यह जानकारी हो गयी है तो और जगहों पर भी ध्यान दूंगा और लोगों को इस बारे में बताउंगा। मकान को ठंडा रखने के लिए हमारे यहां कई लोग दीवारें मोटी रखते हैं और ईंट की जुड़ाई मिट्टी के गारे से करवाते हैं। थोड़ा महंगा पड़ता है, लेकिन घर ठंडा रहता है। पहले के समय में हमारे यहां जो मकान बनते थे वे हमारे यहां की गर्म जलवायु के काफी अनुकूल होते थे। मिट्टी के घर का तो पूछना ही नहीं, पक्के मकान भी ठंडे रहते थे। अपने मकान का पहलेवाला स्वरूप मुझे आज भी भुलाए नहीं भूलता। हाथ से पाथ कर बनायी गयी पतली ईंटों वाली और मिट्टी के गारे से जुड़ायी की गयी बीस इंच चौड़ी दीवारें। दीवारों पर सुरखी चूने का प्लास्टर और उसके उपर चिकनी मिट्टी का प्लास्टर, फिर उसके उपर चूने की पुताई। छत भी सुरखी और चूने की। सीमेंट का कहीं नामोनिशान नहीं। एकमात्र समस्या छोटे-छोटे दरवाजों को लेकर थी। दरवाजों को उंचा कराने के लिए पिता जी ने जो तोड़फोड़ शुरू करायी तो पूरा स्वरूप ही बदल गया। मैं आज भी सोचता हूं कि काश हमारा पहले जैसा ही घर होता। बहुत ठंडा हुआ करता था वह मकान। आज भी जिन कमरों की दीवारें पहले वाली हैं, वे भीषण गर्मी में भी ठंडी रहती हैं।
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चितावर के बारे में अच्छी जानकारी . आभार
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जरा ध्यान से, क्योंकि जरा सी असावधानी में व्यक्ति स्वयं को ही चूना लगा बैठता है।———–TSALIIM SBAI
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पान्डे जी मेरा मानना है कि अगर छत पर थर्मोकोल शीट लगायी जाये तो भी गरमी नही सताती है इसमें भी जयदा खर्चा नही आता है और रिजल्ट भी अच्छा मिलता है ।
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आचार्य श्री तुलसी पाली (राज) मे बिराज रहे थे। उस वक्त गर्मियो का मोसम था, जैसा सर्व विदित है राजस्थान गर्म प्रदेश है। उस वक्त का पाली शहर का टेम्प्रेशर् 49-50 (दोपहर मे) था। लोग बेहाल थे। दोपहर के प्रवसन मे पन्डाल मे श्रावको कि उपस्थिति नगण्य देख आचार्य श्री ने माजरे को भॉपा । आचार्य श्री ने कहॉ भाई आप लोग धरो मे रहते हो, वातानुकुलित मे सोते हो इसलिऐ गर्मी सताती है। आप भर दोपहर कल इस पण्डल मे आकर देखे, गर्मी इस पण्डाल मे पख भी नही मार सकती । दुसरे दिन दोपहर को प्रवसन पण्दाल मे घरो कि एसीयो का त्याग कर करीब दो से ढाई हजार लोगो एकत्रित हुऐ। गुरुदेव पण्डाल मे पहुचे। कार्यक्रम शुरु हुआ। उस दिन प्रवचन कि जगह जैन रामायण कि कहानी एवम धार्मिक गीतिकाओ मे लोग इतने मगसुल हो गये कि चार बज गऐ । गुरुदेव ने अन्त मे कहॉ -“कि भाईयो आज भीषण गर्मी किसे लगी ? गर्मी सामान रुप से धरती को छूती है। किसी को ज्यादा किसी को कम लगना यह सभी हमारी इन्द्रियो का कमाल है। देखे आज आपको गर्मीने परेशान नही किया, क्यो कि आपकी ईन्द्र्यो को समय ही नही मिला कि वह गर्मी के बारे मे धारणा पैदा करे। पशु -पक्षी तो खुले गगन तले रहते है। ताप लगता है, यह सत्य है, उसकी तिव्रता या वेग का अहसास प्रत्येक जीव पर अलग अलग पडता है क्यो कि जीव कि सोच उनकी इन्द्रियो के वेग को प्रभावित,अप्रभावित करती रहती है।सर, हम अगर गर्मियो मे अपना ध्यान सगीत या अपने पसन्द के कामो मे लगा ले तो ताप कि वेगता काफी कुछ कम हो सकती है। योगी पुरुष तो उसे शुन्य भी कर सकते है। ऐसा मेरा मानना है बाकी तो अपने अपने अनुभव अपने अपने महल।नमस्कार
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अगर हमारा ध्यान गर्मी,सर्दी, बारिस वगैहरा पर रहेगा तो वो हमे ज्यादा सताएगी, महसुस होगी।NEXT…4
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पर मेरे घर चुना लगाने या चितावर लगाने के लिये मेरे उपर वाले श्री रामास्वामी मुथु साहब के हॉल का उपयोग करना पडेगा। NEXT…3
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पकजजी, का फोर्मुला तो शायद भारत के गावो मे अपनाया जाता रहा है। अलग-अलग क्षेत्रो मे प्रकृति के प्रकोप से बसने के लिऐ कोई ना कोई प्रयोग चलते ही रहते है।NEXT…….2
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बड़े दिनों बाद पंकज जी की कोई पोस्ट आई. पर घर वाली समस्या तो अभी भी है… जिनके फ्लैट हैं वो क्या करेंगे?
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