छोटी सी लड़की मुझे किताब नहीं पढ़ने दे रही। नन्दन निलेकनी की पुस्तक में अंग्रेजी और उसके कारण बन रहे रोजगार के अवसरों पर पढ़ मैं फिर कुछ विवादास्पद सोच रहा हूं। हिन्दी अब भी रोजगारप्रदायिनी नहीं है। ढेरों बिजनेस प्रॉसेस आउटसोर्सिंग के जॉब भारतीयों को अंग्रेजी की जानकारी से मिले हैं। …. पर वह छोटी लड़की बार बार विघ्न डालती है सोचने में।
बार बार मेरे पास अपने छोटे-छोटे प्रश्न ले कर चली आती है। और मैं उसके प्रश्नों के त्वरित उत्तर देता हूं। उन उत्तरों को ले कर वह चली जाती है और थोड़ी देर में वापस आ जाती है अगले सेट के प्रश्नों के साथ। अगर मैं उसके प्रश्नों को टालने की बात करूं तो शायद वह मुझे भी वैसा ही कहे जैसा अपनी दादी को कहती है – आपको क्या प्रॉबलम है?!
मैं उसकी ऊर्जा और प्रश्न दागने की रेट से प्रभावित होता हूं। यह पोस्ट लिखने बैठ जाता हूं। पर इसमें भी वह दांये-बायें से अपना मुंह घुसाये रहती है। दूर जाने को कहो तो लैपटॉप के पीछे से झांकती है।
वे दो बहनें हैं। दोनो ही जिज्ञासु और दोनो ही अपने फूफा से ज्यादा बुद्धिमान। यह आने वाली पीढ़ी है और यह अगर हमारी टक्कर में खड़ी हो गई मानसिक हलचल को कोहनिया कर किनारे कर देगी।
मैं यही होपिया सकता हूं कि इन गदहिया गोल और दर्जा पांच वाली लड़कियों को उनकी कम्प्यूटर टीचर बहुत जल्दी ब्लॉग बनाना न सिखादे! पर मेरे होप करने से आजतक कुछ हुआ है!
और मैं निलेकनी की पुस्तक के दो-तीन पन्ने ही पढ़ पाया हूं। कोई पछतावा नहीं!
Mera name Deepak upadhyay hai mai ek SEO company me kam krte hai mujhe ap ka blog padh kr bhut hi achha lga khair meri to umar nhi huyi hai ki ap se ayese bat kru lekin mai chahta hoon ki ap relway pr bhi kuch likhe. Dono bachhiyo ko dekhkr apne sister ke n hone ka dukh hota hai. Hme to time nhi mil pata hai ki apne blog pr post kr saki phir bhi ap ek bar visit kr ke dekhiye sayad achha lge… http://thirdpole.wordpress.com/http://kamalupadhyayadministrator.blog.co.in/
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बहुत प्यारी बच्चिया है। मेरी तरफ़ से प्यार दिजियेगा
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इन प्यारी-प्यारी बच्चियों को शहीद भगत सिंह विचार मंच की और से ढेर सारा प्यार.ज़िक्र नन्दन नीलेकणी की पुस्तक (शायद)`इमेजनिंग इण्डिया´ का भी हुआ है. समय और स्थान की दिक्क में विद्यमान कोई भी व्यापार (phenomenon) की गतिकी दो मुख्य परस्पर विरोधी धुर्वों में प्रभुत्व धुर्व के पक्ष में हल होने से होती है. लेकिन सिद्धांत हमें यह भी सिखाता है कि चीज़ों का देर सवेर अपने विपरीत में परिवर्तन होना लाजिमी है. (“…sooner or later, things are destined to turning into their opposites….” Hegel) किसी भी व्यापार को अंश से नहीं समग्रता से समझा जा सकता है. पाठकों की उत्सुकता के लिए नन्दन नीलेकणी की पुस्तक `इमेजनिंग इण्डिया´ का एक पक्ष ये भी है…..to read, copy and paste the following link in the browser and enter…http://tinyurl.com/qq794s
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अरे वाह ! यकीं मानिए नन्दन निलेकनी की पुस्तक से कहीं ज्यादा सोचने का मसाला मिलेगा इन बच्चियों की बातों में. बड़ी प्यारी बच्चियां हैं. मैं तो एक पन्ना भी नहीं पढ़ पाता. घर जाता हूँ तो भतीजी स्कूल ही नहीं जाती 🙂 उसके डाउट और कहानियाँ… कभी ख़त्म नहीं होते.
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सर.. ऊपर वीरेन्द्र वाला कमेन्ट हमारा है जी
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लगता इन प्यारी बच्चियों की भेंट सत्यार्थ से कराने के लिए आपके घर जल्दी ही आना पड़ेगा। ढाई साल के मास्टर आजकल मुझे कम्प्यूटर से हटाने के लिए कहते हैं कि डैडी, आप जाइए टीवी पर मैच देखिए तबतक मैं यहा गेम खेलता हूँ। उसके बाद मुझे उनका माउस चलाना देखकर बाकी कुछ देखना भूल जाता है।
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